कवि, पत्रकार एवं अनुवादक।10 कविता संग्रह प्रकाशित।असमिया से 60 से अधिक पुस्तकों का अनुवाद। संप्रति– सलाहकार संपादक, दैनिक अरुणभूमि।
अभी सोया हुआ है
कंक्रीट का जंगल
अभी सोया हुआ है कंक्रीट का जंगल
और सुन रहा हूं पंछियों का कलरव
रेलगाड़ी की सीटी
रेत और सीमेंट को लादने वाले ट्रकों की घड़घड़ाहट
निर्माणाधीन अपार्टमेंट के परिसर में
मजदूरों की बातचीत
धुंध में लिपटी हुई पहाड़ियां
मायावी दिखाई दे रही हैं
गुलमोहर का पेड़ भी छिपा हुआ है
धुंध की चादर के पीछे
कुमार गंधर्व की आवाज टकरा रही है
मेरे कमरे की दीवारों से
मैं खिड़की से देख रहा हूँ
महलों की तरफ तेज कदमों से जाने वाली
नौकरानियों को
ठेले पर चाय की केतली लादकर
धकेलते हुए किसी छोटे दुकानदार को
सुख से अघाए हुए मलाई वर्ग के
प्राणियों को कसरत करते हुए
सड़क पर भागते हुए देख रहा हूँ
अभी सोया हुआ है कंक्रीट का जंगल।
तरुण नगर की गलियां
इन्हीं गलियों में बिखरी हैं मेरी सांसें
कितनी जानी पहचानी हैं दुकानें
दुकानदारों की चिरपरिचित मुस्कराहटें
यहां की सुबहें यहां की शामें या
यहां की रातें
इन्हीं गलियों में घूमते हुए मैं रचता हूँ सपने
खर्च करता हूँ अपनी उम्र के सिक्के
सुलगाता हूँ सिगरेट
और मुसीबत की आंखों में
घूरने का साहस जुटाता हूँ
इन्हीं गलियों की दौड़ती भागती आबादी से
मिलती रही है मुझे ऊर्जा
निराशा की घड़ियों में भी
मिलती रही है प्रेरणा
इन्हीं गलियों ने मुझे अपनाया है
अपनी बांहों में सहेजकर रखा है
हरेक मौसम में जीवन राग सुनाया है
जाऊं भी तो कहां जाऊं
तरुण नगर की गलियां छोड़कर।
संपर्क : ४–बी–१, ग्लोरी अपार्टमेंट, तरुण नगर मेन रोड, गुवाहाटी–७८१००५ मो.९४७६८४४३६५