सुपरिचित कथाकार और कवि।बीड़ी पीती हुई बूढ़ी औरत’ (कविता संग्रह) और बारिश थमने के बाद’ (कहानी संग्रह) प्रकाशित।त्रैमासिक पत्रिका पाठका संपादन।

 

सुबह के नौ बज रहे हैं।सोमनाथ बाबू ने कलाई पर बंधी घड़ी की तरफ देखा।कैलाश जी की अर्थी को ग्यारह बजे मुक्तिधाम ले जाने की तैयारी हो रही है।उनकी बेटी के आने का इंतजार है।वह बैंगलूर में रहती है।बेटी को साथ लेकर सुबह दस तक फ्लाइट से पहुंच जाएगी।पति नहीं आ रहे हैं, वे कंपनी के काम से बाहर गए हुए हैं।रात में ही फोन से उनको यह दुखद समाचार दे दिया गया था।

इकलौता बेटा मनीष सुबह से ही पिता के अंतिम संस्कार के काम में लगा है।सारी व्यवस्था उसी के कंधे पर है।सारे रिश्तेदार, परिजन व आत्मीयजनों को यह दुखद समाचार उसने सुबह फ़ोन से दी।पंडित जी से कहकर, सामान की सूची उन्होंने वाट्सअप पर मंगाई थी।

बरामदे के फर्श पर कैलाश जी की अर्थी रखी हुई है।घर के भीतर जगह न होने के कारण लोगों के बैठने के लिए बाहर सड़क पर टेंट वाली कुर्सियां बिछा दी गई हैं।

सोमनाथ बाबू अर्थी के पास सुबह से ही बैठे थे, अभी उठकर वह बाहर निकल आए और सड़क पर बिछी कुर्सी पर बैठ गए।सोमनाथ बाबू सबसे पहले पहुंचने वाले व्यक्ति हैं।पड़ोस में ही रहते हैं।रोज की तरह आज भी सुबह मॉर्निंग वॉक के लिए निकले थे।वह और कैलाश जी दोनों पास के विवेकानंद गार्डन में टहलने जाते थे।पिछले छह सालों से उनका साथ रहा है।

आज भी सोमनाथ बाबू समय पर घर से निकले थे और कैलाश जी के घर के दरवाजे के बाहर आकर ठिठक कर खड़े हो गए थे।देखा तो दरवाजे पर कैलाश जी इंतजार करते हुए खड़े नहीं दिखे।उन्हें कुछ आश्चर्य हुआ।जब कभी कैलाश जी की तबीयत बिगड़ती है या फिर जरूरी काम से उन्हें शहर से बाहर जाना होता है तब वे सोमनाथ बाबू को फोन पर बता दिया करते थे।आज उन्होंने फोन भी नहीं किया।फिर एकाएक उनकी नजर गेट के पास बाउंड्री वॉल पर लगी कालिंग बेल पर पड़ी।घंटी बजाई तो थोड़ी देर में उनका बेटा मनीष बाहर निकल आया और रूंधे स्वर में सोमनाथ बाबू को कल रात कैलाश जी के निधन का समाचार बताया।

निधन का समाचार सुनकर सोमनाथ बाबू स्तब्ध रह गए।उनकी आंखें पथरा गईं, पांव जमीन पर जड़ गए।वे कुछ कह नहीं पा रहे थे।तभी मनीष ने उनका हाथ पकड़कर उन्हें घर के भीतर बरामदे में, जहां कैलाश जी की अर्थी रखी हुई है, वहां पास के सोफे पर बिठा दिया।कुछ देर के बाद मनीष  सोमनाथ बाबू को रात वाली घटना के बारे में बताने लगा- ‘शाम को पापा बिलकुल ठीक थे, टीवी पर समाचार देखने के बाद समय पर भोजन भी किए।भोजन के बाद कुछ देर तक वे अखबार पढ़ते रहे, तभी उन्होंने बेचैनी और सीने में दर्द महसूस किया।फिर मम्मी को बुलाया, मम्मी ने गैस बताकर बात को यूं ही टाल दिया।पापा काफी देर तक बिस्तर पर सोने का प्रयास करते रहे पर वे सो नहीं पा रहे थे।रात में जब मम्मी सोने के लिए बिस्तर पर गई तो देखा, पापा बिस्तर पर बैठे हैं, मम्मी ने पूछा- ‘तबीयत कुछ ज्यादा ही खराब महसूस कर रहे हैं क्या?’ पापा ने ‘हां’ कहा।तभी मम्मी ने पापा के माथे पर पसीना देख घबरा कर  मुझे आवाज दी।मैं देर न करते हुए पापा को सी.टी. अपोलो सेंटर ले गया।प्रारंभिक जांच में ही डॉक्टरों ने उनके निधन होने की पुष्टि कर दी।कैलाश जी का निधन डॉक्टरों ने हार्टअटैक से होना बताया।

कैलाश जी के एकाएक इस तरह चले जाने से सोमनाथ बाबू काफी शॉक्ड हुए।उनको यह विश्वास ही नहीं हो रहा था कि अब वे इस दुनिया में नहीं रहे।वे काफी देर तक स्वयं को संभालने में लगे रहे।कुछ समय के पश्चात उन्होंने पत्नी को फोन पर कैलाश जी के निधन का समाचार दिया।पत्नी यह सुनकर काफी दुखी हुई, उनका गला भर आया।

उन्होंने भारी स्वर में सोमनाथ बाबू से कहा- ‘आप ने सुबह से कुछ खाया पिया नहीं है, खाली पेट हैं।सुबह की दवाई भी आपको लेनी है…।’ सोमनाथ बाबू ने बीच में ही पत्नी की बात को रोककर कहा-‘तुम मेरी चिंता मत करो, मैं ठीक हूँ।लौटने में मुझे देर होगी, शायद दोपहर के बाद तक…।’ यह कहकर उन्होंने फोन काट दिया।

पत्नी को वे कैसे समझाएं कि उनकी मन:स्थिति अभी ठीक नहीं है।कैलाश जी का साथ उनका एक दो बरस का नहीं पूरे छह साल का है।और इतने सालों की पहचान वह कैसे यूं ही भुला पाएंगे। अकसर मॉर्निंग वॉक से लौटते समय कैलाश जी सोमनाथ बाबू को अपने घर बुलाकर चाय पिलाते थे।फिर घंटों देश दुनिया की बातें करते थे।वैसे भी कैलाश जी बातूनी किस्म के इंसान थे।वे हर विषय पर विशेष ज्ञान रखते थे।राजनीति, ट्रेड यूनियन एवं अध्यात्म पर वह धाराप्रवाह बोलते रहते थे।उनको सुनना खुद को समृद्ध करना होता था।कल सुबह भी वॉक से लौटते समय वे सोमनाथ बाबू को घर पर चाय पिलाने की जिद करने लगे थे, पर सोमनाथ बाबू ने यह कहकर मना कर दिया था कि उन्हें सब्जी लेने बाजार जाना है।आज सोमनाथ बाबू को इसी बात का बड़ा दुख हो रहा था।

अभी-अभी चार महीने ही हुए हैं कैलाश जी सहकारी मर्यादित बैंक से मैनेजर के पद से रिटायर हुए थे।अभी-अभी तो वे पूरे साठ साल के हुए थे।सोमनाथ बाबू बहत्तर साल के हैं, यानी बारह साल छोटे थे कैलाश जी।पर उनकी दोस्ती ऐसी थी जैसे दोनों हमउम्र के थे।रिटायर होने के बाद भी कैलाश जी काफी व्यस्त रहते थे।वे काफी ऊर्जावान भी थे।नौकरी में रहते समय वे ट्रेड यूनियन के अध्यक्ष पद पर थे, रिटायरमेंट के बाद भी वे परामर्श मंडल के सदस्य बने रहे।इसके अलावा वे अनेक सामाजिक संगठनों से जुड़े रहे।मिलनसार व मृदुभाषी होने के कारण सभी से उनका आत्मीय संबंध बना रहा।

बीमारी के नाम से उनको सिर्फ सुगर की बीमारी थी।जब यह बीमारी पहली बार पकड़ में आई तब डॉक्टर ने उनको दवा के साथ-साथ सुबह मॉर्निंग वॉक के लिए सलाह दी थी।तभी से कैलाश जी का सुबह जल्दी उठना और वॉक पर जाने की आदत पड़ी थी।

सोमनाथ बाबू से कैलाश जी की पहली मुलाकात इसी विवेकानंद गार्डन में सुबह मॉर्निंग वॉक के समय हुई थी।सोमनाथ बाबू गार्डन में तीस-पैंतीस मिनट टहलने के बाद कुछ देर लोहे की बनी बेंच पर बैठकर सुबह की ताज़ा हवा का आनंद लेते हैं।ऐसे ही एक दिन सोमनाथ बाबू बेंच पर बैठे थे कि कैलाश जी भी उनके बगल में बैठ गए।कुछ देर मौन रहने के बाद कैलाश जी सोमनाथ बाबू की तरफ़ देखकर बोले- ‘आप यहां रोज आते हैं….।’

‘जी’ सोमनाथ बाबू ने उनकी तरफ देखकर गंभीर स्वर में कहा।

‘आप पास में ही कहीं रहते हैं’ कैलाश जी ने मुस्करा कर पूछा।

‘जी हां, कालिंदी नगर… पास में ही है।और आप…।’ सोमनाथ बाबू ने उनकी तरफ देखकर कहा।

‘रॉयल टाउन… यहीं पास में है…।’

‘मैं तो रोज आपके कॉलोनी के रास्ते से ही गार्डन आया करता हूँ।’

यह सुनकर कैलाश जी काफी खुश हुए।

‘जी, यह तो बहुत अच्छी बात है।कल से हम दोनों साथ-साथ गार्डन आया-जाया करेंगे।’

‘जी, बिलकुल…।’ कैलाश जी मुस्करा दिए।

इस तरह सोमनाथ बाबू की पहचान कैलाश जी से हुई थी।पहचान कुछ ही दिनों में दोस्ती में बदल गई।जो कल तक साथ रहा।कल सुबह भी कैलाश जी तरोताजा दिख रहे थे और आज अचानक यह सब हो गया।पुराने दिनों की बातें याद कर सोमनाथ बाबू की आंखें छलक उठी थीं।

सोमनाथ बाबू भी लगभग पंद्रह सालों से मॉर्निंग वॉक पर निकल रहे हैं।बारिश में छाता और ठंड में मफलर एवं फुल स्वेटर पहनकर निकलते हैं।उनको भी सुगर की बीमारी है।उम्र बढ़ने के साथ-साथ उनको सुगर के अलावा भी अन्य बीमारी शरीर में घर कर गया है।कोलेस्ट्रॉल, थायराइड, यूरिक एसीड से भी वे ग्रसित हैं।तीन साल पहले उन्होंने अपनी दोनों आंखों का मोतियाबिंद ऑपरेशन भी कराया है।खान-पान में परहेज व नियमित सुबह सैर के बावजूद बीमारियां कंट्रोल में नहीं रहतीं।वे हर तीन माह पर लैब में जाकर अपनी बीमारी की जांच भी कराते हैं और डॉक्टर की सलाह पर अपनी दवाइयां भी लेते रहते हैं।

सड़क पर बिछी हुई कुर्सियां भरने लगी थीं।लोगों के दुपहियों की भीड़ सड़क पर दूर तक लगी थी।बरामदे व बगीचे में महिलाओं की भीड़ थी।बहुत सारे लोग व मनीष के दोस्त सीधे मुक्तिधाम पहुंच रहे थे।

कैलाश जी के घर पर भीड़ देखकर सोमनाथ बाबू को आश्चर्य हो रहा था।वे सोच रहे थे कि उनकी अर्थी पर इतनी भीड़ कहां होगी।कैलाश जी की तरह वे खुलकर जीवन जी नहीं सके।शुरू से ही वे संकुचित व अकेला रहना पसंद करते थे।इसकी वजह से शहर में उनकी पहचान सीमित रही है।उन्हें अपनी इस आदत पर अफसोस है।पर अपनी आदत को वे सुधार नहीं सके।

कैलाश जी ने शहर के प्राइम लोकेशन पर यह दो मंजिला मकान नौकरी में रहकर बनाया है।रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, स्कूल-कॉलेज, मॉल, अस्पताल, बैंक, सब्जी मार्केट, राशन दुकान सभी नजदीक में हैं।उनकी बड़ी बेटी बैंगलूर में रहती है।उसका पति सॉफ्टवेयर इंजीनियर है, उनकी दो बेटियां हैं।मनीष उनका इकलौता बेटा है, वह आर्किटेक्ट है।शहर में उसका अच्छा नाम है।सदर में उसका ऑफिस है।मनीष पत्नी और सात साल के बेटे के साथ ऊपर वाले तल्ले में रहता है, नीचे कैलाश जी पत्नी के साथ रहते थे।

सोमनाथ बाबू, कैलाश जी के मकान से थोड़ी दूर पर रहते हैं।मकान पुराना है, रिटायरमेंट के बाद ही खरीदा है।नौकरी के समय सरकारी क्वार्टर में रहते थे।रिटायरमेंट के पैसों के आधे पैसे बैंक में छोटी बेटी की शादी के लिए जमा कर दिए थे और बाकी के पैसों को यह पुराना मकान खरीदने एवं मरम्मत करने में खर्च किए थे।

कैलाश जी तो हायर सेकेंडरी पास थे, पर उन्होंने अपने दोनों बच्चों को इंजीनियरिंग पढ़ाया।नौकरी में रिटायरमेंट से पहले वे सहकारी बैंक में ब्रांच मैनेजर का प्रमोशन भी पा गए थे।लेकिन सोमनाथ बाबू खुद एम.एससी की डिग्री हासिल करने के बाद भी अपनी बेटियों को ग्रेजुएशन नहीं करा पाए।बच्चे सभी पढ़ने में कमजोर थे।वे खुद भी विभाग की नौकरी में सेक्शन ऑफिसर नहीं बन सके थे।केवल बड़े बाबू ही थे।प्राय: सभी क्षेत्रों में कैलाश जी सोमनाथ बाबू से बेहतर थे।

सोमनाथ बाबू जिस मोहल्ले में रहते हैं वह इलाका काफी पिछड़ा हुआ है।सड़कें संकरी व जर्जर, सड़क बत्ती के खंभे खड़े तो हैं पर सालों से बल्ब यूज होने से रात के समय सड़क पर अंधेरा छाया रहता है।सड़क के दोनों तरफ की नालियों का गंदा पानी सड़क के ऊपर आ जाता है।यह स्थिति बरसात के मौसम में और ज्यादा बिगड़ जाती है।नगर निगम वालों की उदासीनता और इस वार्ड के पार्षद की लापरवाही की वजह से मोहल्ले वासियों को परेशानी उठानी पड़ती है।प्राय: सभी के घर में छायादार व फलदार पेड़ लगे होने के कारण सूर्य की रोशनी घर के भीतर व आंगन में पहुंच नहीं पाती।उनकी तुलना में कैलाश जी का मोहल्ला काफी अच्छा है।साफ-सफाई व अन्य सुविधाएं यहां के लोगों को बराबर मिलती रहती हैं।

एकाएक महिलाओं के रोने की आवाज से सोमनाथ बाबू का ध्यान टूटा।अर्थी घर से उठाने का समय हो गया है।बेटी तो पहले ही समय से आ चुकी है, अब किसी भी बात की देरी नहीं।तभी एकाएक मनीष ने सोमनाथ बाबू के पास आकर कहाअंकल, आप पापा जी के साथ शव वाहन पर बैठ जाइएमैं भी आपके साथ बैठ जाऊंगा।

एकाएक मनीष की बात सुनकर सोमनाथ बाबू चौंक पड़े थे।उन्होंने यह सोचा भी नहीं था कि उन्हें कैलाश जी की अर्थी के साथ शव वाहन में बैठकर मुक्तिधाम श्मशान घाट जाना होगा।उन्होंने तो सोचा था कि किसी के दुपहिया वाहन के पीछे बैठकर चले जाएंगे और लौटते समय किराए की ऑटो से घर लौट आएंगे।

सोमनाथ बाबू को याद आ रहा है कि ग्यारह साल पहले उन्होंने गांव में पिता की अंतिम यात्रा में कंधा दिया था।और मुखाग्नि भी।घर के बड़े लड़के जो थे।मां के समय वह गांव पहुंच नहीं सके थे।दफ्तर में ऑडिट का काम चल रहा था।अभी चार महीने पहले ही मोहल्ले के घोष बाबू के निधन के समय भी वे अर्थी के साथ श्मशान घाट गए थे।

एकाएक लोगों के बीच में से निकलकर मुरली यादव सोमनाथ बाबू के पास आकर खड़े हो गए और उनकी तरफ देखकर बोले- ‘अरे! अंकल जी, नमस्ते! कैसे हैं आप? काफी दिनों के बाद आपसे मुलाकात हुई… आपकी तबीयत तो ठीक है न, पहले से आप काफी कमजोर दिख रहे हैं।आपकी सुगर-उगर तो सब ठीक है न।संभल कर रहिएगा।वैसे भी आपकी उम्र हो रही है… आजकल कोई भरोसा नहीं है।कैलाश जी को देखिए, स्वस्थ थे, गोरे चिट्टे, साढ़े पांच फुट के फुर्तीले आदमी एकाएक चल बसे…।’ सोमनाथ बाबू चुप खड़े थे।बोलते भी तो क्या? सही कह रहे थे।मुरली यादव की चौराहे पर डेयरी की दुकान है।पचास-पचपन की उम्र के मुरली यादव बहुत बातूनी किस्म के इंसान हैं।खुद दूध-घी खाकर दिन-ब-दिन मोटाते जा रहे हैं।उनको अपने स्वास्थ्य का ध्यान नहीं है।लोगों के पीछे पड़े हैं।

सोमनाथ बाबू काफी देर तक मुरली यादव की कही गई बातों के बारे में सोचते रहे कि क्या वे सचमुच बीमार जैसे दिखने लगे हैं।उम्र का असर चेहरे पर जरूर दिखता है पर वह बीमार नहीं हैं।

तभी एकाएक सत्ताईस-अट्ठाईस साल के एक लड़के ने सोमनाथ बाबू की तरफ देखकर दोनों हाथ जोड़कर नमस्ते की मुद्रा में कहा- ‘अंकल जी नमस्ते! कैसे हैं आप…?’

सोमनाथ बाबू ने उसकी तरफ देखा, वे उस लड़के को पहचानने की कोशिश करने लगे।पर पहचान नहीं पा रहे थे।उन्होंने आश्चर्यचकित होकर लड़के से पूछा- ‘मैंने तुम्हें पहचाना नहीं बेटा…।’

‘मैं रमेश हूँ।मैं आपके घर पासबुक पहुंचाने जाया करता था…।’

‘ओह! तुम विनोद साव के बेटे हो…।’ सोमनाथ बाबू को याद आया।

‘जी अंकल…।’

‘पापा कैसे हैं…।’

‘दो साल पहले ही उनका देहांत हो गया…।’ लड़के ने कहा।

यह सुनकर सोमनाथ बाबू स्तब्ध रह गए।उन्हें बहुत दुख हुआ।

‘अरे कैसे? क्या हुआ, बीमार थे?’

‘जी अंकल।उनके मुंह में कैंसर हो गया था…।’

‘हे भगवान, कैसी-कैसी बीमारी…’

‘आप ठीक हो अंकल…।’ लड़के ने पूछा।

‘हाँ बेटा, मैं ठीक हूँ…।’

सोमनाथ बाबू विनोद साव के बारे में सोचने लगे।वे पोस्ट ऑफिस में पोस्टमास्टर थे।खूब जर्दा वाला पान खाया करते थे।घर के नजदीक पोस्ट ऑफिस होने के कारण सोमनाथ बाबू ने रिटायरमेंट के कुछ पैसे पोस्ट ऑफिस में जमा कर रखे थे।तभी से उनका परिचय है।जब वे नौकरी में थे तब सोमनाथ बाबू के घर आकर पासबुक दिया करते थे।रिटायरमेंट के बाद उन्होंने पत्नी के नाम से एजेंसी ले रखी थी।तब से उनका बेटा पासबुक छोड़ने घर आया करता था।आज अचानक उनके निधन का समाचार सुनकर वे बहुत आहत हुए।धीरे-धीरे पहचान के लोग इस दुनिया को छोड़कर जाने लगे हैं।

सोमनाथ बाबू शव वाहन में बैठने के लिए वाहन पर चढ़ रहे थे, तभी किसी को यह कहते सुनाअंकल जी, आप वहां कहां बैठ रहे हैं, आप तो बुज़ुर्ग हैं।वहां बैठने से आपकी तबीयत बिगड़ सकती है।आपको तो बाइक में जाना चाहिए

गाड़ी की सीट पर बैठते समय सोमनाथ बाबू ने पीछे पलटकर देखा तो एक पचीसछब्बीस साल का लड़का पास खड़ा दिखा।सोमनाथ बाबू ने मन ही मन सोचा, आजकल के लड़के भी उसे डराने लगे हैं।कहीं वह गाड़ी से गिर न पड़े।

शव वाहन शहर की सड़क के किनारे से चल रहा था।वाहन में स्पीकर पर भजन बज रहा था।काफी संख्या में लोग अपने अपने दुपहिया से शव वाहन के पीछे लाइन से चल रहे थे।यही वह रास्ता है जिससे सभी को चलकर एक दिन इस मायावी दुनिया को त्याग कर अग्नि में जलकर राख हो जाना है।तभी सोमनाथ बाबू के फोन की घंटी बजने लगी।उन्होंने सोचा अभी इस वक्त फोन पर बात करना ठीक नहीं होगा।पर जब देखा कि फोन छोटी बेटी का है, जो इसी शहर में रहती है, वे फोन पर बात करने लगे।

‘हां बेटी, बोलो…।’

‘क्या जरूरत थी पापा आपको अर्थी के साथ श्मशान घाट जाने की।आपकी तबीयत ठीक नहीं रहती।मम्मी कह रही थी कि आप सुबह से ही वहां चले गए हैं।दवा भी नहीं खाई और नाश्ता भी नहीं किया।कहीं आपकी तबीयत बिगड़ जाए तो क्या होगा।अब आपकी उम्र नहीं रह गई इधर-उधर जाने की।देख तो रहे हैं, आपके मित्र का निधन कैसे हो गया।वे तो एकदम स्वस्थ थे फिर भी एकाएक चल बसे।आपको अपने बारे में सोचना चाहिए।उधर मम्मी परेशान हो रही है।अगर आपको कुछ हो जाए तो मम्मी का क्या होगा।’ बस इतना ही सुनकर सोमनाथ बाबू ने फोन काट दिया।इस वक्त उन्हें किसी की बात अच्छी नहीं लग रही है।लोग कितने स्वार्थी हो गए हैं, सिर्फ अपने ही बारे में सोचते रहते हैं।जब किसी को जाना होगा, उसे कोई रोक नहीं सकेगा।क्या डॉक्टर भी कैलाश जी को मौत से बचा पाए…।

जेब में रखी मोबाइल की घंटी लगातार बज रही थी।सोमनाथ बाबू ने देखा तो मनेंद्रगढ़ से बड़ी बेटी का फोन है।पता नहीं वह और क्या कहकर अपने पापा को समझाने की कोशिश करेगी।सोमनाथ बाबू वाहन में लगी, स्पीकर पर बज रहे भजन के भक्ति स्वर में डूबने की कोशिश करने लगे।

संपर्क : रॉयल टाउन, अपोज़िट गुलाब नगर, मोपका४९५००६, बिलासपुर, छत्तीसगढ़, मो.९९०७१२६३५०

Paintings : Google