ख़ास चिट्ठी : नवनीत कुमार झा, दरभंगा

वागर्थ, जून 2021 अंक: दलित आंदोलन और विमर्श की जिस परंपरा को फुले,अय्यनकलि, पेरियार रामास्वामी आदि ने सींचा उसे एक संगठित वैचारिक जमीन देकर पल्लवित- पुष्पित करनेवाले अंबेडकर के विचारों की अहमियत आज बढ़ गई है, क्योंकि आज धार्मिक कट्टरता और सामाजिक जटिलता नए-नए रूपों में सामने आ रही है। आज धार्मिक, जातीय भेदभाव, पाखंड और हिंसा ने भारतीय समाज को ग्रसित कर लिया है। हमारी राष्ट्रीय उन्नति में जातीय और क्षेत्रीय स्वार्थ हमेशा ही एक बाधा रहा हैऔर आज भी है। आज फिर से देश में समता, स्वतंत्रता और ब॓धुत्व की भावना का हनन किया जा रहा है और ब्राह्मणवाद नए-नए रूपों में अपने पैर पसारने लगा है।अब मूल्यों और उसूलों की बातें पुरानी और बेकार होती जा रही हैं। निस्संदेह राष्ट्र और हाशिए के लोगों के मध्य सामंजस्य आवश्यक है और इसके लिए जरूरी है कि अंबेडकर द्वारा निर्मित धर्मनिरपेक्ष और लोककल्याणकारी भारतीय संविधान की रक्षा हो और यह तभी संभव है जब जातीय, धार्मिक और सांस्कृतिक विविधताओं के बावजूद हम एक हों और फासीवाद, धर्मांधता और भेदभाव के खिलाफ संगठित प्रतिरोध करें।निर्बुद्धिपरक सत्तासीनों ने हमारे संविधान को ‘कार्पोरेट जगत’ के पास गिरवी रख देने की साजिश रची है, लेकिन हमें उनके मंसूबों पर पानी फेरना है और देश एक नई विकास-यात्रा पर अग्रसर करना है।

ज्ञानप्रकाश विवेक की कहानी एक ऐसे किरदार से शुरू होती है जो हमारे आसपास के किसी अभावग्रस्त, गरीब, परंतु असीम धैर्य वाले एक शिक्षक से हमारा परिचय कराता है। कहानी में चित्रित अध्यापक की शालीनता देखते बनती है।बच्चे उनके लिबास पर हँस रहे हैं, पर वे बड़े धैर्य और शांतिपूर्वक ढंग से उन्हें नसीहत देते हैं। बच्चों को डांट-फटकार से जितना नहीं सुधारा जा सकता उतना आत्मीयतापूर्ण व्यवहार सेसुधारा जा सकता है। आजकल ऐसे हुनरमंद और सुयोग्य अध्यापकों का अभाव है।इस भावपूर्ण कहानी के लिए कहानीकार के प्रति आभार। ज्ञानप्रकाश जी की कहानियों का इंतजार रहेगा।

शतरंज मेरा प्रिय खेल है और बिसात बिछी देखकर मैं बिना एकाध बाजी खेले घर लौट नहीं सकता था, लेकिन इस साहित्य ने मुझे इस कदर सम्मोहित कर लिया कि अब कविताओं और कहानियों को पढ़ते / सराहते ही अपना वक्त कट रहा है।’शतरंज की एक बाजी’ के बहाने मिर्जा हाफिज बेगसे रू – ब – रू हुआ तो कहानी दिल को छू गई। आज नौकरशाहों और राजनेताओं का बड़ा खराब छिच्छा (प्रवृत्ति) हो गया है कि वे आनन-फानन में दो नंबर की संपत्ति बनाने में जुट जाते हैं और राजनेताओं के तो इतने गुप्त खजाने होते हैं जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। कथाकार के ये शब्द चुभ जाते हैं कि‘जिस मात्रा में रक्त- शिराएँ दाऊ हीरालाल के शरीर में हैं उतनी ही उसके पास प्रॉपर्टी और संपदा है और कहां क्या है यह दाऊ हीरालाल को ज़बानी याद है।’ दाऊ हीरालाल जैसे  राजनेताओं की तो चांदी है, क्योंकि जब चाहो दल बदल लो और जनता को झांसा देकर जीतो और फिर लूटने का पांच साल का परमिट पा जाओ। लेकिन राजनीति से अलग होने के बाद भी दाऊ हीरालाल जैसे लोग अपनी सामंती नीचता और तथाकथित ऊंची जातीयता के दंभ की गुंजलक से बाहर नहीं आते हैं।

युवा कवि पंकज चतुर्वेदी की कविता ‘एक आदमी आदेश देकर’ काव्य – नाटिका जैसी प्रतीत होती है, जिसमें कोरोना काल में यंत्रणा और पीड़ाओं से भिड़ते हुए सैकड़ों मील दूर अपने गांव लौटते हजारों लोगों की जिजीविषा का आख्यान है।कविता में हमारे इस स्याह समय की विडंबना को इस भावपूर्ण तरीके से दर्शाया गया है कि कविता ‘बहुत अच्छी है’ कहकर नहीं रहा जा सकता है। कवि पंकज जी ने आम आदमी के अस्तित्व को लेकर जैसे एक सवाल रखा है कि आखिर जब लोकतंत्र है तो कोई सरकार बिना किसी पुख्ता व्यवस्था के किसी भी नागरिक को बीच महामारी में मरने-खपने के लिए कैसे छोड़ सकती है? आख़िर इस महान आपदा के समय सत्ता का सर्वोच्च प्रतिनिधि अनाप-शनाप आदेश देकर क्यों छिप गया है? हजारों लोगों को आख़िर क्यों अपने रहमोकरम पर लाचार कर दिया गया है? कविता को पढ़ते हुए मन में कई-कई प्रश्न उठते रहे। पर इन प्रश्नों के उत्तर कौन देगा। दूसरी कविता भी समय की विडंबना का एक अलग पहलू पेश करती है। लेकिन ‘रहीम चाबी वाले’ की तो बात ही निराली है। कविता कितनों को अपना दृष्टिकोण बदल लेने को प्रेरित करेगी।

‘ढलती शाम का सूरज’ निशि रंजन ठाकुर की बहुत ही मार्मिक कहानी है। वृद्धावस्था में सहारा देने की जगह जब पुत्र ने पिता का सर्वस्व हरण कर लिया, तब भी परित्यक्त पिता ने हार नहीं मानी और अपने जीवन को पुनः गढ़ने के लिए कृतसंकल्पित होकर एक नए ‘क्लिनिक’ की शुरुआत की। जिस उमर में अकसर लोग हारे को हरिनाम मानकर स्थितियों से समझौता करने को बाध्य हो जाते हैं, वहीं इस कहानी का एक पात्र ‘अप्प दीपो भव’ की राह पर अग्रसर होता है, जो अनुकरणीय है। समाज में जिस तरह से वृद्ध लोगों की अवहेलना करने की प्रवृत्ति बढ़ी है वह चिंतनीय है और निस्संदेह यह आवश्यक है कि लोगों की स्वार्थी प्रवृत्ति एवं क्षुद्र मानसिकता को लज्जित नहीं, बल्कि परिवर्तित करने के लिए ऐसी ही और कहानियां लिखी जाएं।

संजय जायसवाल, कोलकाता: वागर्थ, जून 2021 अंक में प्रकाशित सत्येंद्र श्रीवास्तव की कहानी ‘कीचड़’एक उम्दा कहानी है। इसमें समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव का एक ऐसा घनौना रूप चित्रितहै, जिसमें बाप ही अपनी बेटी के जीवन को बरबाद करना चाहता है और दामाद की हत्या करवाना चाहता है। सुपारी लेकर हत्या करने वाले एक अपराधी का जिस तरह से हृदय परिवर्तन होता है, वह अनोखा है। कीचड़ के माध्यम से अभिव्यक्त समाज का कड़वा सच हमारे अंतर्मन को मथ देता है। यह कहानी मन को झकझोर देती है।काश आज सत्येंद्र भैया होते तो इस कहानी पर उनसे बातचीत जरूर होती।

धीरज कुमार : सत्येंद्र श्रीवास्तव की कहानी ‘कीचड़ वाकई सुंदर कहानी है। अपना पिता ही झूठे मान सम्मान के लिए हैवान बन जाता है। दूसरी ओर एक पेशेवर कातिल सच्चे पिता का धर्म निभाता है। कहानीकार को बहुत-बहुत बधाई।

निखिता पाण्डेय : वागर्थ, जून 2021के अंक में नरेंद्र पुंडरीक की ‘भूख हमारी थी तो सपने भी हमारे थे’….समसामयिक और यथार्थ की धरातल पर उभरी बेहद मार्मिक कविता है। आज निजी हितचिंता के वशीभूत मनुष्य की मनुष्यता समाप्त होती जा रही है और इंसान का अंतर्मन मानो आत्महत्या कर चुका है। इसेहम ‘मौन की मृत्यु’ कह सकते हैं।

पंडित शुभम शास्त्री : वागर्थ, जून 2021 अंक। नरेंद्र पुंडरीक की कविता हृदय को छू लेने वाली है । इस कवितामें आजादी के बादसे आज के समय तक की अद्भुत तुलना है। उस समय भूख से लड़ने का सपना था पर अब भूख बाजारों में उतर गया है। कवि ने अनाज और सपने का एक अनोखा बिंब रचा है। प्रसंगों और यथार्थस्थितियों के बीच बहुत ही गहरा रिश्ता अभिव्यक्त है, जिससे कविता जीवंत हो उठी है।

अशोक कुमार :वागर्थ, जून 2021 अंक में प्रकाशित कुसुम खेमानी के बतरस मारवाड़ी राजवाड़ी को पढ़ कर उनकी रचनाओं को और अधिक पढ़ने की प्यास बढ़ गई। हालांकि यह कुसुम खेमानी की रचनाओं के लिए नई बात नहीं है। पाठकउनकी रचनाएँ पढ़ने, और सुनने की प्यास लिए ही रहते हैं।

निशि मोहन: वागर्थ, जून 2021 अंक में प्रकाशित कुसुम खेमानी की कथा मारवाड़ी राजवाड़ी रोमांचित करती है और आगे पढ़ने की जिज्ञासा को तीव्र करती है। यह कुसुम खेमानी के लेखन की विशेषता है।

संजय कुमार: ‘वागर्थ’ के संपादकीय को पढ़ते समय एक प्रश्न उठता है कि हम दूसरों से जो उम्मीद करते हैं उस तर्ज पर हम खुद कितना खरे उतरते हैं। हमारी यह शिकायत होती है कि हिंदी जनमानस बहुत अधिक छला गया। पर मेरी जेहन में हिंदी जनमानस के छले जाने से ज्यादा बड़ा सवाल यह उठता है कि हिंदी जनमानस के वे लोग जो कुछ न कुछ करने की सामर्थ्य रखते हैं, उन लोगों ने समावेशी अखंडता के लिए क्या किया? रेड वोलेंटीयर के सदस्य इस महामारी में कलम चलाने के साथ-साथ ऑक्सीजन सिलेंडर समेत अन्य चीजों को महामारी की चपेट में आए लोगों को उपलब्ध कराए।गली मोहल्ले के लोगों ने दो सौ, पाच सौ, हजार रुपए का चंदा लेकर लोगों की आर्थिक मदद और सेवा की।क्या हिंदी जनमानस का यह दायित्व नहीं था कि वे इस तरह के लोगों को देख कुछ सीखते और कलम-वीर होने के साथ-साथ लोगों के पास खड़े होते और एक बृहत्तर नागरिक परिसर का निर्माण करते।

शम्भू शरण सिंह : बेहतरीन संपादकीय। विश्वगुरु बनने के लिए वैज्ञानिक सोच को आगे बढ़ाना होगा। आपसी प्रेम ओर भाईचारे को बढ़ावादेकर ही हम देश का हित कर पाएँगे और मानवता का धर्म निभा पाएँगे। यहां तो लोग इस आपदा में भी अवसर खोजने में लगे हैं और मानवता का चीर-हरण कर रहे हैं।

महेश जायसवाल, कोलकाता :कविता को बचाएंगे/ संस्कृति कर्मी/लिख लेंगे अच्छी कविताएं कवि/पर बहुतेरे बचा नहीं पाते/अपनी कविताएं/बेहतर वाचन के अभाव में/समुराई बनते हैं/संस्कृति कर्मी/ जानने के लिए – कविता का धारदार इस्तेमाल!बधाई युवा दोस्तो!

हरे राम सिंह, वागर्थ, अप्रैल 2021 अंक :तूफानी, उमर व तपेन्द्र हमारे समाज के प्रतिनिधि चरित्र हैं। तूफानी बीते जमाने का प्रतीक है। गंगा जमुनी तहजीब के सर्वांश से समाज सराबोर है।उमर वर्तमान बेरोजगार, उत्साहहीन असुरक्षित अल्पसंख्यक समुदाय कोप्रतिबिंबित करता है।तपेंद्र नारंगी गमछा वाला स्टाइल का वर्तमान है। सत्ता का प्रतीक है जिसने समाज में भय का कारोबार स्थापित करखुद को सामंती व्यवस्था में रूपांतरित कर लिया है।इन विद्रूपताओं को उजागर करना ही कथाकार का मूल उद्देश्य है।

उदय राज : वागर्थ, जून 2021के अंक में मल्टीमीडिया में पिता को समर्पित चारों कविताएं सुनना एक सुखद अनुभव था. ध्वन्यात्मक संगीत सी कहानियों का पाठ सुखद और संतोष दायक है। इन प्रयासों ने साहित्यिक अभिरुचि के नवीन आयाम समक्ष ला दिए हैं। ऐसे प्रयासों की पुनरावृत्ति अनिवार्यतः अपेक्षित है। आभार !