राजेश पाठक, गिरिडीह : युवा लेखिका जसिंता की कहानी ‘अंतिम वार’, भोगे हुए यथार्थ के धागे से रची-बुनी एक सशक्त कहानी है। यह सामाजिक विद्रूपताओं पर तीखा प्रहार है। इस कथा के पात्र समाज में पैठे बहुरूपियों के छल-छद्म को उधेड़ने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते। इनके विचार तथा कथानक का दर्शन निर्विवाद रूप से साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं।
धनेश दत्त पांडेय, देहरादून: नवंबर 2023 के अंक में हेनरिका वांदा लाज़वारतोवना (अनुवाद किशोर दिवसे) की कविता चुभने वाली है और जॉन फॉसे (अनुवाद उपमा ॠचा) की कविता भी संवेदनाओं को कचोटती है, जबकि दोनों कविताएं दो-दो बार अनुवाद (पहली बार अंग्रेजी में) के बाद हमारे सामने हैं! साहित्य ऐसी ही रचनाओं से समृद्ध होता है, न कि नएपन के बहाने नकली रचनाओं से।
कृष्ण कुमार भगत, ऊधम सिंह नगर:‘वागर्थ’ से लंबे समय तक दूर रहा, इसे मैं अपना दुर्भाग्य मानता हूँ। बीते सितंबर से अब निरंतर पढ़ रहा हूँ। हर बार इसमें मन में कुलबुलाते अनेक सवालों के ज़वाब मिल जाते हैं। वाक़ई जीवन-दृष्टि का अकाल पड़ गया लगता है। हम सब मूक दर्शक हैं और साफ़-साफ़ देख नहीं पा रहे हैं।
अजय प्रकाश, इलाहाबाद:‘वागर्थ’ का नवंबर 2023 अंक। ठीक लिखा गया है कि पहले ‘नॉलेज इज पावर’ हुआ करता था, वह अब ‘पावर इज नॉलेज’ हो गया है। यानी जिसकी लाठी उसकी भैंस। समीक्षा-संवाद में ‘उपन्यास की लोकतांत्रिकता’ महत्वपूर्ण है।
2047 तक भारत की स्थिति और भी बदतर होने वाली है, इसको कोई रोक नहीं सकता। भले ही टेक्नोलॉजी का विकास होगा, लेकिन आदमी और संकीर्ण होता जाएगा। कहानियों में वंदना देव शुक्ल की कहानी ‘भूल’, भावना शेखर की कहानी ‘इज्जतदार आदमी’ अच्छी लगी। ‘वागर्थ’ में कविताएं भी ढेर सारी पढ़ने को मिल रही हैं। इसके लिए यह परिवार बधाई का पात्र है। लघु पत्रिकाओं के बारे में भी चर्चा हो। नोबेल प्राइज विजेता जॉन फॉसे के बारे में उपमा ॠचा की सामग्री के लिए बधाई।