युवा कवि। डगर की रेतऔर औरत की जानिबकविता संग्रह प्रकाशित। संप्रति अध्यापन।

 

गांधारी

आंखें होते हुए भी उनपर पट्टी बांधकर
गांधारी! तुमने पति-भक्ति का धर्म निभाया

तुम बन सकती थी अंधे पति धृतराष्ट्र की आंखें
लेकिन नहीं बनी

शायद उस समय किसी पुरुष की आंखें बनना
ज्यादा मुश्किल था
आसान था अंधी बन जाना

आखिर आंखों पर पट्टी बांधकर भी देखना पड़ा
गांधारी तुम्हें सौ पुत्रों की मौत
जिसे तुमने सपने में भी देखना नहीं चाहा था

नहीं बचा पाई प्रिय दुर्योधन को
आंखों में समाए सतीत्व की शक्ति से
नहीं बेध पाई वह
दुर्योधन की कमर पर बंधे झीने आवरण को

पाली गई कहानियों में
गढ़ी जाती हैं वे स्त्रियां
जिनकी भक्ति से बनती हैं रूढ़ियां।

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