1992- केरल की आदिवासी कवयित्री। मलयालम के अलावा आदिवासी भाषा मालिलन तुड में कविताएं लिखती हैं। एक कविता संग्रह प्रकाशित। ‘वसुमती कविता पुरस्कार’ से सम्मानित।
कवि और अनुवादक। हिंदी में 40 किताबें प्रकाशित। कोचिन में मात्स्यिकी विभाग में संयुक्त निदेशक (राजभाषा) के पद पर कार्यरत।
शुरुआत और अंत
मैं चल रही थी
पीछे से यह कहानी सुनी मैंने
इस कहानी की
न कोई शुरुआत है न कोई अंत
कहानी इस प्रकार है
आम का पेड़ मेरी दादी ने लगाया था
उसे पानी व खाद
मेरी दादी ने दी थी
कल जब मैं स्कूल जा रही थी
पेड़ का ऊपरी हिस्सा देखने भर से
उन लोगों ने मेरी आंखों में पिसा लाल मिर्च फेंका
मैं रोई नहीं
मुझे आम का स्वाद अच्छा लगता है
फिर से याद दिला दूँ
इस कहानी की
न कोई शुरुआत है न कोई अंत।
सूखी मछली की कमीज
टीचर ने बोर्ड पर चाक से लिखते हुए कहा
कि मैं आज यह पढ़ाने जा रही हूँ
किताब के हिलने की आवाज
एक लहर सी आकर थम गई
ए इ तथा यू1 के स्वर
ऐसे दिखे मानो जंगली जूही का पौधा
काठ जैसे डंठलों को ढो रहा है
किताब में देखा तो यह सब उसमें नहीं था
मेरी चमकीली आंखें बुझ गईं
ए इ तथा यू के स्वर उठाकर
रखा किताब में
वे अंगीठी के पत्थरों से कठोर हो गए
टीचर जब भी मेरी ओर देखती
बिल से आहिस्ते निकलते केकड़ा सा हो जाती मैं
घंटी बजी
घर के रास्ते में कुंजम्मा मिली
उसके पास पान था
सिर पर सूखी लकड़ियों के लट्ठे थे
उन लकड़ियों के अंदर सूखी मछलियां थीं
जिनके लिए कमीज बने मेरे ए इ तथा यू
वे स्वर नहर पार करके अब जा रहे हैं
कुजम्मा के ही संग।
जिस नदी में वे बह गए
केवट द्वारा तट पर
बांधी गई नाव पानी में झूल रही है
चप्पू के अग्र भाग पर बैठा है नन्हा सा केकड़ा
वह गीत सुनने के लिए इंतजार कर रहा है
जिसे केवट ने अधूरा छोड़ दिया था
नन्हे केकड़े नाव के दोनों ओर चित्र बनाकर
निर्धारित चेतावनी भेजते हैं
हर बहाव में हर राज्य के लिए
कि नदी के बहाव में तेजी है
कि नदी के रंग में बदलाव है
नदी के बहाव में बदलाव देखकर
और बारिश की संभावना देखकर
केवट पीड़ा में गाता है गीत
बच्चे तुड़ी2 के ताल में नाचकर
नए गीत का अभिवादन करते हैं
क्या हम सत्ता में बैठे लोगों के लिए
जीवन शक्ति की तरह हैं?
बाढ़ में फंसे द्वीप में बैठे
बंदर, सुअर तथा लोमड़ी
इस गीत को सुन रहे हैं
दूर गोली चलने की आवाज है
विलाप और चीख है
कहीं हो रही बारिश में
नदी लाल हो जाती है
हमें नस्लीय कट्टरता की उस लालच भरी निगाह से
सावधान हो जाना चाहिए
जो जंगल के साथ-साथ
हमें भी आग की लपटों में झोंकने का
इंतजार कर रही है।
जंगली ततैया सी स्त्रियां
चिटम्मा के घर की बगलवाली जमीन पर
काजू का एक पेड़ है
जिस पर चोयिची3 ने फांसी लगा ली थी
अकसर लोग लकड़ी काटने के लिए
निकलते समय
इसकी छाया के नीचे रुकते हैं
कुंभा4 और वेल्लाची5
बहुत करीब से चल रही थीं
पान चबाते हुए
डोरी इकट्ठी करते जंगली कंद खोदते
और एक न एक कहानी कहते हुए
अरेंगत्ती6 का पति दारू पीकर उसे पीटता है
फिर घड़ा और माड़-भात नहर में फेंक देता है
रात को अंधेरे में मुर्गों की बांग सी
उसकी सिसकियां सुनाई देती हैं
माणिकम अपने घर में अकेली है
दारू पीकर आए आदमी के साथ
वह बिस्तर बांटती है
और गर्भवती हो जाती है
फिर से वह हो जाती है अकेली
स्कूल जाते बच्चे
छिपकर जंगली पौधों के पास
पेशाब करते हैं और
नारियल के बाग में छिप जाते हैं
सुबह उठते ही माकम7
दारू पीने चला जाता है
ताड़ी की दुकान पर
बीड़ी के पड़े टुकड़ों को सुलगाकर पीता है
चप्पीला8 सिनेमा देखने गई तो
वहां एक आदमी उसे छूकर
हँसते हुए भाग गया
उसने उसको पकड़ा उसका रास्ता रोककर
पोनम9 दिखाया
झाड़ू बुहारने वाले
और कोयले का बोझ उठाने वाले हाथों में
ताकत थी
जब एलुंबाच्ची रजस्वला होती थी
वह चायिप10 में तीन-चार दिन रहती थी
बिना किसी को बताए
वहां कीड़े काटते थे
वह जागती रहती थी प्यासी ही
जो भी हो वे सभी आदिवासी स्त्रियां
सभी को खाना खिलाएंगी
वे जंगली ततैया-सी
एक साथ झुंड में रहेंगी।
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