पत्रकार और कवि। विभिन्न पत्र–पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। संप्रतिः संडे नवजीवन में कंसल्टिंग एडीटर।
बर्बरीक
जिन्हें युद्ध में नहीं लेना है भाग,
पर किसी खास पक्ष की विजय के लिए
गुरेज नहीं है शस्त्र उठा लेने में
उन्हें पूरा अंदाजा होता है कि
वास्तव में कौन है सशक्त और कौन दुर्बल
ऐसा व्यक्ति भले ही कहे कि
वह न इधर है, न उधर
वह होता है सबसे खतरनाक
जो न इधर दिखना चाहते हैं, न उधर
उन्हें लेकर आशंका स्वाभाविक है
नहीं मालूम, वे किसके साथ कब क्या करें
ऐसे लोगों के लिए बर्बरीक है चुनौती
बर्बरीक हर उस आदमी के साथ
खड़ा होने को होता है लालायित
जो हैं कमजोर
लेकिन वह निरपेक्ष व्यक्ति
बर्बरीक को दृश्य से नहीं हटाता
बस, ऐसा हाल करके छोड़ देता है कि
जब तक चले युद्ध
वह मूक दर्शक होकर देखे अन्याय
फिर भी, युद्ध के खत्म हो जाने पर
बर्बरीक बताता जरूर है कि युद्ध लड़ा सिर्फ उसने
जिसने कहा था कि वह किसी की तरफ से
नहीं लड़ेगा कोई युद्ध
कमजोरों की लड़ाई लड़ना चाहता था बर्बरीक
और जो कमजोरों का हो सकता है सहारा
उसे लड़ने के लिए मैदान में
बनाए रखना होता है खतरनाक
खास तौर पर उनके लिए
जो निरपेक्ष होने का करते हैं दिखावा
ऐसे में, वही निरपेक्ष व्यक्ति
बना देता है बर्बरीक को भगवान
बर्बरीक को भगवान बनाकर
पूजा ही जा सकता है
और उसे कहा जाने लगता है हारे का सहारा।
दौलताबाद
राजा राजा तो बन गया था
पर रहता था बहुत दुखी
उसे पता ही नहीं चल रहा था
कि वह ऐसा क्या करे
कि सब उसे याद रखें
एक दिन अचानक सोते में उसे इलहाम हुआ कि
क्यों न बसाई जाए नई राजधानी
बस, उसने अलस्सुबह ही
बुलाया अपने मंत्रियों को
सुनकर मंत्री भी हो गदगद
वाह, क्या कमाल का है विचार
हुजूर, नया बनेगा सबकुछ
तो इतिहास में अमर हो जाएगा आपका नाम
लिखी जाएगी ऐसी इबारत
कि युगों-युगों तक याद रखे जाएंगे आप
हजारों लोगों को मिलेंगे रोजगार
यह होगी ऐसी गंगा कि सब धो लेंगे हाथ
जो जितना लगाएगा, वह उतना अधिक कमाएगा
क्या नया विचार है!
राजा ने कहा
हमें सबसे ज्यादा जरूरत होगी मजदूरों की
उनके परिश्रम के बिना कुछ नहीं है संभव
इसलिए करा दो मुनादी
कमाई का अच्छा है मौका
न सिर्फ अपनी
बल्कि कई पुश्तों के लिए कर लें इंतजाम
जो चूक जाएंगे, वे बाद में बहुत पछताएंगे
अब चहुंओर यही चर्चा है कि
राजाजी बसाएंगे नई राजधानी
दरबार ही नहीं, बाहर भी यही शोर
पर कुछ लोग निकल ही आते हैं ऐसे
जो चुप नहीं रह सकते
उन्होंने राजा को कहा कि
बनाना तो चाहते हैं राजधानी
पर यह तो बताइए कि क्यों?
इससे क्या होगा फायदा?
फिर क्या होगा पुरानी राजधानी का?
अपनी राजधानी का विस्तार करिए
आसपास में बनाइए और सड़कें, इमारतें, स्कूल
पर दूर जाकर एकदम से
नई राजधानी बनाने से क्या फायदा?
फिर, पुरानी राजधानी की
कौन करेगा रोज-रोज की देखभाल?
कौन देखेगा यहां के मसलों को?
इस पर राजा हो गया नाराज
बोला, आप हैं बेअक्ल
यहां तो है ही अपनी राजधानी
दूर इलाके में एक और राजधानी बनी
तो अपना झंडा वहां भी फहरेगा
झंडा होना चाहिए ऊंचा
आपलोग झंडे के दुश्मन हैं
इसलिए कर रहे हैं ऐसी बातें
आप सोच ही नहीं सकते कि
हम कितना बड़ा काम करने जा रहे हैं
राजा ने अपने सपने लोगों को ऐसे सुनाए
कि लोगों की आंखों में भी
उतर आए अच्छे दिन के सपने
इतना हुआ शोर कि लोगों को लगा कि
वास्तव में होने जा रहा है कोई बड़ा काम
ऐसा काम
जो न पहले हुआ है, न आगे होगा
राजा की इच्छा से सैकड़ों-हजारों की भीड़
पांव-पैदल आगे-आगे चल पड़ी
राजा ने सुनिश्चित किया कि
जब वे शहर से निकलें
तो उन्हें तिलक लगाया जाए
उन्हें मालाओं से लाद दिया जाए
और उस वक्त जरूर बजे शहनाई
इससे बनेगा माहौल और
अधिक-से-अधिक लोग यात्रा पर जाएंगे
यही हुआ भी
लोगों ने अपने घर के लोगों से कहा
घबराओ नहीं, नई जगह में हमें
काम के ज्यादा मौके मिलेंगे
ऐसा होने पर कमाई भी ज्यादा होगी
अभी तो हम अकेले जाएंगे
जरा-सी फुर्सत मिली नहीं
कि तुम सब लोगों को लिवा ले जाएंगे
उनकी आंखों में थे जो सपने
उन्होंने भर दिए बीवी-बच्चों की आंखों में
मजदूरों की इस सेना पर ही था सारा दारोमदार
भले वे श्रमिक थे
उन्हें देखा जाता था
राजा के खास आदमी के तौर पर
नई जगह पर वे थे विशिष्ट
उन्होंने नई जगह पहुंचकर
साफ किए झाड़-झंखाड़
सुई से लेकर बल्लम तक के किए इंतजाम
हर रोज बनती नई योजना
कि यहां यह बना दिया जाए, वहां वह
कुछ बनने लगा, तो उससे लगता
कि कुछ हो तो रहा है
पर हर बार कुछ-न-कुछ खोट निकल आती
और उसे तोड़कर बनाना पड़ता
सबकुछ नए सिरे से
जितना बनता नया
उससे अधिक तोड़ा जा रहा था हर रोज
जो बना भी था
वह था इतना कमजोर कि
खुद ही टूट रहा था
जो थे इन कामों के वास्तव में जानकार
राजा ने उन्हें यहां लाने लायक नहीं समझा था
क्योंकि राजा ने
सबकुछ नया ही करने को सोचा था
लेकिन इतना आसान भी नहीं होता
नई चीजों का निर्माण
सबके लिए आसान नहीं है नया रचना
राजा को जल्दी ही समझ में आ गया कि
बहुत मुश्किल है सबकुछ नया बनाना
उससे नहीं होने वाला है यह काम
बस, उसने एक रात समेटा अपना लाव-लश्कर
किसी को कानोकान न हो खबर
इसलिए अपने मंतरी-संतरी को लेकर
मुंह-अंधेरे भाग निकला छिपकर
और पहुंच गया पुरानी जगह
राजा बने रहने के लिए
राजा को जरूरी था
उन मजदूरों-कारिंदों को त्यागना
जिन्हें उसने नए सूरज का भरोसा दिलाकर
झोंके रखा था मुगालते के अंधेरे में
पुरानी जगह वे सुनाते उसकी हार की दास्तान
इधर छोड़ दिए गए मजदूर हो गए थे बेकार
वहां उन्हें कोई नहीं था कबूलने को तैयार
वे हो गए कारिंदे से गुलाम
कारिंदों का यही है हश्र
सब दिन
कारिंदे खुद बन गए दास्तान
पर उन्हें सुनने-सुनाने वाला कोई नहीं है
इसलिए राजा की कहानियां तो सब जानते हैं
नहीं जानते उन मजदूरों की कथाएं
जिन्हें छोड़ दिया जाता था अनाथ।
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