रश्मि अपने भाषण की प्रैक्टिस कर रही थी। साथ में थी उसकी बेस्ट फ्रेंड – उसकी दादी! वह बोलती, फिर दादी से उस पर डिस्कस करती। अचानक उसे कुछ याद आया। वह बोली- ‘दादी, आप कुछ बोलिए।’
दादी अचकचा गई, ‘मैं! मैं क्या बोलूँ!’
‘कुछ भी। वही जो हमे रोज सुनाती हो’, रश्मि बोली।
दादी के लिए यह बिल्कुल नई बात थी। वह कुछ सोचने लगी। रश्मि ने जिद किया तो दादी बोली, ‘अच्छा जाओ, डेस्क से घोषणा करो।’
वह जाकर बोली, ‘आज हमारी दादी…।’
दादी ने उसे रोकते हुए कहा, ‘नहीं, … दादी नहीं। नाम से…!’
‘क्यों, दादी कहने से नहीं चलेगा?’
‘नहीं…। क्या है कि बहुत साल हो गए मुझे अपना नाम सुने!’

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