वरिष्ठ कवि। दो कविता संग्रह रिबन की पीली पंखुड़ीऔर कबाड़ में ट्यूबलाइट

घर

1
देख रहा हूँ… कुछ दिनों से
घोंसला नहीं है
बिखरे हैं तिनके
आले, वाशबेसिन में
कोने में कमरे के
बिजली के तार पर
चौखट जड़ी कील पर
यहां… वहां..
एक बिखरी हुई अवधारणा है घर!
मेरी आंख में गड़ रहा है तिनका।

2.
बाहर लटकी हुई है चिक
भीतर खांसी के पर्दे हैं।

संपर्क :हरिरम्मा’, मीनाक्षीपुरम कॉलोनी, पथरिया जाट सागर470228, (.प्र.) मो.9425171769