उसे एक्टिंग का बहुत शौक है। न जाने कितनी बार स्कूल से बंक मारकर उसने ढेरों फिल्में देख डाली थीं। वह मुंबई की फिल्मी दुनिया के सपने देखने लगा था। लेकिन क्या करे, वहां का कोई जुगाड़ बैठ नहीं पा रहा था। एक दिन हिम्मत करके वह बिना टिकट ही ट्रेन पर चढ़ गया। उसकी जेब में गिने-चुने रुपए थे। जैसे-जैसे ट्रेन आगे बढ़ने लगी, उसका दिल धक-धक करने लगा। क्या करेगा अगर टी.टी.आ गया? अचानक एक छुअन पीठ पर हुई, सामने टी.टी. था। उसने देखा टी.टी. के कोट पर नेम प्लेट लगी है… अब्दुल राशिद। ‘सलाम वालेकुम!’ उसके मुंह से निकला। ‘वालेकुम सलाम!’ बहुत ही विनम्रता से टी.टी. बोला।
‘आप ही की तलाश में था, मैं इकबाल हूँ। मेरे पास टिकट के पैसे नहीं है लेकिन जाना जरूरी है! अब सारा दारोमदार आप पर है, मैं आपके रहमो करम पर हूँ। आप चाहे तो मुझे मुंबई पहुंचा दें या पुलिस में दे दें।’ धीमे से अपनी बात कह गया।
टी. टी. उलझन में पड़ गया। फिर बोला, ‘मेरे साथ चलो, मैं तुम्हें बैठने की जगह दिलवा देता हूँ।’
मुंबई स्टेशन पर उतर कर उसने दूर से ही देख लिया कि बाहर निकलने वाले गेट पर चार टी.टी.खड़े हैं। हाथी निकल गया बस पूछ रह गई है। अचानक थोड़ी दूरी पर एक टी.टी.दिखाई दिया, वह सरदार था। उसने कुछ सोचा फिर उसके पास आकर बोला,
‘सत श्रीअकाल!’ ‘सत श्रीअकाल!’
‘दार जी, त्वाडे नाल इक गल क रनी सी।’
‘हां दस्सो!’
‘मेरे कोल टिकट नहीं है, पैसे भी नहीं हैं! तुसी चाहो तो मेनू स्टेशन दे बाहर कड सकदे हो। बड़ी मेहरबानी!’
सरदार जी सोचने लगे।
‘नहीं तो मैनू पुलिस ने ले जाना है।’
‘कोई गल नहीं पुत्तर। कित्थे दा रहन वाला ए?’
‘मेरा नाम इकबाल सिंह ए, मैं लुधियाने दा अं पर रैंदा दिल्ली वा…।
‘तू सिख ए?’
‘जी।’
‘चल मेरे नाल चल।’ वे दोनों चलते-चलते उसी गेट से बाहर आ गए।
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एक्टिंग अच्छी कर लेता है बंदा, मुंबई में चांस लग जायेगा। बधाई अच्छा लिखा है