वरिष्ठ कवि। अद्यतन कविता संग्रह डुमराँव नजर आएगा

डिजिटल दुनिया की नैतिकता

जीते जी नहीं पूछता था कोई
और मरते ही बाढ़ आ जाती थी
डिजिटल दुनिया में
सादर नमन
आखिरी सलाम
गोया बेताब बैठे थे
खाली लोगबाग इस दुनिया में
ये शब्द लिखने के लिए
या फिर कर रहा था चूक मैं ही
समझने में इस दुनिया की नैतिकता

नए साल पर जगरम रहा रात भर
गोता लगाते रहे लोग बाग
हार्दिक बधाइयां और शुभकामनाओं में
उफनती शाब्दिक नदियों में
गोया पिछड़ गए
हो जाएगा पुण्य कम
रसातल चले जाएंगे

क्या अमीर, क्या गरीब
क्या गांव, क्या शहर
भरी थी सभी जगहें
सुंदर ख्याली और महान आदर्शों से

कवि थे हर रंग के
उनकी कविताएँ थीं
पर वे कंठस्थ नहीं थीं
किसी सैलाब की तरह बह रही थीं
डिजिटल दुनिया में

मैं भी था इसी दुनिया का हिस्सा
बहता जा रहा था कि डूबता
फिर भी कहता जा रहा था कि मजे में हूँ।