वरिष्ठ कवि। दो कविता संग्रह – ‘रिबन की पीली पंखुड़ी’ और ‘कबाड़ में ट्यूबलाइट’।
घर
1
देख रहा हूँ… कुछ दिनों से
घोंसला नहीं है
बिखरे हैं तिनके
आले, वाशबेसिन में
कोने में कमरे के
बिजली के तार पर
चौखट जड़ी कील पर
यहां… वहां..
एक बिखरी हुई अवधारणा है घर!
मेरी आंख में गड़ रहा है तिनका।
2.
बाहर लटकी हुई है चिक
भीतर खांसी के पर्दे हैं।
संपर्क :हरिरम्मा’, मीनाक्षीपुरम कॉलोनी, पथरिया जाट सागर–470228, (म.प्र.) मो.9425171769
घर को ऐसे भी परिभाषित किया जा सकता है! कविवर को साधुवाद 🙏🏼
प्रतिक्रिया के लिए आभार 🥰\