युवा कवयित्री। तीन नवगीत संग्रह, दो दोहा संग्रह, एक गीत संग्रह, एक प्रेमगीत संग्रह प्रकाशित।

प्रतिरोध खड़ा निर्बल

कहीं डरी है
चिड़िया, चुनमुन
और कहीं तितली घायल है
घुंघरू भी आवाज न कर दें
डरी-डरी पथ पर पायल है

चारों ओर कुहासा फैला
दिन में भी फैला अंधियारा
बढ़ जाता है अंधियारे में
अक्सर यहां हवस का पारा

ऊपर-ऊपर शहर दूर तक
भीतर-भीतर इक जंगल है

सभ्य घरों के खिड़की, परदे
ढांप रहे हैं अपना ही सच
छोटी-छोटी कलियां भी अब
सीख रही हैं क्या है गुड टच

बेहद अपनों के शरीर में
छिपकर बैठ गया क्यों खल है

कितने सपने, कितने जीवन
कितनों का विश्वास निगलकर
इस वहशीपन ने डर बोया
युग बीते, यह बढ़ा निरंतर

कुछ भी बदल नहीं पाये हम
क्यों प्रतिरोध खड़ा निर्बल है

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