लघुकथाकार, एक कहानी संग्रह सहित चार लघुकथा संग्रह।

 

दोनों भाई गायक थे और पाकिस्तान में प्रोग्राम करने आए थे। उन्हें अंदाजा नहीं था कि वे पाकिस्तान में भी उतने ही लोकप्रिय हैं जितने अपने देश में।

कार हाईवे पर दौड़ रही थी। उन्होंने ड्राइवर से पूछा, ‘ये सैदपुर गाँव कहाँ पडेगा?’

‘रास्ते में पड़ेगा, हाईवे से दो किलोमीटर अंदर…‘

‘गाड़ी उधर ले चलो।’

बापू ने उन्हें कहा था, ‘पाकिस्तान जा रहे हो तो सैदपुर जाकर वहिदन से मिलते आना।’ पहले उसका परिवार हमारे पड़ोस में ही रहता था। दोनों घर जैसे एक ही थे। विभाजन के वक्त उन्हें पाकिस्तान जाना पड़ा। विभाजन के बाद कुछ वर्षों तक वहिदन के अब्बा की पाकिस्तान से चिट्ठियाँ आती रहीं। पता चला वहिदन की शादी सैदपुर में हो गई है। साल बाद पता चला, उसके अम्मी-अब्बू दोनों गुजर चुके हैं।

सैदपुर पहुँच कर पूछते-पुछाते दोनों गायक किसी तरह वहिदन के घर पहुँच ही गए। ‘मैं पिछाण्या नहीं? तुस्सी कौन…?’

‘हम दोनों कीरतपुर वाले सरदार सरदुल सिंह के बेटे हैं। इधर आए थे, सोचा आपसे मिलते चलें।’

वहिदन को तो जैसे क्या ही मिल गया। उसकी आँखें भीग गई और वह  ‘मेरे पुत्त-मेरे पुत्त, अंदर आओ’ कहती हुई उनके गले लगकर रोने लगी। आशीर्वाद देते-देते वहिदन का मुँह थक नहीं रहा था, ‘जिंदे रहो-सोखे होवो!’

एकाएक वह उठकर बाहर गली में जा खड़ी हुई और आवाज लगाने लगी, ‘नीं रशीदा-नीं फत्तो-नीं आबिदा.. नीं शबाना! तुसी कैंइ दियाँ सी ना कि तेरे मायके से कदी कोई नयीं आया? आ वेखो…… अज्ज मेरे मायके से मेरे भतीजे मेरा पता-सुर लैंण आयें हैं..।’

आस-पास के लोग उनसे मिलने आ पहुँचे थे। किसी के हाथ में लस्सी का गिलास था तो किसी के हाथ में मिठाई। दोनों गायकों को समझ में नहीं आ रहा था कि लाइने खिंचने और युद्धों के बावजूद विभाजन कहाँ हुआ है?