हादसा

जब वह घर से निकला तो रास्ते में एक अजनबी से सामना हुआ। उसे लगा कि वह शख़्स रो रहा है। या फिर उसकी सूरत ही ऐसी है। शायद लगातार दुख और तकलीफें सहने की वजह से उसकी शक्ल ऐसी हो गई है।

दोनों अपनी-अपनी रफ्तार से चल रहे थे। इसलिए वह बस कुछ ही पल के लिए उसका चेहरा पढ़ पाया।

थोड़ी देर बाद उसे शक-सा होने लगा कि उसके चेहरे ने उस अजनबी की शक्ल इख़्तियार कर ली है।

उसने देखा कि राह चलते लोग उसकी सूरत को बहुत गौर से देख रहे हैं।

अब उसे एक आईने की जरूरत थी।

गुम

बिजली की कड़कड़ाहट से जब देर रात बड़े मियां की आंख खुली तो उन्होंने देखा कि बड़ी बी अपने बिस्तर पर नहीं हैं। यहीं-कहीं होंगी, आती होंगी, सोचकर चंद लम्हे इंतजार किया। मगर जब बेचैनी बढ़ी तो बिस्तर से उठकर वे इधर-उधर देखने लगे। बड़े बेटे के कमरे का दरवाजा खटखटाया। बेटा और बहू निकल आए।

तुम्हारी अम्मी कहां चली गईं इस वक़्त?

ओह अब्बू!… कहते हुए बेटे ने अफसोस से सर पकड़ लिया, अम्मी जा चुकी हैं। अब वो नहीं आएंगी।

परेशान बहू ने नर्म लहजे में कहा- आप फिर भूल गए अब्बू! इस एक महीने में ये तीसरी बार है।

बेटा हाथ पकड़ कर उन्हें उनके बिस्तर तक ले आया और लिटा कर चला गया।

बारिश शुरू हो चुकी थी। बड़े मियां देर तक खाली बिस्तर को तकते रहे। फिर बुदबुदाए- कैसा बुरा ख्वाब है!

बेआई

सूरज के डूबने का वक्त नजदीक था। भीड़, जिसकी नुमाइंदगी कस्बे के चार-पांच बदमाश कर रहे थे, बहुत ग़ुस्से में थी। वह लाठी-डंडों से लैस थी। शोर-शराबा बता रहा था कि ये लोग कुछ भी कर गुजरने की हिम्मत रखते हैं। 

जरा ही देर में जब भीड़ अपनी मंजिल पर पहुंच गई तो उसकी नुमाइंदगी कर रहे लोगों में से एक शख़्स  एक तरफ उंगली से इशारा करते हुए बोला- ये रहा, यही है उसका मकान!

यह सुन कर भीड़ उस मकान में, जिसका  लकड़ी का कमजोर दरवाजा अंदर से खुला था, घुस गई। उसने अंदर मिलने वाले हर सामान और शख़्स को तोड़ना-फोड़ना शुरू कर दिया। घर में एक हंगामा बरपा हो गया। चीख़-ओ-पुकार मच गई। एक दूधमुंहा बच्चा एक छोटी सी चारपाई पर पड़ा बिलख रहा था। एक वही था जो भीड़ का शिकार होने से बच पाया था।

कारवाई शुरू हुए चंद मिनट हुए थे कि उंगली उठाने वाला शख़्स जोर से चीख कर बोला, अरे नहीं! शायद वो इसके बराबर वाला मकान था!

जवाब

कई मिनट हो गए। पानी का नल घेर रखा है। देखो, अब वह हाथ धो रहा है। …अब उसने हाथ गीला करके सर पर फेरा। …लो, अब पैर धोने लगा। क्या तुम्हें यह सब अजीब नहीं लगता?

तुम्हारे लिए यह सब अजीब है। उसके लिए नहीं है। क्या फर्क पड़ता है इस बात से?

फर्क क्यों नहीं पड़ेगा? पब्लिक प्लेस पर वह यह सब कैसे कर सकता है? …अब देखो, जमीन पर कपड़ा बिछा कर खड़ा हो गया।

एक कोने में ही तो खड़ा है। अब जैसी जिसकी श्रद्धा। क्या तुम्हारा कुछ नुकसान कर दिया उसने?

जो भी हो, मगर मुझे यह सब पसंद नहीं।

तो अब तुम क्या करोगे?

अगर उसको आजादी है तो मैं क्यों पीछे रहूँ? कहकर उसने कुर्ते की जेब से माला निकाली और कुछ प्रबंध किया। फिर पूछा- और तुम?

मेरी अभी इच्छा नहीं है। तुम करो। और हां, जब कर चुको तो उसको शुक्रिया जरूर बोल देना!

 

 

लाजपत नगर, मुरादाबाद (यूपीमो. 9412244221