युवा कवयित्री। साझा काव्य संग्रह ‘नीलांबरा’।संप्रति- शिक्षार्थी। |
नहीं लौटेंगे वे
तुम तक पहुंचने के कई रास्ते थे
यह जानते हुए भी
जाना आसान नहीं था
यादों के परिंदों ने
उड़ना सिखाया था मुझे
दुख यह रहा कि हर बार चूक गए
प्रेम में भाग जाना
कोई नई बात नहीं है
फिर भी भागना एक प्रश्न है
उसके उत्तर की प्रतीक्षा में खड़े हैं लोग
यह जानते हुए कि नहीं लौटेंगे वे
अंततः सूख गई है नदी
राह देखते-देखते
चिड़ियों ने भी
पलायन का रास्ता ढूंढ लिया है
प्रेम अपने साथ सबकुछ ले जाता है
सिवाय नफरत के
यह जानते हुए भी कि
हमने प्रेम करना नहीं सीखा अबतक।
मां तुम भी थी नानी
बीते दो दशक में
मैंने कई मर्तबा पूछा मां से
नानी की तस्वीर दिखाओ न
माँ धुंधली पड़ जातीं
जब कहतीं कहानी
मां की आंखों से फूट पड़ती एक नदी
जिसका कोई किनारा न था
और छोड़ देतीं हर बार कहानी अधूरी
जब भी पूछती हूँ मां से
तुम कैसी थी
मां की चुप्पी बताती-
तुम भी मां थी
जब जाती हूँ तुम्हारे गांव
वहां के पेड़ों से बात करती हूँ
गौरैया को देती हूँ दाना
टूटे-फूटे खपरैल के घर को
देर तक निहारती हूँ
फिर सोचने लगती हूँ
गर तुम होती तो राह ताकती
पड़ोसी को बताती
दौड़कर गले लगाकर कहती
जल्दी-जल्दी आया कर न
मेरे आने से एक दशक पहले तुम जा चुकी थी
तुम्हें भी नहीं कहा होगा किसी ने नानी
तुम्हारे हाथों के स्पर्श से अनभिज्ञ मैं
तुम्हारा चेहरा खोजती हूँ अपने बच्चों में
तुम्हारी स्मृतियों के मकान को
मैं बचाए रखना चाहती हूँ सदा
पढ़ना चाहती हूँ वहाँ की लिपि
और लिखना चाहती हूँ तुम्हारी भाषा में
तुम्हारे लिए एक सुंदर कविता।
संपर्क : ग्राम+ पोस्ट– मेघौल, थाना– खोदावंदपुर, बेगूसराय– 848202 बिहार मो. 8102379981