इंग्लैंड में वरिष्ठ प्रवासी कथाकार और कवयित्री। आठ कहानी संग्रह प्रकाशित। वातायन-यूके की संस्थापक। लंदन के नेहरू सेंटर में वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी। अद्यतन उपन्यास ‘तिलिस्म’।
नील का पीछा करने का मेरा कोई इरादा नहीं था, न ही कोई औचित्य। हमारे विवाह के करारनामे में स्पष्ट लिखा है कि किसी गैर से संबंध बनाने से पूर्व, हमें एक दूसरे को सूचित करना होगा। नील ने तो यहां तक कहा था कि किसी दौरे पर यदि हम अचानक किसी के प्रति आकर्षित होकर संभोग जैसी स्थिति में पहुंच जाएं तो फोन पर हम एक संदेश ‘करारनामे का उल्लंघन’ अवश्य भेज दें और उसके बाद जितना जल्दी हो सके अपने रहने का इंतजाम कहीं और कर लें। हमारी कोई मजबूरी नहीं है कि इकतरफा रिश्ते को दुनियादारी के लिए निभाया जाए। आरंभिक वर्षों में तो मैं नील के हर संदेश पर आशंकित हो उठती थी। वह मुझसे कहीं अधिक आकर्षक हैं, मैं अकसर देखती हूँ औरतों को उन्हें चाहत से निहारते।
विवाह के पूर्व हम पांच वर्ष लिव-इन संबंध में रहे, तब हम दुनिया भर की बातें कर लिया करते थे, अन्यत्र प्रेम संबंधों और सेक्स विषयक। हम इतने करीब या चुके थे कि विवाह की आवश्यकता ही महसूस नहीं हुई। मेरी मां और नील के पिता की जिद के आगे झुक कर हमने विवाह कर लिया था, हमारा कोई बहाना काम नहीं आया। यहां तक कि विवाह का सारा इंतजाम भी उन्होंने ही किया, अपने खर्चे पर। विवाह हो जाने से पूर्व ही दोनों ने रट लगा दी कि हमें अपना घर खरीद लेना चाहिए। मैंने मां को कहते हुए सुना था कि पति-पत्नी का मिल कर घर खरीदना और कम से कम एक बच्चे का जन्म विवाह के सफल होने की संभावना को बढ़ाता है। खैर, हमारा तर्क कुछ और ही था, दो मासिक मौरगेज्स देने की जगह आधा-आधा पैसा लगा कर एक अच्छा घर खरीद लेने और घर के बिलों के बराबर बंटवारे से होने वाली भारी बचत। मां का हस्तक्षेप यहीं समाप्त नहीं हुआ।
‘बच्चा कब पैदा करोगी? जितनी देर करोगी, उतना मुश्किल हो जाएगा, अभी तो मेरे हाथ-पांव चल रहे हैं, मदद कर सकती हूँ।’
हमारे बच्चे नहीं हुए तो नील ने कहा कि इतने व्यस्त जीवन में बच्चे कौन संभालेगा और मैं उससे पूरी तरह सहमत थी। इलाज तो दूर, हमने तो यह भी जानने की कोशिश नहीं कि आखिर मसला क्या है। नील के पिता कुछ नहीं कहते, जब भी मिलते हैं, बाप-बेटा बैठ कर एक से एक महंगी शराब पीते हैं, ऐसी बातें निजी जीवन में दखलअंदाज़ी मानी जाती हैं, पर जहां तक मेरी मां का संबंध है, उनकी दखलअंदाज़ी उनके प्यार और कर्तव्य की सूचक है।
हाल ही में हमने अपने विवाह की सातवीं सालगिरह मनाई थी, अपने पसंदीदा पब में, वही अपने पांच-छह घनिष्ठ मित्रों के साथ। हम और हमारे मित्र सब प्रौढ़ लोग हैं, एक से एक ऊंची पोस्ट पर बैठे हैं, जो चाहें खा-पी सकते हैं पर सबने वही खाना खाया जो हमेशा खाते हैं, वही ड्रिंक्स ऑर्डर कीं जो हमेशा पीते हैं। हां, पब वाले ने अपनी तरफ से एक केक हमारी मेज पर ला रखा था, सो झेंपते हुए काटना पड़ा। ‘जौली गुड फेलो’ तक नहीं गाया था किसी ने।
खैर, अगले दिन सुबह उठने में देर हो गई थी, दफ्तर के बाहर ही मुझे सूचना दी गई कि अंदर न जाऊं। हमारे एक सहकर्मी को कोविड ने घेर लिया है। बरिस्तो से एक कप कॉफी लेकर मैं बाहर बगीचे में बैठ कर अपने सभी सहकर्मियों को एक टेक्स्ट-हिदायत भेजने में व्यस्त हो गई कि अगले दस दिन तक वे सब घर से काम करें। अधिक समय नहीं लगा, दुविधा में थी कि अब क्या किया जाए। सिवा घर पहुंच कर सीधे लैपटॉप खोल कर बैठ जाने के।
काम के सिवा मैं कुछ नहीं जानती, सिवा पढ़ने के मेरे अपने कोई शौक नहीं हैं, छुट्टियां और तफ़री सब नील के हवाले। सिनेमा या पब भी मैं अकेले नहीं जाती। क्योंकि मैं मितभाषी हूँ, दोस्तों ने मुझसे सीधे-सीधे बतियाना बंद कर दिया है। मां मुझसे सामाजिक-संपर्क के गुणों की चर्चा करते नहीं थकतीं, पर बिना बात की बकबक मुझे बर्दाश्त नहीं। नील मुझसे बिलकुल उलट प्रकृति के हैं। वे तो वेटर्स और कचरा उठाने वालों से भी बतियाने लगते हैं, शायद इसलिए सबको प्रिय हैं। उनकी बातचीत में मेरे शामिल होने का अर्थ है केवल हां या ना में मेरा सिर हिला देना।
घर के लिए निकल तो पड़ी, किंतु घबराहट हुई कि घर जाकर क्या करूंगी क्या? साफ़-सफ़ाई के लिए एक मेड है, बागवानी के लिए माली और खाना-पीना अधिकतर बाहर ही होता है या फिर हफ्ते में एक-दो बार नील शौक से पकाते हैं। घर के पास ही थी कि देखा कि सजे-धजे नील घर से बाहर आकर अपनी मर्सडीज में बैठे रियर-मिरर में अपनी जुल्फें संभाल रहे हैं। मैं स्वयं उनकी जुल्फों पर ही तो फिदा हुई थी, बहुत सुंदर और रेशमी बाल हैं जो उनके चौड़े माथे पर झूम-झूम आते हैं। उन्होंने मुझे अब तक नहीं देखा है। सोचा कि पूछ ही लूं कि कहां का इरादा है, किंतु तभी सड़क के दूसरी ओर एक टोयोटा आकर रुकी। नील झटपट अपनी कार से निकले और टोयोटा में जा बैठे, जिसकी चालक युवती थी। मर्दों के शब्दों में कहूं तो एक ‘चिक’ यानी चूज़ा, उम्र में हम दोनों से कहीं छोटी उम्र की और बेहद हसीन। शायद किसी काम से आई हो, किंतु जिस तरह से दोनों ने एक दूसरे के ओंठ चूमे, मेरा बदन झुनझुना उठा। हालांकि अब प्यार-व्यार, जलन ईर्ष्या जैसा कुछ बचा नहीं था कि हम एक दूसरे पर शक करें, लड़े और झगड़ें। महीनों हो जाते हैं हमें हमबिस्तर हुए, कुछ होता है भी तो मशीनी गति से, भावना रहित।
मैं उत्तेजित हो उठी; मृत नसों में हरकत होने लगी। मन हुआ कि अपने सहकर्मी जौशुआ को घर पर बुला लूँ। दीवाना है वो मेरा, पर बेहद बोरिंग, मुझ से कहीं अधिक बोरिंग। फिर याद आया कि हम दस दिन तक किसी से नहीं मिल सकते। एकाएक याद आया कि कल रात को नील ने अपना कोविड टेस्ट करवाया था, आज इस चूज़े से मिलना जो था। दोनों ने मास्क भी नहीं पहने हैं, दोनों जानते हैं कि नैगेटिव हैं। मेरा जासूस मन सजग हो उठा। एकाएक मैं उनकी कार के पीछे चल दी। घर में बैठ कर परेशान होने से तो यही अच्छा है। उत्सुकता यह भी हो रही है कि नील ने मुझे अपने इस नए संबंध के बारे में क्यों कुछ नहीं बताया।
नील ने मुझे अपने पहले विवाह के विषय में भी नहीं बताया था, पर तब हम दोनों ने ही अपने भूत का ज़िक्र करना ज़रूरी नहीं समझा था। मेरे भूत में तो कुछ बताने लायक था ही नहीं – पढ़ाई, पढ़ाई, पढ़ाई, एक से बढ़ कर एक कंपनी में नौकरियां और फिर अपनी कंपनी का आगाज़, इसी सिलसिले में नील से मुलाकात हुई थी। मां नाराज थीं कि इतनी बड़ी बात नील को छिपानी नहीं चाहिए थी। हमारे विवाह के रिसैपशन पर बिना किसी सूचना के रीवा का अपने नए पति के साथ आ टपकना मुझे भी बहुत खला था, पर आधुनिकता का खोल ओढ़े मैं मुस्करा दी थी। उसके बाद उससे हमारा कभी आमना सामना नहीं हुआ, न ही नील ने कभी उसका ज़िक्र ही किया। मां ने ही ढूंढ-ढांढ़ कर मुझे बताया था कि नील की एक बेटी भी है, जो रीवा और उसके नए पति के साथ सिडनी में बस गई है।
आशिकमिजाज़ नील और उसके दोस्तों की बीवियों के साथ फ़लरटेशंस की ओर तो मेरा ध्यान भी नहीं जाता, मेरी उदासीनता ही शायद उन्हें बढ़ावा देती हो। मुझे समझ नहीं आ रहा कि आज मैं इतनी उत्तेजित क्यों हो उठी हूँ? बदलना जीवन का नियम हैं, किंतु उम्र के इस पड़ाव पर कैसा भी बदलाव कठिन लगता है। शायद आज इन दोनों की पहली डेट हो, रात को लौट कर मुझे बता ही देंगे। उत्तेजना बढ़ती चली जा रही है। सच जान जाऊं तो मुझे चैन मिल जाएगा।
चालीस मिनट से मैं उनके पीछे हूँ, किंतु उन्होंने अब तक मुझे नोटिस नहीं किया है। अब वे हाईवे से उतर कर एक पतली सी सड़क पर निकल आए हैं, लगा कि लगातार पीछा करती मेरी कार को वे अवश्य पहचान जाएंगे पर वे बातों में इतने मशगूल हैं कि उन्होंने एक बार भी पलट कर नहीं देखा। इतनी दूर आने का मेरा कोई इरादा नहीं था, पर अब मेरी भूख और उत्सुकता दोनों बढ़ गई हैं। सुबह मैं नाश्ता भी तो नहीं करती। दोपहर के भोजन का समय हो चला है, मैं भी यहीं कहीं रुक कर सलाद या सूप खा लूंगी। न जाने कहां किस रैस्टोरैंट में जा रहे हैं।
बाईं तरफ़ बार्नेट अस्पताल दिखाई दिया तो मैंने जाना कि हम कहां पहुंच चुके थे। सालों पहले मैं यहां अपनी मां के साथ आई थी। यहीं बोरमवुड में उनकी एक सहेली रहा करती थीं, सफ़िया, जो हैटफ़ील्ड विश्वविद्यालय में फ्रैंच की प्राध्यापिका थीं। वह तब काफी बीमार थीं। नील के हिसाब से बोरमवुड एक पौश इलाका नहीं है, इसका अर्थ है कि यहां आने का सुझाव चूज़े का ही होगा। एक विशाल और खूबसूरत इमारत के कार पार्क में जाकर उनकी कार रुकी, इमारत पर कोई साइन नहीं है। गूगल पर देखा तो जाना कि यह एलस्टरी होटल है। ये लोग शायद अपने किसी क्लाइंट से मिलने आए हों, जो यहाँ ठहरा हुआ हो। मेरा मासूम मन अब भी यह मानने को तैयार नहीं है कि दोनों के संबंध गहरे हो सकते हैं।
पसोपेश में हूँ कि रुकूं या लौट जाऊं। फिर सोचा कि कुछ खा लूं। इस बीच शायद कुछ और जानकारी हासिल हो जाए। मैंने दूर एक कोने में कार पार्क की और अंदर आकर रैस्टोरैंट ढूंढ़ने के लिए नजर घुमाई तो देखा कि चूज़े का हाथ थामे नील सीढ़ियां चढ़ रहे हैं। दोनों बेहद खुश और उत्तेजित दिखाई दे रहे हैं। दिल पर मानो एक जोरदार घूंसा लगा। वे बेकार सी भावनाएं फन उठाए मुझ पर आक्रमण करने वाली हैं। बजाय उन्हें ललकारने के, तमाम तर्कों को इकठ्ठा करते हुए मैं रैस्टोरैंट में जाकर एक कुर्सी पर धराशाई हो गई। एक न एक दिन तो ये होना ही था, इसमें बड़ी बात क्या है। वे दोनों तो कमरे में पहुंच चुके होंगे और..और…
मैंने सूप ऑर्डर किया और फोन पर संदेश देखने लगी, शायद नील ने कुछ लिखा हो। मुझे नहीं लगता कि इस वक्त उसे मेरा या हमारे करारनामे का ध्यान भी आएगा। एक घंटा बीत चुका है, नील और चूज़े के बीच जो होना था, अब तक हो चुका होगा। ऐसे संबंधों में समय बर्बाद नहीं किया जाता; नील पूर्व रतिक्रीड़ा में विश्वास नहीं रखता। बिस्तर पर लेटते ही वह सीधे-सीधे संभोग चाहता है। तभी वेटर ने आगे गरमागरम सूप और ताज़े ब्रेड-रोल्स परोस दिए, जिन्हें देख कर एकाएक मेरी भूख भड़क गई।
मैंने आराम से भोजन किया, तन मन को जैसे सुकून मिला। बजाय घर जाने के, मैंने एक महंगी लाल शराब का एक गिलास ऑर्डर कर दिया। परेशान होने का क्या फ़ायदा, जो भी होगा, देखा जाएगा, किंतु गाहे बगाहे मेरी दृष्टि फ़ोन पर चली जाती है। अब तक उसने मुझे संदेश नहीं भेजा है, इसका अर्थ तो यही है कि या तो चूज़े ने अभी तक उसको मौका नहीं दिया है, या फिर वह मुझसे बेईमानी कर रहा है।
मैं सीधी हूँ पर बेवकूफ़ नहीं। मैं बिना किसी झिकझिक के एक सहज तरीके से नील से निजात पाने की सोच रही हूँ। तलाक के बाद हमें मकान को बेचना पड़ेगा, अपने हिस्से के पैसों में अपनी सेविंग्स मिलाकर मैं इसी घर को बड़ी आसानी से खरीद लूंगी। आज ही रात को मैं वादाखिलाफ़ी का हवाला देते हुए नील से घर छोड़ देने को कह दूंगी। मेरे फैसले से वो खुश ही होगा कि उसे मुझे सफाई नहीं देनी पड़ी। रात को ही क्यों, अभी ही क्यों नहीं? मेरा चेहरा भभक उठा, बिना कुछ सोचे-समझे, मैंने उसे टेक्स्ट भेजा, ‘करारनामे का उल्लंघन।’ लगा कि मन कुछ शांत हुआ। वैवाहिक जीवन जैसा कटा, जितना कटा, मुझे अब कोई गिला नहीं है।
बिल देकर मैं कार-पार्क की ओर चल दी। कार में बैठते ही, मोबाइल पर स्पंदन हुआ, नील का संदेश था, ‘कहां हो, क्या हुआ? चिंता मत करो, शाम को बात करते हैं।’
क्या? चिंता कैसे न करूँ? इस आदमी की हिम्मत तो देखो। मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर था। मैंने अपनी कार का इंजिन ऑन किया ही था कि होटल के गेट से निकलते हुए नील और चूज़ा दिखाई दिए, उनके साथ एक युवक भी है। मैं एक दम ठंडी पड़ गई। मामला कुछ और ही है, अपने संदेश को मिटाने का अब कोई फ़ायदा नहीं है।
अब मैं फिर उनकी कार का पीछा कर रही हूँ; पछतावे के साथ, बेवकूफ़ी करने से पहले पुष्टि तो कर लेती। शर्म और मलाल से मेरी आंखें उमड़ने-घुमड़ने लगीं। नील के लिए शायद यह मेरा प्यार ही होगा, जो मुझे शक की इस सीमा तक ले आया। सात सालों से रोज सुबह मुझे कॉफी बना कर देना, मेरी पसंद की मछली रोस्ट करना इत्यादि, नील का मेरे प्रति प्यार नहीं तो और क्या है? जीवन में सेक्स ही तो सब कुछ नहीं होता, फिर मेरे अपने भी तो कुछ फ़र्ज़ हैं। मैं क्या करती हूँ, सिवा मुंह सुजा के बैठे रहने के, नील के मित्रों को नजरअंदाज़ करने के?
मैंने ध्यान ही नहीं दिया कि मैं कब घर पहुँच गई; पीछे बैठे नील ने उनकी कार से उतरते ही मुझे देख लिया था।
‘हाय, मिया, आज तुम जल्दी घर आ गई,’ नील ने मेरी ओर बढ़ते हुए कहा; वे कुछ परेशान से लग रहे थे।
अपने दोनों हाथ उठा कर मैंने दूर से ही ‘हाय’ कहा।
‘हैलो, मिया, मैं हूँ अमीलिया और हैं मेरे मंगेतर, स्टीव, पापा से मैंने आपके बारे में बहुत कुछ सुना है’, बेटी ने मेरी ओर बढ़ते हुए कहा।
हाथ उठा कर मैंने उनको अपने से दूर रहने का संकेत दिया।
‘सॉरी, मैं क्वैरैनटीन में हूँ। मेरे एक सहकर्मी को कोविड हो गया है, आप दोनों से मिल कर मुझे भी बहुत अच्छा लगा। मैं आपको अंदर आने के लिए भी नहीं कह सकती,’ नील से आंख चुराते हुए मैंने कहा, मैं वास्तव में अंदर बुला कर उनकी खातिर करना चाहती थी।
‘ओह! आप परेशान न हों, अभी हम लंदन में ही हैं, दस दिन के बाद मिलते हैं, आप अपना ध्यान रखिए’, कहते हुए स्टीव ने कार घुमा ली।
सड़क के दो छोरों पर खड़े नील और मैं एक दूसरे को देख रहे हैं। मुझे समझ नहीं आ रहा कि कैसे माफी मांगूं। नील ने दरवाजा खोल कर मुझे अंदर आने का संकेत दिया। मैं अचकचा गई।
‘चिंता न करो, क्वैरैनटीन के दौरान मैं तुम्हारा ध्यान रखूंगा, फिर तुम जैसा चाहोगी, हम वही करेंगे’, नील ने स्नेह से कहा।
ओह! अचानक मुझे एहसास हुआ कि मेरे संदेश का अर्थ नील ने कहीं यह न ले लिया हो करारनामे का उल्लंघन मैंने किया था। जाहिर है कि मेरा संदेश स्पष्ट नहीं था कि उल्लंघन किसकी तरफ से हुआ था। वह भी सोच कर हैरान हुआ होगा कि मेरी जैसी बोरिंग औरत ऐसा कर सकती है। उसके परेशान माथे पर झूलती उसकी ज़ुल्फें बेहद रोमांटिक लग रही हैं; मैं झट उसके सीने से जा लगी, बारह वर्षों में पहली बार पहल मेरी तरफ से हुई है।
मेरे चेहरे पर एक मुस्कराहट तैर रही है, इस बोध से कि मेरे अन्यत्र संबंध से नील भी परेशान हो सकता है।
संपर्क :ईमेल-divyamathur1974@gmail.com
मेरी कहानी के प्रकाशन के लिए वागर्थ के संपादक महोदय और समस्त टीम का हार्दिक धन्यवाद, दिव्या माथुर, divyamathur1974@gmail.com