युवा लेखक। टूरिज्म इंडस्ट्री में कार्यरत। फोटोग्राफी, ट्रैवल ब्लॉग, संस्मरण लिखना पसंद।

एस 7-15!

हां यही था सीट नंबर। एक बार और मैसेज करके मैंने अपना लगेज सीट के नीचे डाला। घड़ी की तरफ देखा, अब भी तीस मिनट बाकी थे।

दिल्ली के ट्रैफिक जाम का डर आपको स्टेशन जल्दी पहुंचने पर मजबूर कर ही देता है। लगेज के नाम पर जो थोड़ा कुछ था वहरख कर मैं नीचे चला आया। लोग आ रहे थे और अपनी जगह पर एडजस्ट हो रहे थे। मैं उतरकर पास ही खड़ा हो गया।

भीड़ ज्यादा थीं मौसम ठीक ही था। ठंड दरवाजे थपथपा रही थी, पर पूरी तरह आई नही थी। कहीं से चाय तो कहीं समोसे तलने की गंध थी और वेंडर्स की जानी पहचानी आवाजें। कुछ लोग बैठे अपनी-अपनी ट्रेन का इंतजार कर रहे थे।

मुझे स्टेशन पर बैठे हर चेहरे पर पता नहीं क्यों कोई कहानी सी दिखती है, अलग-अलग और अनोखी कहानियां। सब के पास अपनी अलग-अलग कहानी या कारण है यात्रा करने के। कुछ कहानियां समझने की कोशिश कर ही रहा था, तभी देखा एक लड़की मेरी उसी सीट पर आकर बैठी। उसकी पीठ मेरी तरफ थी और साथ में कोई आदमी था जो संभवतः उसका पति था। वह सामान एडजस्ट कर रहा था और फिर दोनों वहीं बैठ कुछ बातें करने लगे। आदमी थोड़ा व्यग्र और चिंतित लग रहा था।

मैंने अपने टिकट दोबारा देखा। सब सही था, तारीख़, कोच, सीट। सिवाय एक चीज के और वह थी आर ए सी।

मुझे लगा था क्लियर हो गई होगी पर…

उस आदमी के चेहरे की कहानी समझ आ गई थी और मैं जानता था की अंदर जाते ही मुझे कहीं और सीट पर जाने की रिक्वेस्ट मिलेगी ।

वो दोनों थोड़ी देर में उतर आए नीचे और चार्ट पढ़ने लगे। आदमी थोड़ा और चिंतित लगा जबकि लड़की निश्चिंत थी, वे दोनों मेरे थोड़े समीप ही आकर खड़े हो गए।

 बातों से समझ आ गया की वह उस लंबे बालों वाली सांवली सी लड़की का पति ही था।

थोड़ी देर में  चार्ट लिए हुए टी टी आते दिखा तो लपक कर महाशय उस तक पहुंच कर एक कन्फर्म सीट की रिक्वेस्ट करने लगे ।

टी टी ने कहा ‘आप भीड़ देख ही रहे हैं। अभी कोई बर्थ खाली नही है, ट्रेन चलने पर कोच पोजीशन देख कर ही कुछ बता सकता हुं।‘ इधर ट्रेन के चलने का सिग्नल हो चुका था, वह लड़की अपनी सीट पर जाकर बैठ गई और आदमी टी टी  को मनाने  में लगा हुआ था। मैं अब जानबूझकर बाहर ही था और सोच रहा था कि अगर इस लड़की को कन्फर्म बर्थ मिल जाए तो मेरी सीट भी कंफर्म हो जाएगी।

पर ऐसा कुछ नहीं हुआ और ट्रेन चल पड़ी, निराश मन से वह आदमी सी ऑफ कर चला गया, मैं गेट पर ही खड़ा ये सब देखता रहा।

जब ट्रेन प्लेटफार्म से निकल कर स्पीड पकड़ने लगी तब मैं अपनी सीट की तरफ गया।

लड़की अपनी सीट पर चादर  लगा चुकी थी, और बाकी समान एडजस्ट कर रही थी।

मैने कहा ‘हेलो,आर ए सी में मेरे पास भी यही सीट नंबर है।‘ 

उसने कहा ‘आप बैठिए।‘

मैं हल्के से उसकी चादर हटा कर बैठ गया।

‘कहां तक जाएंगे?’

मैने,‘कहा भोपाल।‘

‘क्या कहा टी टी ने?’

‘कोई चांस?’

‘कोच चेक करने के बाद ही बताएंगे। भीड़ ज्यादा  है त्योहारों और छुट्टियों की वजह से।’

‘वे शायद आपके पति थे? काफी परेशान दिखे।’ 

‘हां पति ही हैं। अकेले सफर, उसपर भी आर ए सी में कोई हमउम्र अपरिचित आदमी!’

‘तो अच्छे खासे भारतीय पति को चिंता हो जाएगी।’

बात में भारतीय पति के लिए व्यंग था या भारतीय पुरुषों के लिए ये समझना मुश्किल  था पर जिस तरह आंख दबा कर कहा उससे मुझे हँसी आ गई।

मैने कहा,‘टी टी  आए तो आप  अड़ जाना कि मैं एक अपरिचित इंसान के साथ क्यों शेयर करूं बर्थ, आप दूसरी सीट दो।‘ 

‘क्यों, मैं ही क्यों बात करूं?’

‘आप भी रिक्वेस्ट कर सकते हैं।’

‘नहीं वे आपकी ज्यादा सुनेंगे, भारतीय पुरुष जो हैं।’

सुनकर वह मुस्कुरा दी।

‘चलो देखते हैं।’

मुस्कुराने से गालों पर हल्के गड्ढे पड़ रहे थे, उस पर उसके खुले लंबे बाल, बड़ी-बड़ी आंखें जिस पर घनी लंबी पलकें। मैं सोच रहा था कि पति की असुरक्षा जायज थी।

मैने अपनी नोट बुक निकाली और पढ़ने लगा।

वो शायद कुछ खाने का सामान निकालने के लिए खड़ी थी और शायद इसलिए मेरी डायरी की तरफ उसका ध्यान चला गया।

‘खुद का लिखा पढ़ रहे है?’

मैने कहा ‘हां, पिछले ब्रेक अप के समय का लिखा पढ़ रहा हूँ।’

‘पर क्यों?’ 

‘क्योंकि अभी ताजा ताजा दूसरा हार्ट ब्रेक हुआ है।‘

‘और पिछले ब्रेक अप के समय का लिखा पढ़ के समझ आ रहा है कि दिल तब भी यही नौटंकी कर रहा था कि कैसे इस प्यार के बिना रह पाऊंगा।’ 

‘पढ़ कर अब हँसी आ रही है खुद पर।अपना पुराना लिखा, पढ़ने से कई बार आप वही गलती दुबारा करने से बच जाते हैं जो कर चुके हैं।’

‘हा हा हा हा सही कहा, हर बार गलती नई होनी चाहिए।’

‘मैं भी भोपाल ही जा रही हूँ, मायके में एक शादी है।’

‘मैंने आपका नाम पढ़ा था चार्ट में विवेक।’

‘जी, मैंने चार्ट नही देखा, आप अपना नाम चाहें तो बता सकती हैं।’

‘मतलब मुझे छूट है  कि मैं गलत नाम बता सकूं।’

‘हा हा हा हा…. बिलकुल बता सकती हैं। पर किसी भी तरह के रिश्ते की बुनियाद झूठ पर क्यों हो।’

‘पर ये झूठ कहां?’

‘ये नाम मुझे हमेशा से पसंद है। मैं कवि या लेखक होती, तो यही नाम कैरी करती।’

‘और क्या हम किसी नए व्यक्ति से जो हम सचमुच हैं, वह होकर नहीं मिल सकते।’

‘क्यों दुनिया की दी हुई पहचान पहनकर मिलेंI’

‘क्यों एक बंधे बंधाए पैटर्न पर चलना और मिलना।’

‘तुम्हें नहीं लगता, ये जानने की क्यूरियोसिटी ही दो लोगों के बीच आकर्षण का कारण होती है।जहां वह खत्म, सब जान लिया, वहा रिश्ता भी मरने लगता है।’

‘तो हम सचमुच जो है इस पहचान के इतर, वह होकर भी तो मिल सकते हैं।’

मैंने कहा–‘बात तो सही है।’

थोड़ी देर में टी सी आता दिखा, चार पाँच लोग घेरे हुए,पीछे-पीछे बर्थ के लिए।

मैंने कहा,‘वो आ रहा है, आप पीछे पड़ जाना कि मैं कैसे स्ट्रेंजर के साथ सीट शेयर करूं, लड़की हूँ  आदि आदि,  शायद सीट दे दे।’ 

‘रहने दो, सब ट्राई कर चुके वो जाने के पहले।’

टीसी खुद आकर मिला और कहा कि मैम कुछ अवेलेबल नहीं है। जैसा कि आपके हसबैंड ने कहा था वह मैं कर सकता हूँ कि  आप इकतीस  नंबर पर बैठी महिला के साथ हो जाइए और ये भाई साहब उनके साथ बैठे व्यक्ति के।’

‘नहीं, मुझे कहीं नहीं जाना है, और इनको भी यहीं बैठने दीजिए।’ 

‘आपके हसबैंड ने कहा था।’

‘लेकिन अब मैं कह रही हूँ।’

 ये बात उसने इतनी दृढ़ता और रुखाई  के साथ कही कि फिर टी टी ने आगे जाना ही बेहतर समझा।

मैंने उसकी तरफ देखा।

उसने कहा– ‘मैंने नोटिस किया तुम्हारे बैठने का तरीका। पहले तुमने मेरी बिछाई बेड शीट को आहिस्ता से फोल्ड किया फिर उतने ही सोफिस्टिकेशन के साथ कम से कम स्पेस में तुम सिमट कर बैठे। काफी है समझने के लिए कि कितने डिसेंट हो और महिलाओं  की कितनी रिस्पेक्ट करते हो।’

‘और तुम्हे यहां होना था, इसलिए तुम यहां हो।’

तुमने सेरेंडिपिटी मूवी देखी है?

मैने कहा- हां।

बस मुझे केट की तरह नियति पर बहुत भरोसा है।

‘जीवन महज़ निरर्थक दुर्घटनाओं या संयोगों की शृंखला नहीं है, बल्कि यह उन घटनाओं का शृंगार है जो अत्यंत सुंदर और श्रेष्ठ योजना में परिणत होती हैं।’ आज इस क्षण में हमें साथ होना था, तो हम साथ हैं, और बातें भी कर रहे हैं।

‘अब सुनो, भोपाल तक हम साथ जा रहे हैं इसी एक बर्थ पर, इसलिए आराम से बैठ जाओ।’

‘आप पैर ऊपर करके खिड़की की तरफ बैठ कर अपने चांद तारे देखिए, क्योंकि इस तरफ मैं तो फैल कर बैठने वाली हूँ।’ और सचमुच मेरे पैर ऊपर करते ही वह आराम से लेट गई और अधखुली आंखों से कुछ गुनगुनाने लगी।

‘सुनो विवेक, तुम मुझे देख सकते हो।’

अपने इस तरह पकड़े जाने पर मैं झेंप सा गया और वह सो गई निश्चिंत, बेफिक्र।

हवा में उसके बाल बारबार चेहरे पर आ जाते थे। लंबी घनी पलकें अब और खूबसूरत लग रही थीं। मैं चाह कर भी अपनी आंखें उसके चेहरे से हटा नहीं पा रहा था। कितना शांत, आश्वस्त करता, सुकून भरा चेहरा।

मैं सोच रहा था कि सचमुच शायद लिखा ही था मिलना। डेस्टिनी।

ट्रेन में बैठते समय कहां उसके पति की असुरक्षा और कहां यह निश्चिंत लड़की।

खिड़की से अब चांद पूरा दिख रहा था। शरद पूर्णिमा को दो तीन दिन ही रह गए थे सो चांदनी अपने पूरे शबाब पर बिखरी पड़ी थी।

चांद की रोशनी में सफेद कपड़ों में वह सांवली सूरत और भी भली लग रही थी। सपनों-सी।

सपने का ख्याल आते ही मैंने खुद को चिकोटी काटकर कन्फर्म किया। यह सचमुच घट रहा है! चांद की शीतलता थी या हवा की ठंडक, थोड़ी देर में ही ठंड लगने लगी थी सो मैंने अपने पास रखी शॉल (लोई )अपने पैरों पर डाल ली, पर लगा कि उसे भी ठंड लग रही थी सो हल्का सा उसकी तरफ भी डाल दिया। शायद नींद में ही उसने वह शॉल खीचकर चेहरे तक ओढ़ ली और, और भी सुकून से सो गई। जाने कब मुझे भी नींद लगी पता नहीं चला।

जब आंख खुली तो लगा सपना ही है। वह सामने बैठी मुझे ही देख रही थी। होश संभाला तो लगा ट्रेन रुकी हुई है।

‘हां विवेक, ट्रेन काफी देर से रुकी हुई है और इसके लिए (शॉल) थैंक यू।’

मैंने मुस्करा कर देखा और उठ गया।

कोई छोटा अनजाना सा स्टेशन था। सुबह 3:10 का समय।

बाहर चांद का जादू था जैसे। स्टेशन पर कोई नहीं था। पैंट्री का एक अटेंडेंट नजर आया तो उसने बताया कि इंजन फेल है। दूसरा आएगा तब ट्रेन जाएगी, कम से कम एक घंटा है।

मैंने कहा- ‘चलो अब। हमारी किस्मत में शायद इस अनजानी जगह की चाय और चांदनी लिखी थी। चलकर एंजॉय करते हैं।’

उसने कहा, ‘चाय मैं पिलाती हूँ। तुम बस गर्म पानी का इंतजाम कर लो।’

मैं पैंट्री की तरफ गया। किस्मत से वे लोग जागे मिले सो गरम पानी मिल गया।

लौटकर आया तो वह मेरा ही शॉल ओढ़कर बैठी थी। हाथ में छोटा सा बैग।

‘चलें – उसने पूछा।

बाहर वही शांति थी जो तीन बजे ही हो सकती है।

पूरे स्टेशन पर बस दो तीन कुर्सियां और एक पानी का नल था। पास ही एक कुर्सी पर हम बैठ गए। उसने अपने बैग से दो कप निकाले, कुछ सैशे और तुरंत ही गर्म पानी मे मिलाकर एक कप मेरी तरफ बढ़ा दिया।

‘सो टोस्ट फॉर द डेस्टिनी एंड लाइफ, विवेक। कभी सोचा था तुमने, सुबह के तीन बजे एक अनजानी सी जगह पर एक खूबसूरत लड़की के साथ तुम अपने लाइफ की सबसे अच्छी चाय पी रहे होगे!’

‘चीयर्स’ कहकर हम दोनो हँस पड़े।

सचमुच चाय बहुत अच्छी थी। भारत में ट्रेन और स्टेशन की कल्पना में चाय-चाय का शोर अपने आप आता है, पर बिना शोर किए आई यह चाय सबसे अच्छी चाय थी।

उसने एक सैशे मेरी तरफ बढ़ा दिया कि इसको घर पर ट्राई करना और आगे से यात्रा में यही लेकर चलना। मैंने उसे लेकर अपने पास रख लिया।

चाय के कप की गर्माहट का सुकून था या स्वाद का जादू, कुछ देर के लिए हम दोनों शांत और चुप हो गए, जैसे ध्यान में हों।

सब कुछ इतना सुंदर था कि उसको बस जिया जा सकता था शांत रहकर। पक्षी अपने घोंसले छोड़ रहे थे। उनकी हल्की सुबह-सुबह वाली चहचहाहट थी। बीच में कहीं दूर मोर की आवाज गूंज जाती, तो कभी टिटहरी की तेज आवाज। पास ही पारिजात का पेड़ था, जिसपर पूरी तरह खिले सफेद फूल चांदनी में चमक रहे थे। उनकी हल्की भीनी खुशबू भी सम्मोहित कर रही थी।

वह एकदम शांत बैठी थी। किसी तपस्वी जैसी उसकी आश्वस्त करने वाली मुस्कान और आंखें। बिना कुछ बोले ही जैसे हमारे बीच संवाद हो रहा था। कई बार कोई सचमुच अपना मिलता है तो उसका बस साथ होना मायने रखता है, जरूरी नहीं होता कुछ कहना सुनना।

जाने कितना समय ऐसे ही निकल गया, और फिर अचानक जैसे हम दोनों एक ही सपने से जागे। दो लोग एक ही समय पर एक ही सपना देख रहे थे और एक ही सपने से जागे।

‘विवेक, मुझे इस शॉल से बड़ी अच्छी-सी खुशबू आ रही है। अच्छा लग रहा है इसे ओढ़ना।’ मैंने कुछ नहीं कहा। बाजू में उसके होने की गर्माहट महसूस करता चुप रहा।

‘विवेक, तुमने कहा था तुम एक ब्रेकअप से गुजर रहे हो, चाहो तो शेयर कर सकते हो।’

संक्षिप्त में सब सुनकर उसने कहा, ‘दो लोग में कोई भी डिफरेंसेस इतने बड़े नहीं होते कि उनका हल बातचीत से न निकाला जा सके, बशर्ते वे दो लोग उस रिश्ते में ईमानदारी से रहने को तैयार हों।

‘पर मैं तारीफ करूंगी कि इस सब के बाद भी तुम्हारी बातों में उसके लिए सम्मान है, वरना हर प्यार के रिश्ते का अंत नफरत से ही होता है।’

मैंने कहा, ‘आज वह जो कर रही है उसके लिए, मैं उसके साथ जिए उन अनगिनत प्यार और खुशी के लमहों को कैसे भुला दूं? वह समय हमेशा वैसा ही रहेगा।’

‘जैसे आज तुम्हारा और मेरा साथ होना, हम यहां साथ हैं, खुश हैं तो यही समय हमारे लिए महत्वपूर्ण है।’

‘कल फिर मिलें न मिलें, पर तुम्हें लगता है सब कुछ गलत होने के बाद भी तुम इस पारिजात की खुशबू को भूल पाओगी? ये खुशबू और ये बीत रहा समय हमेशा यहीं रहेगा।’

‘तुम्हारी हथेलियों की यह गर्माहट हमेशा इस पल में मेरे साथ रहेगी’। इस बातचीत के किस क्षण में उसका हाथ मेरे हाथ में आ गया था पता ही नहीं चला।

‘विवेक, ऐसे ही रहना हमेशा। मैं खुश हूँ तुम्हारे लिए कि तुम प्यार को असल में जी पाते हो। वरना शादी या प्यार में जल्दी ही पति पत्नी – मालिक और प्रेमी – जेलर बन जाते हैं।’

यह कहते समय उसने आंखे बंद कर ली थी और चांदनी में एक बूंद-सी चमकती दिखी जो उसकी आंखों से गिरकर खो गई कहीं।

और फिर कुछ देर के लिए हम दोनों चुप थे। बस महसूस हो रहा था कि उसकी हथेलियों की पकड़ और मजबूत हो गई थी मेरे हाथों पर।

तभी येलो सिग्नल हुआ, वह उठ कर खड़ी हो गई।

‘अगर तुम बुरा न मानो विवेक, मैं तुम्हें हग कर सकती हूँ…’

और फिर उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना मुझे कस कर पकड़ लिया। उसकी सहजता मुझे गिल्ट दे रही थी कि मैं क्यों नहीं हूँ इतना सरल। उसके बालों में कोई जानी पहचानी खुशबू थी जो पारिजात के साथ ही मेरी आत्मा में बसती जा रही थी।

सपना, जैसे ट्रेन की सीटी से टूटा।

वह वैसी ही शांत अपनी जगह पर आकर बैठ गई। मुस्करा कर देख रही थी। मैं उसके पैरों के पास।

‘तो इस चाय के लिए तो याद करोगे न विवेक’, और मेरा शॉल उसने उतार कर मुझ पर डाल दिया। शॉल में उसकी गर्माहट बनी हुई थी।

मैं कहना चाह रहा था – इसमें अब तुम्हारी खुशबू आ रही है। पर कहा – ‘सुनो, अब हम कभी नहीं मिलेंगे?’

कुछ देर बैठे रहने के बाद उसने अपने बैग से कुछ निकाला। स्टीकर था। उसपर कुछ लिखा और मोड़ कर मुझे दे दिया।

‘इस पर मेरा नंबर है पीछे। यह खुशबू कभी ज्यादा परेशान करे तो फोन कर लेना।’

मैंने वह नोट लेकर वॉलेट में रख लिया।

उसे भोपाल उतरना था और मुझे 10 मिनट बाद हबीबगंज।

उसका स्टेशन आ चुका था। मुझे नीचे आने से उसने मना कर दिया। ‘मैं अलविदा कहने में अच्छी नहीं हूँ विवेक’, खिड़की पर आकर उसने कहा।

ट्रेन चल पड़ी थी। मैं उसकी जगह पर बैठा था। वह एकटक मुझे देख रही थी जब तक आंखों से ओझल न हो गई।

मैंने शॉल समेट कर सूंघा, वही खुशबू।

जैसे वह थोड़ी उस शॉल में बाकी रह गई थी।

सचमुच हम निकल कहां पाते हैं, बाकी रह जाते हैं उन लमहों और चीजों में।

आहिस्ता से फोल्ड करके मैंने उसकी खुशबू बचाकर वह शॉल करीने से रख लिया था।

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