कथा लेखन में सक्रिय। कहानी संकलन ऐसा भी होता हैऔर साँझी छतप्रकाशित।

गाना लाउडस्पीकर से फुल वॉल्यूम में बज रहा था। चेहरे पर सस्ता मेकअप थोपे गांव का मेहरा गुड्डू ग़ज़ब की फुर्ती से नाच रहा था। गांव के लड़के उसके साथ ऊलजलूल नाच रहे थे और हँसी-ठिठोली कर रहे थे। गांव की लड़कियों के साथ खड़ी रन्नो के पैर भी नाचने के लिए मचल रहे थे, पर दाई और गांव के पुरनियों का लिहाज उसके कदम थामे था।

हरे बांस के मंडप के नीचे दूल्हा सज रहा था। उल्टे तवे जैसा पक्का रंग। सिर पर मानो गमकउआ तेल की पूरी कट्टी उड़ेल ली हो …ऊपर से पीले रंग का जामा। रन्नो को सरसों के खेत में घुसी अपनी भैंस याद आ गई। फिस्स से उसकी हँसी छूट गई!

सजे-धजे बाराती खा पीकर, पान-तंबाकू चबाकर रवाना हो गए। अब औरतों की पंगत बैठी। गरमागरम पूड़ी, कद्दू की सब्ज़ी, लौकी का रायता, अचार और रसबूंदी। कमल के पत्ते से उठती पूड़ी-सब्ज़ी की भाप ने उसके नथुनों में तहलका मचा दिया। भूख भड़क उठी थी। भरपेट स्वादिष्ट खाना खाकर पेट के साथ-साथ रन्नो की आत्मा भी तृप्त हो गई।

‘आज कित्ता मन था हमारा नाचने का …पर तुमाए कारण हम नहीं नाचे दाई’, लौटते समय रन्नो ने अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर दी।

‘का …तुमका नाचैं का रहा? अरे का कहिते सब कि तिवारी बाबा की नातिन मेहरा संगै नचती रहै। दिमाक खराब है का…’, दाई आगबबूला हो गई।

‘तो …भोला नहीं नाचा का?’

‘अरे …भोला तो लरिका है। तुम्हरी ओसे का बराबरी …कायदे मा रहौ’, दाई ने बुरी तरह झिड़क दिया उसे।

घर आकर रन्नो का मन खराब रहा। हे देवी मइया.. काहे हमाई मम्मी को बुला लिया …दाई और पापा तो नई मम्मी और भोला का ही नाम जपते हैं। हम तो मानो कूड़ा हैं। छाती पर मन भर का बोझ लिए रोती सिसकती रन्नो नींद के आगोश में समा गई।

रन्नो के पापा अपनी पत्नी, बेटे, खेत और दुकान में मगन रहते थे। रन्नो से बातचीत न के बराबर थी। दिन पर दिन रन्नो के मन में सबके लिये घृणा भरती जा रही थी। घर में उसका दम घुटता था। स्कूल के बहाने बाग और तालाब किनारे मन बहलाना उसे अधिक भाता था।

एक दिन बाग में आम के पेड़ के नीचे बैठी वह अपने ख्यालों में खोई हुई थी। ‘खट’ एक कंकड़ पीछे से उसके सिर पर लगा। रन्नो ने तिलमिला कर पीछे पलट कर देखा। रामा चाची का भतीजा जीवन बेशर्मी से हँस रहा था।

‘दिमाक खराब है पहले से हमारा …कायदे में रहना नहीं तो एक लप्पड़ देंगे …होस ठिकाने आ जाएगा।’

‘अरे रन्नो रानी …काहे गुस्सा करती हो? हम तुम्हें कित्ता प्यार करते हैं, पर तुम तो हमें घास ही नहीं डालती। तुमाए पीछे हमारा नींद चैन हराम है …सच्ची।’ अपने सीने पर हाथ रख कर जीवन नाटकीयता से बोला।

रन्नो के दग्ध हृदय पर जीवन के प्रेम पगे शब्द मानो सावन की पहली फुहार से बरसे। रन्नो के स्मित हास्य से जीवन को मानो जीवनदान मिल गया। अब तो दोनों आम के बाग में, पोखर किनारे खूब समय बिताते, बोलते-बतियाते। रन्नो ने जीवन के सामने अपना दिल खोल कर रख दिया था। जीवन ने उसे भरोसा दिलाया कि वह उसे दिलोजान से चाहता है और उसी से शादी भी करेगा। शादी के बाद दोनों शहर में रहेंगे। रन्नो की आंखों में शादी और शहर के रंगीन सपने तैरने लगे थे।

‘रन्नो …हम पर बिस्वास तो है ना तुमको?’ एक दिन जीवन ने सहसा रन्नो की कोमल हथेली थाम कर पूछा।

‘हां जीवन, तुमपर नहीं तो किसपे बिस्वास करेंगे…बोलो।’ नए-नए प्यार ने रन्नो की जबान में मिश्री घोल दिया था।

‘रन्नो, चलो सादी कर लें तो हमें कोई अलग नहीं कर पाएगा।’

शादी …रन्नो के तन मन में मादक तरंगें उठने लगीं। दोनों पहाड़ी वाले सूनसान जर्जर मंदिर जा पहुंचे। देवी जी की मूर्ति के समाने एक सस्ता सा मंगलसूत्र पहना कर जीवन ने रन्नो की मांग में चुटकी भर सिंदूर भर दिया। रन्नो तो सातवें आसमान में उड़ने लगी। इस दुनिया में कोई तो है जो केवल उसका है। हर्षातिरेक से उसकी आंखें बंद हो गईं।

देखो रन्नो… अब हमारी सादी हो गई तो तुमको पत्नी का धरम भी निभाना होगा, नहीं तो देवी का कोप होगा तुमपे। समझ रही हो न हमारी बात।

रन्नो ने लजा कर हां कर दिया। अब दोनों के बीच कोई दीवार न रही। देवी मंदिर के पीछे वाला खंडहर उनके मिलन का गवाह बना। अब तो अक्सर ही जीवन के साथ वहां जाकर रन्नो अपना पत्नी धर्म निभाती रही।

इतना प्रेम और संतुष्टि … रन्नो को लगता कि वह बादलों पर तैर रही है।

रन्नो की दसवीं और जीवन की बारहवीं की बोर्ड की परीक्षाएं निकट थीं। दोनों ने तय किया कि अब इम्तिहान बाद ही मिलेंगे।

कोयल की कूक के साथ रन्नो की नींद खुली। आंगन की नीम और तुलसी भोर की पवन की लय पर झूम रही थी। बहुत ही सुहावना मौसम था। इम्तिहान खत्म होने के बाद कल रात उसे गहरी नींद आई थी। सपने में जीवन के साथ उसने चांद-तारों की सैर की थी। रन्नो ने मुंह धोया, बाल बनाए और गुनगुनाते हुए आंगन में झाड़ू लगाने लगी। अचानक उसे जोर की उबकाई आई और वह आंगन की मोरी पर झुक गई।

पीछे से दाई ने उसकी चोटी घसीटी, ‘ऐ नासपीटी …ई पलटी काहे हुई रहीं तुमका… हमका तो कुछ गड़बड़ लाग रही। हम देखि रहीं कि दुई तीन महीना से तुम रोजै तुलसी धार रहीं। तुमका महीना के लत्ता सुखाते भी हम नाहीं देखे …मुंहझौंसी …सही सही बताओ …पेट से हौ का…?’ दाई की आंखों से अंगारे बरस रहे थे।

बेचारी रन्नो …उसे तो खुद समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हुआ। डर के मारे उसने सब सच सच बता दिया।

‘हाय दइया …अब का करबे …कहां मुंह दिखइबे’ …दाई आंगन में बैठ कर छाती पीटने लगी।

उधर दीवार में मुंह दिये रन्नो सिसक रही थी। क्या दाई सच कह रही है? उसके पेट में जीवन का बच्चा है? उसने अपने पेट पर हाथ फेरा, लेकिन उसे कुछ महसूस नहीं हुआ।

रन्नो के पापा रन्नो की मम्मी और बेटे को लेकर एक शादी में गए हुए थे। दाई ने इसे गनीमत माना और पैरों में चप्पल डाल कर फुर्ती से बाहर निकल गई। रामा के घर जाकर उसे पता चला कि जीवन अपने पिता के साथ अपने गांव चला गया और वहां से पढ़ने किसी शहर चला जाएगा। दाई सन्न रह गई। अब एक ही रास्ता सूझा उसे। वह सीधे ठाकुर साहब की बड़ी हवेली पहुंची।

‘अरे संतो दाई …आइए आइए’,  ठाकुर साहब की बड़ी बेटी प्रो. सरला ने हँस कर स्वागत किया।

रोते सिसकते दाई ने सब बताया। दाई की बातों को गंभीरतापूर्वक सुनने के बाद वे बोलीं, ‘दाई मुझे याद है कि आपने मुझे पाला है। मुझे अम्मां की कमी कभी महसूस नहीं होने दी। आप रन्नो को मुझे सौंप दीजिए। मुझे कल ही वापस कॉलेज पहुँचना है। मुझ अकेली को भी सहारा हो जाएगा।’

अगली सुबह कुछ कपड़ों के साथ मन में आशंका की गठरी बांधे, रन्नो सरला के साथ शहर आ गई। क्या जीवन कभी दोबारा मिलेगा …पहला प्यार भुलाना आसान होगा क्या…।

सरला ने अपनी मित्र डॉ. सुधा के नर्सिंग होम में रन्नो का चेकअप कराया। डॉ. सुधा ने जांच के बाद स्पष्ट बताया कि रन्नो की कम उम्र और कुछ कॉम्प्लीकेशंस के चलते गर्भपात संभव नहीं है। बच्चे को जन्म लेने दें। नर्सिंग होम की नि:संतान सीनियर नर्स बच्चे को गोद लेने के लिये तैयार थीं।

रन्नो के खान पान और आराम का पूरा ध्यान रखतीं थीं सरला। हाई स्कूल का रिज़ल्ट आ गया था। रन्नो सेकेंड डिवीज़न में पास हो गई थी। सरला ने उसे आश्वस्त किया कि बच्चे के झंझट से मुक्ति के बाद वे उसे आगे पढ़ाएंगी और नर्सिंग का कोर्स भी करा देंगी जिससे कि वह अपने पैरों पर खड़ी हो सके।

वह एक मूसलाधार बारिश वाला दिन था जब रन्नो को प्रसव के लिये नर्सिंग होम में भर्ती करा दिया गया। रन्नो ने निश्चय किया था कि बच्चे की ओर वो देखेगी ही नहीं कि कोई मोह पैदा हो।

तीन घंटे की असहनीय प्रसव पीड़ा के बाद जब नवजात शिशु की किलकारी गूंजी तो अप्रत्याशित रूप से लेबर रूम में सन्नाटा छा गया। किसी अनहोनी की आशंका से रन्नो का दिल धड़क रहा था। कोई उसे कुछ बता ही नहीं रहा था।

वॉर्ड में सरला ने मरे हुए स्वर में कहा, ‘किन्नर बच्चा पैदा हुआ है रन्नो और अब वह नर्स भी उसे गोद नहीं लेना चाहती।’

जूनियर नर्स बच्चे को नहला धुला कर सारी फॉर्मेलिटीज़ पूरी करके रन्नो के बगल में लिटा गयी। बेहद सुंदर, गोलमटोल, घुंघराले बालों वाला बच्चा।

ये किन्नर कैसे हो सकता है? क्या किन्नर इसे ले जाएंगे? क्या यह भी नाच गाकर, ताली बजा कर अपना जीवन काटेगा? रन्नो के मष्तिष्क में विचारों का तूफान उमड़ रहा था।

‘बता रन्नो …तू क्या चाहती है?’ बेहद ठहरे और सर्द स्वर में सरला बोलीं।

‘दीदी, कोई न ले तो क्या …हमारा बच्चा है, हमीं पालेंगे। देखिए, कैसे हमारी छातियों से दूध फूट पड़ा है।’ रन्नो ने बच्चे को सीने से लगा लिया।

प्रो. सरला ने अपनी सखी डॉ. सुधा से बात कर ली थी कि किन्नर वाली बात बाहर न जाए। बच्चे की सुंदरता और चेहरे की रौनक देखकर सरला ने उसका नाम आभा रख दिया। सरला की देखरेख में रन्नो आभा की परवरिश करने लगी। रन्नो ने इंटरमीडियेट का प्राइवेट फॉर्म भी भर दिया था।

दाई के न रहने की खबर पाकर रन्नो एक दिन के लिए सरला के साथ गांव गई थी। आभा को उन लोगों ने नर्सिंग होम में छोड़ दिया था। रन्नो की निखरी रंगत, कपड़े और बातचीत देखकर सभी हैरान थे। दाई के बाद तो रन्नो ने अपने परिवार को तिलांजलि दे दी।

रन्नो और सरला आभा की परवरिश बेहद सावधानी से कर रही थीं। किसी की गोद में कभी आभा को नहीं दिया और न ही कहीं आना-जाना रखा। पास के गर्ल्स स्कूल में उसका एडमीशन करा दिया। इंटरमीडियेट के बाद नर्सिंग का कोर्स करके रन्नो ने सुधा नर्सिंग होम में ही नौकरी कर ली। अब वह सिस्टर रुक्मिणी थी।

समय पंख लगा कर उड़ रहा था। तेरह वर्ष की होते होते आभा के शरीर में कुछ परिवर्तन आने लगे थे। सीने के उभार के साथ साथ चेहरे पर कुछ रोएं उभरने लगे थे। अब सरला और रन्नो के माथे पर चिंता की लकीरें थीं।

एक दिन सोसायटी के पार्क में एक लफंगे ने आभा को छेड़ दिया। फिर क्या था …आभा ने उस लफंगे को सैंडल से जम कर पीटा और अप्रत्याशित रूप से तालियां ठोंक कर गाली भी दी। बस …पार्क में तमाशा खड़ा हो गया। अरे आभा लड़की नहीं किन्नर है/कुछ तो पहले भी शक होता था/ कोई भी आभा और उसके परिवार से मतलब नहीं रखेगा …जितने मुंह उतनी बातें। सभी एकजुट हो गए थे।

‘बोल चुके आप सब’, तैश में प्रो. सरला पार्क में घुसीं। शर्म आनी चाहिए आप सभी को। जिस ईश्वर ने आपको पुरुष या स्त्री बनाया, उसी ने आभा को किन्नर बनाया। आप हमसे मतलब रखें या ना रखें, आपकी मर्ज़ी …लेकिन मैं आप सभी को बताना चाहती हूँ कि आज ही सुप्रीम कोर्ट ने किन्नरों पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें लिंग के तीसरे वर्ग के रूप में ट्रांसजेंडरों को मान्यता दी है। संविधान के आर्टिकल 14, 16 और 21 का हवाला देते हुए कहा है कि ट्रांसजेंडर भी देश के नागरिक हैं और शिक्षा, रोजगार एवं सामाजिक स्वीकार्यता पर उनका समान अधिकार है। यह सुनकर भीड़ तितर-बितर हो गई।

घर आकर आभा रो पड़ी। क्या सच में मैं किन्नर हूँ? मुझे अंदर से कुछ तो महसूस होता था कि मैं कुछ अलग हूँ। मैं नहीं जानती कि कैसे  मैंने तालियां ठोंकी और गाली भी दी। इस भयानक सत्य को स्वीकार करना कठिन था।

‘न मेरे बच्चे …भगवान ने कुछ सोचकर ही तुझे अलग बनाया होगा। मैं और मौसी हमेशा तेरे साथ हैं। जो सच है उसे स्वीकार कर ले मेरी बच्ची।’ रन्नो ने आभा को गले लगा लिया। जिस तूफान का उन्हें डर था, आज वह आ ही गया।

‘मां, आप तो नॉर्मल हो तो क्या मेरे पापा में कोई कमी थी जो मैं ऐसी पैदा हुई? आप पापा के बारे में कुछ बतातीं क्यों नहीं?’

‘नहीं बच्ची, तेरे पापा भी नॉर्मल थे। कभी न कभी वे हमें जरूर मिलेंगे। तेरी जिंदगी कठिन होगी, लेकिन मुझे विश्वास है कि मेरा बहादुर बच्चा इस समाज में अपनी जगह बना लेगा।’  रन्नो ने आभा का माथा चूम लिया ।

सोसायटी और सरला के परिवार के बीच मानो एक शीतयुद्ध छिड़ गया था। सामने तो कोई कुछ नहीं बोलता, लेकिन पीठ पीछे सबकी गॉसिप का केंद्र आभा ही होती थी।

स्कूल में भी हालात जुदा नहीं थे। आभा की ही चर्चा हर जगह हो रही थी। लड़कियां तो छक्का, चिकना, हिजड़ा जैसे शब्द भी आभा की तरफ उछाल देतीं। उसके शरीर पर यहां-वहां हाथ लगातीं। कुछ उद्दंड छात्राओं ने तो यहां तक कह दिया कि ऐसा क्या है तेरे पास जो तुझे किन्नर कहा जाता है …दिखा तो दे यार …अरे, पैसे ले लियो।’

‘रन्नो, जैसे आभा बता रही है, स्कूल में इसे पढ़ाना खतरे से खाली नहीं है। अब हम इसे प्राइवेट शिक्षा दिलाएंगे। सुप्रीम कोर्ट का फैसला भले ही आ गया हो, लेकिन आभा जैसे बच्चों को अपनाने में हमारे समाज को अभी काफी वक्त लगेगा। सरला ने बर्फ जैसे सर्द स्वर में कहा।

आभा को हाई स्कूल का प्राइवेट फॉर्म भरवा दिया गया। घर पर पढ़ाई के साथ पेंसिल स्केचिंग और बागवानी में उसका खूब मन लगता था।

अपनी योग्यता और व्यवहार से रन्नो ने नर्सिंग होम में एक ऊंचा मुकाम हासिल कर लिया था। उसका रुतबा डॉक्टर से कम नहीं था। मरीज पलक पांवड़े बिछा कर ऐसे उसका इंतजार करते जैसे कि प्यासी धरती मेघों का रास्ता देखती है। समय अपनी निर्बाध गति से चलता रहा।

‘मां, मेरा बी.ए. तो हो गया। अब मुझे आगे नहीं पढ़ना। मैं एक एनजीओ बनाना चाहती हूँ जो मेरे जैसे बच्चों के लिए काम करे, क्योंकि हर किन्नर बच्चा मेरे जैसा भाग्यशाली नहीं होता।’ आभा के ऊंचे विचार जानकर रन्नो और सरला को अपनी परवरिश पर बहुत गर्व महसूस हुआ।

घर में न जगह की कमी थी न पैसे की। बहुत जल्दी ‘तीसरी दुनिया’ एनजीओ अस्तित्व में आ गया। रिटायरमेंट के बाद सरला ने अपना पूरा समय और ऊर्जा एनजीओ में झोंक दिया। बहुत कम समय में ही ट्रांंसजेंडरों के लिए किए जाने वाले कामों को लेकर ‘तीसरी दुनिया’ अख़बारों की सुर्ख़ियां बटोरने लगा था। आभा को समाज में बहुत सम्मान एवं सहयोग मिल रहा था।

सुबह से ही हल्की बारिश के बाद ठंडी हवाएं चल रही थीं। बहुत ही सुंदर और मनोरम सुबह थी। नाश्ते के समय प्रदेश की राजधानी से आए एक फोन ने ‘तीसरी दुनिया’ में खुशी का माहौल बना दिया। प्रदेश सरकार द्वारा एनजीओ को सम्मानित किया जाना था।

खचाखच भरे ऑडिटोरियम में राज्यपाल महोदय के हाथों आभा को सम्मान प्राप्त करते देखकर सरला और रन्नो की छाती चौड़ी हो गई। पत्रकारों ने आभा को घेर लिया था। आभा ने पूरा श्रेय अपनी मां और मौसी मां को दिया। 

एक दिन प्रो. सरला को दिल का दौरा पड़ा। रन्नो ने फौरन सरला को नर्सिंग होम में दाखिल करके उपचार शुरू कर दिया। मुसीबत की घड़ी टल गई।

‘रन्नो, अब मेरी उम्र हो चली है। मेरी मान तो तू शादी कर ले। डॉ. संजीव तुझसे शादी करना चाहते हैं।’ बिस्तर पर लेटी सरला ने रन्नो का हाथ थामकर बड़े लाड़ से कहा।

‘नहीं दीदी, मैंने सिर्फ जीवन से प्यार किया है। किसी और से शादी करना मेरे लिए संभव नहीं है। मैं माफी चाहती हूँ कि पहली बार आपकी बात काट रही हूँ।’ रन्नो ने नज़रें झुका लीं।

‘अच्छा, चल ये बता कि किसी मोड़ पर तुझे जीवन मिल जाए तो तू अपना लेगी उसे?’

‘सोचूँगी दीदी, अब आप आराम करें। कल आपको घर ले चलेंगे।’

संडे को रन्नो ने ऑफ ले लिया था। सरला के लिए चाय बनाने के लिए जैसे ही वह किचेन की ओर बढ़ी, डोरबेल बजने लगी। इतनी सुबह कौन आ गया, यह सोचते हुए उसने दरवाज़ा खोला। जीवन …उसकी आंखें धोखा नहीं खा सकती थीं। उसके पैर वहीं चौखट पर जम गए थेे।

डोरबेल की आवाज सुनकर आभा भी अपने कमरे से निकल आई थी। ‘कौन आया है मां?  अरे सर आप! …आइए अंदर आइए।’

ड्रॉइंग रूम में उन्हें बैठा कर आभा सरला को भी बुला लाई।

‘मां, आप जीवन प्रकाश साहू सर हैं। जीवन सर ‘जिंदगी एहेड’ चैनल के हेड हैं। सर एनजीओ के ऑफिस में मुझसे मिलने आए थे। आप कहाँ की हैं, क्या नाम है? सब पूछा और आपसे मिलने की इच्छा ज़ाहिर की।’  आभा चहक रही थी।

रन्नो को भौंचक्की सी जीवन को घूरते देखकर सरला को सहज ही अंदाज़ा लग गया कि ये वही जीवन है।

‘रन्नो, मुझे माफ कर दो’, जीवन घुटनों के बल बैठ गया था। उसकी आंखों में आंसू झिलमिला रहे थे। मुझे बच्चे के बारे में कुछ पता नहीं था। मैं तुम्हारी खुशियां लौटाना चाहता हूँ। मैं आभा को अपना नाम दूंगा। मुझे अपना लो प्लीज़।’

आभा हतप्रभ थी …‘ये मेरे पापा हैं???’

सरला बिलकुल शांत और तटस्थ बैठी थीं। फैसला रन्नो को ही लेना था।

‘मैंने क्या कुछ नहीं सहा जीवन …सरला दीदी न होतीं तो मैं कब की आत्महत्या कर चुकी होती। आभा के लिए समाज से जूझना, उसकी परवरिश करना, अपने पैरों पर खड़े होना …सरला दीदी के अलावा कौन था मेरे साथ’ रन्नो क्रोध से हाँफने लगी थी। ‘बोलो जीवन …क्या तुमने शादी नहीं की?’

‘की थी रन्नो, पर दो साल पहले एक बस दुर्घटना में मेरी पत्नी औेर बेटा गुज़र गए। मैं अकेला रह गया।’ जीवन की आवाज़ लरज रही थी।

‘ओह …तो अपनी पत्नी और बेटे की जगह मुझसे और आभा से भरना चाहते हो? मैं स्टेपनी नहीं हूँ …समझे?? निकल जाओ यहां से।’ रन्नो की आंखों से अंगारे बरस रहे थे।

जीवन ने सरला और आभा की ओर बड़ी उम्मीद से देखा, लेकिन कुछ सकारात्मक न पाकर हारे हुए जुआरी की भांति सिर झुकाए मरे-मरे कदमों से बाहर निकल गया।

 

संपर्क : डी.एम. कॉलोनी रोड, जी आई सी मैदान के सामने, सिविल लाइन्स, बांदा-210001 (.प्र.) मो. 8795154976

Paintings : Shipra Bhattacharya