वरिष्ठ कथाकार।उर्दू और हिंदी दोनों में लेखन। ‘रावी’ पत्रिका का संपादन।
जब भी बारिश होती छतरी आबशार के हाथों में चली आती।
जिंदगी में पहली बारिश उस दिन हुई जिस दिन वह पैदा हुआ था।यह सब उसे मां ने बताया था कि तूफान के साथ इतनी तेज बारिश हुई थी कि लेडी डॉक्टर नर्सिंग होम तक नहीं पहुंच सकी थी और उसकी अनुपस्थिति में कम तजुर्बाकार नर्सों का ही कमाल था कि वह ऐसे हालात में भी पैदा हो गया था।लेकिन इसके दो घंटे के बाद एक ऐसी दिलदोज़ खबर मां तक पहुंची थी जिससे उसकी चीख ही निकल गई थी।और यह चीख देर तक पूरे नर्सिंग होम में गूंजती रही थी।
उसके पिता जो कुछ देर पहले पैसे का इंतजाम करने निकले थे, वापसी में मौसम के मिज़ाज को देखते हुए छतरी की खरीदारी की, ताकि जल्द नर्सिंग होम पहुंचकर अपने नवजात शिशु की झलक देख सकें।तेज-तेज कदम बढ़ाते हुए मेनरोड तक आए ताकि वहां से वह सीधे नर्सिंग होम के लिए ऑटो रिक्शा ले सकें।उस वक्त हर किसी को घर पहुंचने की जल्दी थी।ऑटो रिक्शा वाला भी सामान की तरह सवारियों को लादे मनचाहा किराया वसूल रहा था।उन्होंने करीब दर्जन भर ऑटो रिक्शा को हाथ दिया।एक दो ने यह कहते हुए रोका कि जगह बना सकते हैं तो बैठ जाइए।लेकिन गुंजाइश ही नहीं थी।किसी तरह दोनों हाथों से रॉड पकड़कर लटका जा सकता था।छतरी कहां रखेंगे? यह सोचकर उन्होंने पैदल चलने का इरादा किया।उस वक्त तक बूंदाबांदी शुरू हो गई थी।वह एक हाथ से छतरी थामे तेज-तेज कदम बढ़ा रहे थे।अभी कुछ ही दूर चले थे कि हवा जोर-जोर चलने लगीं और फिर अचानक मिजाज तूफानी हो गया।उन्होंने दोनों हाथों से छतरी संभालने की कोशिश की, लेकिन नाकाम हुए और छतरी की कमान सी तनी एक सींक उनकी आंख में धंस गई।सामने अंधेरा छा गया।और फिर वह हुआ जो किसी ने सोचा नहीं था।वे अचानक तेज रफ्तार कार की ज़द में आ गए।
आबशार के सामने जब भी छतरी आती, बाप का चेहरा, जो दीवार के फ्रेम में बरसों से जड़ा हुआ था, आंखों के सामने घूम जाया करता।वह अपनी पैदाइश को जहां बदशगुन मानता था वहीं बाप की मौत का जिम्मेदार मौसम को कम, छतरी को ज्यादा ठहराता।मां के साथ दोस्तों-अहबाब ने भी समझाया कि उसे सिर्फ एक हादसा समझो, वरना आज एक छतरी से तुम खौफज़दा हो, कल होकर हो सकता है कि तुम्हारी जिंदगी में कोई और वस्तु नकारात्मकता के साथ सामने आ जाए, तो ऐसे में तुम किस किस से भागोगे।लेकिन इसके बाद भी मनोविज्ञान की वह गिरह जिसमें बाप की मौत बंधी हुई थी उसे चाहकर भी खोल नहीं पाया।
बचपन से जवानी के सफर में कभी उसने छतरी का इस्तेमाल नहीं किया।जब कभी बारिश होती वह रेनकोट निकाल लेता।बरसाती मौसम में लोग उसके घर जाने से कतराते थे।उसकी मौजूदगी में अज़ीज़ो–रिश्तेदार भी हिम्मत नहीं करते थे कि वे छतरी लेकर उसके घर जाएं।
दसवीं के फाइनल इम्तिहान से एक महीना पहले आबशार बीमार पड़ गया था।उसका क्लास फेलो रफीक, जिसके पिता की जेरॉक्स की दुकान थी, हमदर्दी में हर रोज उसे नोट्स पहुंचाया करता था।एक शाम जब वह जेरॉक्स कर रहा था तो बारिश शुरू हो गई।उसने सोचा कि चलो दूसरे दिन पहुंचा देंगे।फिर ख्याल आया कि दूसरे दिन तो दूसरे दिन के नोट्स का बोझ भी बढ़ जाएगा।इसलिए छतरी लेकर वह उसके घर चल पड़ा।आबशार खिड़की के सामने लेटा हुआ उसके आने का इंतजार कर रहा था।जैसे ही बाहर गेट खुलने की आवाज हुई, बीमार चेहरे पर मुस्कराहट बिखर गई।जब रफीक गेट बंद करके दो-तीन सीढ़ियां चढ़ते हुए बरामदे में पहुंचा तब तक आबशार की मां किसी अंदेशे से निपटने के लिए दरवाजा खोलकर तेजी से बाहर निकल आई थी।इससे पहले कि नोट्स लेकर वह रफीक को जाने के लिए कहती, आबशार वहां पहुंच गया।छतरी देखते ही उस पर पागलपन सवार हो गया।रफीक के हाथ से नोट्स छीनकर पानी में फेंकते हुए चीखा ‘तुम क्या समझते हो कि मैं तुम्हारे खैरात में दिए हुए नोट्स की बदौलत इम्तिहान पास करूंगा।’ फिर उसने छतरी पर लात मारी।रफीक उस वक्त उसे हैरत से देखता रह गया था कि आज आबशार को हो क्या गया है?
मुहल्ले वाले कई बार उसकी इस हरकत पर मारपीट पर उतर आए थे।मां बीच-बचाव करातीं।कभी छतरी की कीमत देतीं तो कभी नई छतरी खरीद कर मामले को रफा-दफा करना चाहतीं।लेकिन आबशार पर इसका कोई असर नहीं होता।ऐसे मौसम में मां अकसर साथ रहतीं।स्कूल छोड़ने और लाने खुद जातीं।किसी के आने पर पहले मां दौड़ कर बाहर निकलतीं।मां की अनुपस्थिति में अगर कोई आ जाता तो उसे अपनी छतरी से हाथ धोना पड़ता।वह कपड़े पर ब्लेड मार देता।कमानी को टेढ़ा-मेढ़ा करके इधर-उधर फेंक देता।
करीब पचीस साल के बाद एक बार फिर वैसी ही बारिश शुरू हुई थी और यह भी संयोग था कि वह अपने बाप की तरह अपनी बीवी को उसी नर्सिंगहोम के उसी बेड पर जहां वह पैदा हुआ था एडमिट करके कुछ जरूरी सामान लाने बाजार गया था।खरीदारी के वक्त मौसम का मिजाज दोस्ताना था।लेकिन जैसे ही नर्सिंगहोम जाने के लिए वह ऑटो स्टैंड की तरफ बढ़ा, मौसम ने करवट ली।आसमान काले बादलों से भर गया।गड़गड़ाहट के साथ बिजली चमकने लगी।
बारिश के ऐसे ही मौसम में तरन्नुम उससे टकराई थी।वह स्कूल से क्लास लेकर घर लौट रहा था कि बारिश शुरू हो गई थी।रेनकोट पहनने के लिए उसने मोटर साइकिल एक घने पेड़ के नीचे रोकी।पीछे से एक स्कूटी आकर रुकी।अनेक कोशिशों के बावजूद जब स्कूटी वाली दोशीजा रेनकोट की चेन लगाने में नाकाम हुई तब उसने उम्मीद भरी निगाहों से आबशार की तरफ देखा।आबशार पहले झिझका।लेकिन फिर वह बिना कुछ कहे आगे बढ़ा।चेन को एक दो बार थोड़ा ऊपर नीचे किया और फिर ऐसी कारीगरी दिखाई के एक झटके में चेन के सारे दांत एक दूसरे के ऊपर चढ़ गए।वह इस करामत पर हैरान था।ऐसा करने के दौरान उसका भीगा हाथ कुछ लम्हे के लिए लड़की के गुदाज सीने के दरम्यान जाकर ठहर गया था।जैसे ही कुछ गलत होने का एहसास हुआ, उसने जल्दी से अपना हाथ हटा लिया।अनजाने में हुई इस गलती के लिए नैतिकता के आधार पर माफी आबशार को माननी चाहिए थी, लेकिन माफी लड़की की तरफ से आई।
‘सॉरी!’ उसने मुस्कराती आंखों से आबशार की तरफ देखा। ‘न ही मेरी आंखें चेन लगाने की मिन्नत करतीं और न ही आपका हाथ…’
फिर क्या था, इसके बाद जब भी बारिश होती दोनों इसी पेड़ के नीचे भीगते हुए दिखाई देते।भीगते-भीगते एक दिन यह ख्याल आया कि अगर दोनों इसी तरह भीगते रहे, तो जिंदगी का लुत्फ दोबाला हो जाएगा।फिर शहनाइयों की बारिश हुई।गदला पानी झील में जा उतरा।बाहर का मौसम ऐसा फ्रीज हुआ कि वह नौ महीने के लिए वहीं जम कर रह गया।
बारिश अब भी मुसलसल हो रही थी।आबशार को जल्द से जल्द नर्सिंग होम पहुंचना था।बारिश से बचने के लिए उसने दुकान के शेड का सहारा लिया था।बैग में बीवी के खाने पीने की चीजें और नवजात बच्चे के लिए दो जोड़े कपड़े के साथ महंगी दवाइयां, जिसे डॉक्टर ने एक खास दुकान से लाने के लिए कहा था, मौजूद थीं।बारिश थी कि रुकने का नाम नहीं ले रही थी।
नर्स का फोन आबशार के पास आ चुका था।वक्त पर दवा नहीं मिलने से जच्चा बच्चा दोनों को खतरा था।वह परेशान था कि ऐसी परिस्थिति में क्या करे।अचानक ख्याल आया कि क्यों ना रेनकोट खरीद ली जाए।दुकानदार ने कहा, ‘रेनकोट तो नहीं है, लेकिन ओल्ड स्टॉक की एक छतरी बची हुई है।सस्ते में दे दूंगा।’
आबशार ने कोई जवाब नहीं दिया।यकायक दुकानदार की नजरें घड़ी की ओर उठ गईं।बेटी की छुट्टी का वक्त हो गया था।उसे लेने के लिए स्कूल जाना था।वह एक कोने से ओल्ड स्टॉक की इस इकलौती छतरी को निकालकर काउंटर के पास आया।पहले गर्द साफ किया।फिर नैतिकता के आधार पर आबशार से पूछा। ‘भाई साहब! मैं गांधीनगर की तरफ जा रहा हूँ, अगर आपको उधर ही चलना है तो…’ आबशार ने ‘नहीं’ में सिर हिलाया।दुकानदार आगे बढ़ गया।यकायक बीवी का प्रसव पीड़ा भरा चेहरा सामने आ गया।उसने पीछे से आवाज लगाई और फिर दौड़ता हुआ उस छतरी के नीचे पहुंच गया।
जब वह नर्सिंग होम पहुंचा तो उस वक्त तरन्नुम को प्रसूति कक्ष ले जाया जा रहा था।
तीसरे दिन छुट्टी होने वाली थी और वह नर्सिंग होम से डिस्चार्ज करवा कर मां बेटी को खुशी-खुशी घर ले जाना चाहता था।और आज भी जब वह घर से निकला तो पहले बाजार गया और बच्ची के लिए दो जोड़े कपड़े खरीदे और संयोग देखिए कि वहां से अभी वह नर्सिंग होम के लिए निकलने ही वाला था कि उसकी नजर खुद-बखुद ऊपर उठ गई।आसमान साफ था।उसने खरीदारी कर ली थी लेकिन लाशउरी तौर पर चलते-चलते वह उस दुकान के पास पहुंच गया, जहां दो दिन पहले बारिश में रुका था।उसने एक बार फिर आसमान की ओर देखा।मौसम साफ था।लेकिन इसके बावजूद उसे इस बात का खौफ सता रहा था कि पता नहीं कब मौसम खराब हो जाए।बारिश हुई तो पालने में झूल रही उसकी नन्ही-मुन्नी बेटी भीग जाएगी।उस वक्त वह दुकान की ओर ऐसे लपका जैसे तेज बारिश हो रही हो।पहुंचते ही बोला, ‘जी वह छतरी…’ इस तरह कहा जैसे अपनी छतरी मांग रहा हो।
‘कौन सी छतरी…’ दुकानदार मुस्कराया।
‘वही…’
‘अच्छा वह छतरी… वह तो मैंने घर पर छोड़ दी है।’
‘मुझे वह छतरी खरीदनी है।’
‘क्यों मजाक कर रहे हैं? उस दिन जब मैं बेचना चाह रहा था तो आपने खरीदी नहीं।आज जब बारिश की कोई संभावना नहीं है तो आप चले हैं छतरी खरीदने… देखिए अगर छतरी खरीदनी है तो अब मेरे पास तो है नहीं।आप ऐसा कीजिए कि बगल वाली गली में चले जाइए।मैं दुकान का नाम बता देता हूँ।वहां आपको कई वैरायटी की छतरी मिल जाएगी।’
‘नहीं, मुझे वही छतरी चाहिए।कीमत जो चाहे ले लें’, वह जिद पर उतर आया।
दुकानदार ने दिल ही दिल में सोचा कि इस बेवकूफ को उस छतरी में क्या नजर आ गया।ऐसे ही लोगों की वजह से दुकानदारों का मुनाफा दुगना हो जाता है, तो वह भी इस बहती गंगा में हाथ क्यों न धो ले।घर से छतरी मंगवा कर उसे दे दिया।आबशार बड़ी शान से छतरी लेकर दुकान से निकला।फिर सिर पर तानकर मतवाली चाल चलता हुआ नर्सिंग होम जाने वाली सड़क पर बढ़ गया।आते-जाते लोग उसे अजीब नजरों से देख रहे थे।बीवी, जो उसकी छतरी दुश्मनी से परिचित थी, उसने जब आबशार को वार्ड में दाखिल होते और बेड पर बच्ची के ऊपर छतरी तान कर रखते देखा तो वह उसकी इस हरकत पर आश्चर्यचकित रह गई।
‘अरे क्या कर रहे हैं…?’
‘देखती नहीं बारिश हो रही है।’ उसने अपना सिर सामने कर दिया जैसे भीगे बाल दिखा रहा हो।
छुट्टी मिल चुकी थी।गेट के बाहर ऑटो रिक्शा खड़ा था।तरन्नुम बच्ची को गोद में लिए हुए थी।आबशार छतरी का साया किए साथ-साथ चल रहा था।बीवी जब संभलकर ऑटो में बैठ गई तब वह भी बैग को पीछे रखकर बगल में बैठ गया और अंदर छतरी खोल ली।घर के अंदर दाखिल होते वक्त भी वह बच्ची के ऊपर छतरी का साया किए हुए था।
बाहर जब भी तेज धूप होती, मौसम खराब होता या फिर बारिश हो रही होती तो ऐसे में वह उसके बेड पर छतरी खोल कर रख देता।सामने बैठकर खिड़की से मौसम को और कभी अपनी नन्ही सी जान को देखता।शुरू–शुरू में बीवी को यह सब अजीब सा लगता था।आस–पड़ोस के लोगों में से कुछ उसे खानदानी टोटका समझते।कुछ लोग जानने की कोशिश करते तो वह मुस्करा कर रह जाता।
आबशार ने बेटी का नाम रिमझिम रखा।वह बचपन से ही उसके उज्ज्वल भविष्य के सपने देखने लगा था।रिमझिम अभी पांचवी कक्षा में थी।एक दिन संगीत शिक्षिका ने बताया कि रिमझिम के अंदर म्यूजिक की अच्छी समझ है।अगर घर वालों का साथ मिला तो एक दिन मुल्क उसकी सिंगिंग पर नाज़ करेगा।लेकिन यह बात आबशार को पसंद नहीं आई।वह गजल और पुराने नगमे शौक से सुनता था।लेकिन बेटी सिंगर बने यह बात उसे पसंद नहीं थी।वह लड़कियों की गायकी को मायूब समझता था।इश्क़ो-आशिक़ी और डबल मीनिंग जैसे बाजारू शब्द बच्ची के मस्तिष्क में खलल डाल सकते थे।इसलिए उसने एक दिन अच्छी पढ़ाई नहीं होने का बहाना करके रिमझिम का दाखिला दूसरे स्कूल में करवा दिया।लेकिन होनी को कौन टाल सकता है।जिस स्कूल में उसका दाखिला हुआ था वहां एक म्यूजिकल प्रोग्राम में पूर्व संगीत शिक्षिका जज बनकर आ गईं।वहां उनकी नजर रिमझिम पर पड़ी तो उन्होंने उस स्कूल की संगीत शिक्षिका से उसकी गायकी के बारे में बताया और उसे गाने के लिए कहा।रिमझिम ने पहले इनकार किया।लेकिन फिर बगैर प्रयास के जो पर्फामेंस दिया, उसने सभी को हैरत में डाल दिया।वह लिटिल सिंगर चुनी गई।उसके दूसरे दिन इनाम दिया जाना था।संगीत शिक्षिका ने रिमझिम के घर फोन किया।आबशार स्कूल में था।फोन तरन्नुम ने उठाया।किसी जमाने में तरन्नुम को भी गाने का शौक चढ़ा था और वह भी सिंगर बनना चाहती थी।लेकिन घरेलू माहौल मजहबी था इसलिए वह सोच भी नहीं सकती थी।यहां भी बाप की तरह शौहर के चेहरे पर दाढ़ी थी।लेकिन यहां वह बेटी नहीं एक मां थी।फैसला करने वाली मां।वह छुप-छुपाकर बेटी का हौसला अफजाई करती थी।गाने की बारीकियां बताती थी।अपने मनपसंद गाने को बार-बार उससे गवाती थी।उसके अंदर खुद को ढूंढती थी।वह अपने सपनों के पंख उसके बाजुओं में देखना चाहती थी।लेकिन उसकी भनक कभी उसने आबशार को नहीं लगने दी।वक्त आएगा तो वह खुद सामने आ जाएगी।उस रात उसने बहाने से सहेली की बेटी की गायकी का जिक्र छेड़कर आबशार के दिल को टटोलना चाहा, तो उसने उसे शरीयत का हवाला देकर सिरे से खारिज कर दिया।इसलिए वह आबशार को बगैर बताए स्कूल पहुंची।प्राइज डिस्ट्रीब्यूशन प्रोग्राम में जब तरन्नुम ने रिमझिम को माइक पर गाते हुए सुना तो अंदर अरमानों के पंख फड़फड़ाने लगे।लेकिन चैलेंज यह था कि क्या वह अब इन पंखों के सहारे संगीत के आसमान में उड़ पाएगी।मियां को राजी कर पाएगी।
‘तुम तो जानती हो तरन्नुम कि हमारा खानदान इसकी इजाजत नहीं देता।थोड़ा बहुत शौक मेरी दोनों बहनों को भी था।वालिद साहब ने साफ कह दिया कि अगर सिंगिंग का ज्यादा शौक चढ़ा, तो वह जुबान काट लेंगे।एक तो मान गई, लेकिन दूसरी जिद के आगे नहीं झुकी और फिल्म इंडस्ट्री में किस्मत आजमाने किसी गवैये के साथ भाग निकली।बाद में मालूम हुआ कि उसे गाने का मौका तो मिला, मगर कहां? तवायफ के कोठे पर।आज भी वह वहां मुजरा गाती है।’ आबशार यह कहते हुए जज्बाती हो गया था।
‘मेरी बेटी के साथ भी ऐसा ही होगा, यह जरूरी तो नहीं?’
‘देखो! सिंगिंग से बेहतर कई लाइन हैं, जैसे टीचिंग, इंजीनियरिंग, मेडिकल वगैरा।’
अब रोज-रोज की तकरार ने लड़ाई की शक्ल ले ली थी।तरन्नुम को भी यह लगने लगा था कि अगर वह यहां कुछ दिन और रही तो उसके अरमानों के सारे पंख एक-एक करके कुतर दिए जाएंगे।इसलिए उसने फैसला किया कि वह आबशार से अलग रहेगी।
एक दिन वह भाइयों को बुलवाकर अपने दहेज का सारा सामान ट्रक में लोड करवाई और रिमझिम को लेकर मैके चली आई।आबशार ने रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह रुकी नहीं।
‘चाहो तो तुम मुझे तलाक दे दो, या फिर जैसा मैं कहती हूँ वैसा करो।’
अब आबशार की जिंदगी के सेट पर रिमझिम के भविष्य से जुड़े कई पेंच ऐसे थे जो सही से ड्रिल नहीं होने की वजह से अंदर जाते-जाते रह गए थे।इसलिए वह मजबूती नहीं आ सकी।लेकिन साल भर बाद जब रिमझिम चौदह की हुई तो उसे बेटी की फिक्र और भी सताने लगी।वह जानता था कि तरन्नुम सिंगिंग के आसमान पर बरसते पैसे जैसी बूंदों से रिमझिम को वक्त से पहले इतना शराबोर कर देगी कि मंच तक पहुंचते-पहुंचते उसके छोटे और शरीर पर चिपके कपड़े खुद-ब-खुद ट्रांसपेरेंट हो जाएंगे।वह भागने की कोशिश भी करेगी तो भी किसी छत तक पहुंचते-पहुंचते भीग जाएगी।इसलिए मजबूरन वह उस फ्लैट में रहने के लिए तैयार हुआ, जिसे तरन्नुम ने रिमझिम के नजराने से खरीदा था।
तीन कमरे के इस फ्लैट में टॉयलेट अटैच बाथरूम के बगल वाला कमरा आबशार को दिया गया।दो कमरे और भी थे, लेकिन तरन्नुम ने इन कमरों को देने से इनकार कर दिया कि एक कमरा प्रैक्टिस के लिए है और दूसरा आने जाने वाले मेहमानों के लिए आरक्षित है।आबशार ने खामोशी अख्तियार कर ली तो तरन्नुम ने सोचा कि क्यों न थोड़ी बेशर्मी और भर दी जाए, ताकि दलाल बनकर यहीं दुम हिलाता फिरे।
‘अब तुम्हारी बेटी एक उभरती हुई सिंगर बन चुकी है।शहर में कोई भी प्रोग्राम इसके बगैर कामयाब नहीं समझा जाता।कई तरह के वीआईपी गेस्ट भी आते हैं।’
‘लेकिन वीआईपी गेस्ट को तो गेस्ट रूम में रहना चाहिए था न…?’
‘देखो, अब रिमझिम की वजह से हमारा स्टेटस भी वीआईपी हो गया है।मैं कहीं भी जाती हूँ तो मेरा आवभगत जिस तरह से होता है उसी तरह से मुझे भी उनका ख्याल रखना है।’
‘लेकिन अब यह भी ख्याल रखो कि रिमझिम बड़ी हो रही है।’
‘तुम्हें यह भी जान लेना जरूरी है कि बेटियां दूसरों के लिए ही बड़ी होती हैं।’
आबशार ने अपनी इस बेइज्जती के बावजूद मसलहतन खामोश रहने में ही अपनी भलाई समझी।तरन्नुम को यह खामोशी अच्छी लगी।उसे लगा कि ऐसी बेइज्जती के बाद एक दिन या तो वह अपना बोरिया बिस्तर समेट कर कहीं चला जाएगा या फिर इज्जत की छतरी बंद करके किसी कोने में रख देगा।लेकिन जब दूसरे ही दिन बारिश हुई और वीआईपी गेस्ट की मौजूदगी में वह छतरी लेकर रिमझिम के कमरे में पहुंच गया तो यह हरकत तरन्नुम को नागवार गुजरी।
दूसरे दिन स्कूल से लौटते वक्त आबशार ने रिमझिम के लिए रेडीमेड सूट खरीदा।जब वह घर पहुंचा तो तरन्नुम बाथरूम में थी।इधर रिमझिम ने सूट पहना और उधर तरन्नुम बाथरूम से बाहर निकली।सलवार कुर्ता और कामदार दुपट्टे में जब आबशार ने रिमझिम को देखा तो आंखों में मुस्कराहट के जुगनू चमकने लगे।लेकिन वहीं तरन्नुम की आंखें गुस्से से लाल हो गईं।इतना वबाल मचाया कि आबशार हैरान रह गया। ‘तुम ऐसे कपड़े पहनाकर मेरी बेटी को मेरे खिलाफ भड़काना चाहते हो।बर्थडे में मेरी बेटी क्या ऐसे वाहियात कपड़े पहनेगी?’ कंधे से दुपट्टा खींचकर उसे दो टुकड़ा करते हुए बोली। ‘टेक्सटाइल मंत्री ने एक महीना पहले ही मुंबई के मशहूर ड्रेस डिजाइनर से स्पेशल डिजाइन करवाकर रिमझिम के लिए खूबसूरत ड्रेस भिजवाया है।अपना नहीं तो कम से कम बेटी के स्टेटस का तो ख्याल रखो।’
आबशार जब खाने पीने की चीजें रिमझिम को लाकर देता तो यह सब तरन्नुम को पसंद नहीं आता।मना करती तो रिमझिम को भी गुस्सा आता कि वह किसी और से तो नहीं ले रही है।लेकिन कहने की हिम्मत नहीं थी।अकसर जब भी कोई अनहोनी होती, वह सोचती कि मम्मी पापा को रात दिन उल्टा-सीधा कहती हैं।गालियां देती हैं।लेकिन वह उफ तक नहीं करते।इतना सब कुछ सहने के बाद भी यहां क्यों रहते हैं? चले क्यों नहीं जाते? उनकी वजह से हमेशा उसे डांट पड़ती है।लेकिन वह अब इतना जानने लगी थी कि पापा के चले जाने के बाद उस पर मम्मी का शिकंजा और कस जाएगा।उसकी आजादी बस नाम की रह जाएगी।
बेटी के ऊपर तनी बाप की छतरी तरन्नुम को कभी पसंद नहीं आई।यूं तो छतरी अब पुरानी हो चुकी थी।जगह–जगह से सिलाई खुली हुई थी।एक दिन जब वह सुई धागा लेकर हॉल में सीने बैठा तो वह जलभुन गई।
‘मास्टर साहब! छतरी के कपड़े सिर चुके हैं बदबू आती है इससे।यह अब घर में रखने के लायक नहीं रही।’
‘रिमझिम की पैदाइश की निशानी है यह।’
‘निशानी है तो संभालकर अपने कमरे में रखो, वरना जिस दिन बदबू से मेरा दम घुटने लगा उस दिन मैं यह नहीं देखूंगी कि यह किसकी निशानी है।’
इसके बाद आबशार छतरी को अलमारी में ताला लगाकर रखने लगा।उधर रिमझिम सोलहवीं साल में कदम रख रही थी।उसके शोज़ में इज़ाफ़ा होने लगा था।क़दरदानों में एक से एक लोग शामिल होने लगे थे।तरन्नुम खुश थी।क्योंकि अब वह दोनों हाथों से चेक वसूल करने लगी थी।जो पैसा कैश में मिलता था वह तो उसकी गिनती में ही नहीं था।ऐश और विलासिता की एक ऐसी ही जिंदगी की वह ख्वाहिशमंद थी।अब यहां से आगे फिल्मों की चकाचौंध जिंदगी उसके इंतजार में थी।लेकिन यह सब आबशार की जिंदगी से मेल नहीं खा रहा था।उसने बहुत कोशिश की कि किसी तरह साथ रहा जाए।खुद को पुरसकून रखा जाए।इस ख्वाहिश में अपने आपको इतना गिरा दिया था कि इससे ज्यादा और क्या गिरता? अब एक ही रास्ता रह गया था।
उस रास्ते से होकर आबशार ने मामले को अदालत तक पहुंचाया।वकील ने आबशार को समझाया कि वह पूरे बोल्डनेस के साथ उंगली उठाए कि वह बदचलन है।उसकी अनुपस्थिति में कई मर्द उसके यहां आते रहे हैं।उसे हकीकी रंग देने के लिए वकील के कहने पर आबशार ने अपने एक दोस्त को तैयार किया।जज के सामने उसने अपने और तरन्नुम के नाजायज तालुकात का इजहार भी किया।जिसकी रोशनी में आबशार के वकील ने तरन्नुम को बदचलन साबित करके रिमझिम की जिंदगी का फैसला आबशार के हक में करने का दबाव बनाया।उन्हें उम्मीद थी कि बदचलनी का इल्जाम साबित होते ही फैसला बाप के हक में होने से कोई नहीं रोक सकेगा।
तरन्नुम के मस्तिष्क में भी यह बात नहीं थी कि आबशार जैसा मास्टर उस पर ऐसा घिनौना इल्जाम लगाएगा।ऐसे वक्त में एक औरत जहां टूट-सी जाती है, वहीं इसके विपरीत उसके चेहरे पर मुस्कुराहट बिखर गई।उसने अपने वकील से बात की और फिर वकील ने अपने मोवक्किल की बात को जज के सामने अदब से रखा। ‘जज साहब, मेरे मोवक्किल ने अपने ऊपर लगाए बदचलनी के इल्जाम को साफ दिली से कुबूल करते हुए यह भी स्वीकार किया है कि रिमझिम उन्हीं बदचलन मर्दों में से किसी एक की बेटी है।’
अदालत में सन्नाटा छा गया।तरन्नुम मुस्करा रही थी और आबशार परेशान दिखाई दे रहा था।
‘जज साहब! अब मैं अदालत से यह गुजारिश करना चाहता हूँ कि जब रिमझिम आबशार की बेटी ही नहीं है तो फिर यहीं इस केस को खारिज कर दिया जाए।’
आबशार इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं था।दूसरी तरफ तरन्नुम ने तलाक के लिए अर्जी लगा दी।अदालत ने डीएनए रिपोर्ट आने तक बाप को बेटी के साथ रहने की इजाजत दे दी।हालांकि आबशार उस घर में अब एक पल रहना नहीं चाहता था, लेकिन रिमझिम की वजह से वह मजबूर था।उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि बदचलनी का जो इल्जाम शिकस्त देने के लिए लगाया था, वही उसकी जीत की वजह कैसे बन गई।
तरन्नुम का बचपन बाप के सख्त पहरे में दुपट्टा, स्कार्फ और नकाब के साए में गुजरा था लेकिन जैसे ही अफसर बाप की मौत हुई रिटायरमेंट के ढेरों सरकारी पैसे उसकी मम्मी की झोली में आ गिरे।फिर तीन भाइयों के साथ उसने भी पैसे की छांव में मॉडर्निटी का लिबास पहनना शुरू कर दिया।कालेज जाने के लिए स्कूटी खरीद ली और नकाब को बलाए–ताक रखकर सड़कों पर दनदनाती फिरने लगी।
महिला सशक्तीकरण का अलमबरदार बनकर सामने आने लगी कि मर्दों ने रोजे-अव्वल से औरतों को बेवकूफ बनाकर अपनी सल्तनत कायम की है और हमेशा अपनी तहवील में रखा।जरूरत पड़ने पर एक वस्तु की तरह प्रयोग किया, नहीं तो बाहर का रास्ता दिखा दिया।वह भौतिकवादी दौर में बाजार के उतार-चढ़ाव से बखूबी वाकिफ थी।यह जानती थी कि आज औरत दुनिया की सबसे कीमती चीज है।बस कैश कराने का हुनर आना चाहिए।लेकिन आबशार से मुलाकात के बाद जब खुद को कैश कराने में नाकाम हुई तो उसने सोचा कि आने वाले दिनों में बेटी को चेक बुक की तरह इस्तेमाल करेगी।इस ख्याल को अमलीजामा पहनाने के लिए गर्भावस्था में उसने फैसला किया कि अगर लड़का हुआ तो भी डिस्चार्ज के वक्त उसे गोद में लड़की चाहिए।डॉक्टर ने पैसे के एवज में इस काम को निहायत ही ईमानदारी से कुछ इस तरह किया कि आबशार को कभी पता ही नहीं चला।
डीएनए रिपोर्ट आ चुकी थी।
अदालत के फैसले के मुताबिक आज आबशार का उस घर में आखिरी दिन था।रात को बारिश हुई थी।छतरी भीगी हुई थी।लेकिन सुबह होते-होते मौसम साफ हो गया था और धूप अपने रोशन पांव पसारने लगी थी।ऐसे में आबशार ने सोचा कि जाने से पहले एक बार छतरी को धूप दिखा दी जाए।अभी रिमझिम को बालकनी में रखने के लिए कहा ही था कि तरन्नुम ने हंगामा खड़ा कर दिया।सड़क पर चलते लोग रुक-रुक कर बालकनी की तरफ देखने लगे।
आबशार छतरी को मजबूती से पकड़े हुए था और तरन्नुम जुनूनी कैफियत में उसे अपनी तरफ खींच रही थी।आबशार ने बहुत कोशिश की।लेकिन वही हुआ जिसका डर था।एक झटके में छतरी तरन्नुम के हाथों में चली आई।खींचातानी की वजह से आबशार के हाथों में दो-तीन जगह जंग आलूद कीलों ने सुर्ख गुल बूटे खिला दिए।वह दर्द से कराहने लगा।उस वक्त आबशार को ऐसा लगा जैसे तरन्नुम ने सिर्फ छतरी नहीं, बल्कि रिमझिम को भी बालकनी से नीचे फेंक दिया है।वह तेजी से नीचे उतरा तो देखा कि छतरी के नीचे रिमझिम कराह रही है।वह दोनों को उठाकर दोबारा बेशर्म की तरह अभी सीढ़ियां चढ़ने ही वाला था कि एक गाली के साथ धड़ाम से ऊपर जाने वाला दरवाजा बंद हो गया।
यकायक उसके चेहरे पर संतुष्टि भरी मुस्कराहट फैल गई कि दरवाजा बंद हुआ तो कोई बात नहीं, छतरी और रिमझिम तो उसके पास है।फिर उसने रिमझिम को गोद में संभाला और टूटी छतरी को किसी तरह खोल कर उसके नीचे चलने लगा।लेकिन जब चलते-चलते उसने एक नजर बालकनी पर डाली तो हैरान रह गया कि डरी सहमी सी रिमझिम बालकनी में ही रह गई है, तो वह अपनी गोद में किसे लेकर चल रहा है…?
फिर वह छतरी को बच्ची की तरह संभाले घर पहुंचा।रिमझिम की जगह बेड पर उसे सुलाया और खुद छतरी बन गया।
संपर्क : काइनात विला, आईशा मर्लिन के पीछे, दारा सिंह रोड, लक्ष्य अपार्टमेंट–३ के निकट, पारडीह, मानगो, जमशेदपुर-831020 मो.9572683122
बहुत ही बेहतरीन। संवेदनात्मक कहानी
मेरी कहानी छतरी को बेहतरीन कहानी की श्रेणी में जगह देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया प्रदीप कुमार शर्मा जी