युवा कवि और लेखक। कथाआलोचना और साहित्यिक समीक्षा भी लिखते हैं।

जोशीमठ की घंटी

जोशीमठ दरक रहा है
नहीं दरक रहा है जोशीमठ
दरक रही है मिट्टी की ताकत
मिट्टी का वजूद
उपजाऊ मिट्टी के सीने पर
खड़े हैं कंक्रीट के जंगल
तीसरी दुनिया में निवेश के व्यापारी
न्यूयार्क में अपने गेंहूं के फॉर्महाउस से
विकास के स्थानीय कर्णधारों से बात करके
कर रहे हैं अट्टहास
दूसरी ओर उन्मुक्त पर्यटकों ने
रौंद दिया है पहाड़ों को
प्लास्टिक के कचरों से
दबा दी है पहाड़ों की सांसें
प्रकृति-विरुद्ध मानव निर्माण
रेल, हाईवे और बांध
और प्रकृति विरुद्ध मानव कर्म
उपजाऊ जमीनों की तरह
एक दिन लील जाएंगे सभी धाम।

समय की गवाही

एक नीलगाय
निकल आई थी नोयडा के हाईवे पर
वहां की मिट्टी में उसके जंगल की गंध थी
सियारों का झुंड
दाख़िल हो गया था कस्बे में
वहां उनके गांव के ऊसर की गंध थी
प्यासे जानवरों
घेर ली थी एक घर की चहारदीवारी
वह उनके तालाब की माटी थी
गांव के एक प्राइवेट स्कूल की दीवार पर
जगह जगह उग आए थे पीपल
दीवारें चटक गई थीं
पीपल जानते थे
इसी जगह पर घना बगीचा था
देहात की नदियां बिलख रही हैं
उनमें न पानी है और न ही जान
जिस मिट्टी में अंखुआते थे अनाज
उस मिट्टी की बंद हो चुकी है सांस
डॉलर और नोट की हवस में
जो उजाड़ रहे हैं जंगल और उर्वर खेत
नदी, तालाब, बगीचा
वे सोख रहे हैं सांसें अपनी पीढ़ियों की

उनकी पीढ़ियां बचेंगी तो समझेंगी
भूमंडलीकरण का दौर
नरभक्षी पीढ़ियों का था
उन लोगों का भी
जिन्हें पेड़ की सांसें
अपने बच्चों की सांसें लगतीं!

स्त्रियां

हिंदी की दुनिया में
पत्थर तोड़ती हुई स्त्री
पहली बार दिखी थी
1937 में
पुरखे कवि निराला ने
देखी थी इलाहाबाद के पथ पर
स्त्री की दुनिया
कितनी विराट और विशाल है
इतिहास में
रोजा लक्जमबर्ग ने लिखा
जिस दिन स्त्रियां
अपने श्रम का हिसाब मांगेंगी
इतिहास की सबसे बड़ी चोरी पकड़ी जाएगी

अबला हैं स्त्रियां
कितना झूठा है यह कथन
जानना हो तो देखें
केरल के छोटे से बच्चे
अनुजथ सिंधु विनयलाल की पेंटिंग
उस बच्चे ने दिखाया
एक ही स्त्री एक ही दिन में
17 घंटे से अधिक काम करती है
जिसके बिना घर, घर नहीं हो सकता।

शब्द

शब्द मरते नहीं, रहते हैं मौजूद
वे लौटते हैं उसी तरह
उतनी ही ऊंची आवाज में
घृणा हो या प्यार
तर्क हो या कुतर्क
आस्था हो या आडंबर
वे लौटते हैं अपने और भी सुगठित रूप में
हर उस जगह
जहां-जहां से जिस-जिस तरह के
शब्दों का हुआ था प्रयोग
शब्द बख्शते नहीं
न ख़ुद को और न पीढ़ियों को।

चुनना

जब कोई कहे
क्या चुनोगे?
सुख या दुख
बशर्ते, दोनों की
अवधि बहुत छोटी होगी
तब चुनना दुख
सुख सृजन का बांध है
दुख सृजन का आकाश!

गिरना और झुकना
गिरना
आखिर गिरना ही होता है
झुकना
एक तमीज़, एक अदब, एक लिहाज़
जिन्हें नहीं मालूम गिरने और झुकने का फ़र्क
वे अंततः गिरते हैं और गिरते ही चले जाते हैं।

दुनिया की अरगनी

इस दौर में
दुनिया की अरगनी पर
शब्दों का अर्थ
लटका हुआ है उल्टा
प्रेम का अर्थ घृणा
अहिंसा का अर्थ हिंसा
वसुधैव कुटुंबकम् का अर्थ
जाति, धर्म और भाषा का कुटुंब
भूमंडलीकरण का अर्थ एकरूपीकरण
भाषा का, बाज़ार का, संस्कृति का।