कविता संग्रह – ‘मेरे मन का शहर’। व्यक्तित्व विकास एवं व्यावहारिक कौशल प्रशिक्षक।

1-बूंद और मैं

पानी की एक बूंद
मेरी खुली हथेली पर आ पहुंची
शायद आसमान से आई
जिंदगी से भरी एक बूंद
चाहूं तो पी लूं
चाहूं तो गीला कर लूं
अपना सूखा चेहरा
या धीरे से लुढ़का दूं
नीचे जमीन पर
इस बूंद को जो है
मेरी खुली हथेली पर
या यहीं रहने दूं इसे
यहीं धूप के तले
और कहूं कि जा
उड़ जा आसमान में
जाना
पर इतना भी ऊंचा मत जाना
कि तुम्हें देख ही न पाऊं
जाकर बादल पर रुक जाना
जब दिल चाहे बरस जाना
ऊंचाइयों पर जाना
पर इतना भी ऊंचा मत जाना
कि जमीन से रिश्ता ही खत्म हो जाए।

2-चश्मे का नंबर

मत बदलना मेरे चश्मे का नंबर
मुझे नहीं देखनी बढ़ती हुई झुर्रियां
मत देना मुझे हीयरिंग एड
मुझे नहीं सुनना वो
जिसे न सुनना ही बेहतर हो
झुकने देना मेरी कमर
जब दुनिया अकड़ कर चलने लगे तो
मेरा झुक जाना ही बेहतर है
जब जमाने की रफ्तार
हो जाए मुझसे तेज
और फूलने लगे मेरा दम
तो मत जोड़ना मेरी सांसें
समय के साथ
धीरे-धीरे होने देना मुझे शिथिल
समेटने देना मुझे अपने को
शुरू होने वाला है मेरा अगला सफर
मत बदलना मेरे चश्मे का नंबर।

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