युवा कवयित्री। एक कविता संग्रह ‘दो औरतें’। संप्रति अध्यापन।
प्रेम करो
प्रेम करो
जैसे मिट्टी करती है
बीज से
जैसे पहाड़ करते हैं
नदी से
मां करती है शिशु से
आसमान करता है
जमीन से
वैसे ही तुम प्रेम करो मुझे
नेह का एक छोर थाम कर
मुक्त करो मुझे मेरे लिए।
मार्च
प्रेम तुम आना
मेरे जीवन में
जैसे साल में आता है मार्च
बसंत की बहार बनकर
फाग का त्योहार लेकर
सतरंगी इंद्रधनुष से छा जाना
प्रेम तुम जब भी आना
जिंदगी के सूखे ठूंठ पर
नर्म पत्तों से मुस्कराना।
उत्तराधिकार
उड़ जाना चिड़िया के पंखों पर बैठ
तोड़ लाना चांद, तारे
सूरज को उतार कर
अपने शीश पर सजा लेना
उसकी सही जगह आसमान नहीं
उससे भी ऊंचा तुम्हारा मस्तक है
किताबें ले जाएंगी तुम्हें
उस सत्य तक
जिसे पढ़ कर जान सकोगी तुम
सवाल करना और अपनी जगह हासिल करना
अपराध नहीं होता
ज्ञान तर्क करना सिखाता है
और अज्ञान सहमति
विज्ञान के रहस्यों से पर्दा उठाते तुम्हारे हाथ
कुप्रथाओं की जड़ों में तेजाब का काम करेंगे
तुम नेकी कर दरिया में मत डाल देना
अपने काम का बराबर हिसाब रख
गलत साबित कर देना
उनकी यह धारणा
कि लड़कियां गणित में कच्ची होती हैं
जब लोग तुम्हारे चरित्र पर बातें करें
तुम अपनी कामयाबी का परचम
उनकी जीभ के बीचोबीच गाड़ देना
तुम जरूर ढूंढ़ना
वो सपने, वो उम्मीदें
जिन्हें हम स्त्रियां
रसोई घर के ताखे पर रखकर भूल गईं
कभी मिट्टी में घोल कर चूल्हे पर पोत दिया
अपने घर में
हमारा अपना कोई कोना जरूर ढूंढना
कमर पर पड़े नीले दाग धब्बों के नीचे दबी
रोशनाई से अपना नाम लिखने की चाहत को
जरूर पढ़ना तुम
जरूर पूछना बड़की, छुटकी, मझली बहू
पूरबनी, पछाई, गंगा पार चाची
रमासरे की दुलहिन, कुलशेखर की माई से
उनका अपना असली नाम
मेरी बच्चियों तुम्हारी माएं
उत्तराधिकार में बस यही दे रही हैं तुम्हें
कुछ सवाल
कुछ हिसाब
चंद ख्वाब
रत्ती भर साहस
और ढेरों आशीष!
सुख-दुख
सुख चिड़िया सा आया
पल भर बैठा
फुर्र से उड़ गया
दुख अजगर सा आकर
पसर गया जीवन में।
संपर्क :गांव+पोस्ट – गोटका, तहसील– सरधना, जिला –मेरठ, उत्तर प्रदेश–250344 मो.7068629236
बहुत खुवसुरत हैं ये कविताएँ । शब्दोंके साथ साथ मन चलने लगता है ।
वागर्थ का अगस्त 2023 अंक प्राप्त हुआ। आद्योपांत अंक बेहतरीन और संग्रहणीय है। संपादकीय में समसामयिकता को आधार बन लिखा लेख ‘स्वतंत्रता की जययात्रा’ बेहद सटीक है। कहानियों में नासिरा शर्मा जी द्वारा लिखित आँचल के बीज शीर्षक कहानी भावपूर्ण और ग्राम्य आंचलिकता के प्रति अपनत्व से युक्त है। किस प्रकार कोहड़े के बीज से उगी बेलें कहानी की पात्र कंचन के दिल मे गांव की अनुभूतियों को ज़िंदा करती है, शानदार है। चित्रा पंवार, अशोक कुमार और सत्यव्रत रजक की कविताएं विशेष रूप से सराहनीय है। अन्य कहानियां, कविताएँ और लेख भी प्रशंसनीय है। संपादकीय टीम को बेहतर चयन के लिए बधाई।