युवा कवि। जे.एन.यू. में एम.फिल. के विद्यार्थी।
सोचता हूँ
आत्मा से सच्चा है क्या कुछ
दुनिया ने कितनी ही कोशिश की
आत्मा का भी बाजारीकरण हो सके
आत्मा बिकी भी
मगर समूची आत्मा कभी कोई नहीं खरीद सका
दुनिया इस न बिकी हुई आत्मा पर टिकी है
किसी शेषनाग के फन पर नहीं
आत्मा बिक जाने पर कितनी ही त्रासदियां
रोज़मर्रा की घटना होती हैं
इतिहास में कितनी कोशिशें की गईं
आत्मा को गहरे कुएं में धकेल दिया जाए
किसी काली अंधेरी गुफा में छिपा दिया जाए
संदूक में भरकर बहुत ही मजबूत
ताला लगा दिया जाए
बिकी से बिकी आत्मा का कोई अंश
चुलबुला कर ऊपर उठ ही आता है
किसी सुराख से सूरज की एक महीन किरण
गुफा के अंतिम छोर से आत्मा को घसीटकर
दुनिया में पुनः बिखेर देती है
हर दफ़ा संदूक से आत्मा का एक हिस्सा
खनक कर बाहर गिरता
मेरा मानना है
दुनिया इस न बिकी हुई आत्मा पर टिकी है
किसी शेषनाग के फन पर नहीं!
संपर्क: निकट महावीर नगर मंदिर, रामचंद्रपुर, जसीडीह, जिला– देवघर–814142 झारखंड / मो. 8009590603 ईमेल– alokmishrax210@gmail.com
आपकी कल्पना वास्तव में एक सजीव अनुभव कराती है। ऐसे ही लिखते रहिये क्योंकि ये दुनिया निश्चित रूप से आप जैसी , ‘न बिकी हुई आत्मा पर’ ही टिकी है।अभिनंदन ।