गौरव गुप्ता
युवा कवि, अनुवादक । कविता संग्रह- ‘तुम्हारे लिए’।

निज़ार कब्बानी
(1923-1998)। सीरियाई कवि, राजनयिक तथा प्रकाशक। अरबी दुनिया के महानतम कवियों में गिने जाने वाले निज़ार कब्बानी की कविताओं में प्रेम की अभिव्यक्ति के साथ ही स्त्री की आजादी का भाव भी व्यक्त हुआ है।

जब भी मैं तुमसे प्यार करता हूँ

जब भी मैं तुमसे प्यार करता हूँ
उग आती है एक नई भाषा हर बार

खोज लिए जाते हैं नए शहर, नए देश
छोटे छोटे पिल्लों की तरह हांफने लगता है समय
किताबों के पन्नों के बीच
उगने लगती हैं गेहूं की बालियां

उड़ जाती हैं तितलियाँ तुम्हारी आंखों से
शहद की खोज में

तुम्हारे उभारों के बीच बहती हैं नदियां
वे समेटे होती हैं भारत की जड़ी-बूटी

गिर रहे होते हैं आम जमीं पर
जंगलों में लग जाती है आग
और न्यूबियन लोग ढोल पीटते हैं

जब भी मैं तुमसे प्यार करता हूँ
तो शर्म से हिलती है तुम्हारी छाती
जो पैदा करती है बिजली
और बादलों में गड़गड़ाहट
और लाती है एक रेतीला तूफान

जब मैं तुमसे प्यार करता हूँ
जगते हैं अरब के लोग, करते हैं विद्रोह
सदियों से हो रहे दमन के खिलाफ
जब मैं तुमसे प्यार करता हूँ
सड़कों पर उतर आते हैं लोग
नमक के राजाओं के खिलाफ
रेगिस्तान पर कब्जे के खिलाफ

और इस तरह मैं तुमसे तब तक प्रेम करता रहूंगा जब तक नहीं आ जाता
जलजला समूचे विश्व में
और इस धरती के डूबने तक
करता रहूंगा तुमसे प्यार।

मैं कोई शिक्षक नहीं

मैं कोई शिक्षक नहीं
जो सिखला सकूं ‘प्रेम करने के तरीके’
मछलियों को नहीं जरूरत किसी शिक्षक की
जो सिखलाता हो तैरना
और न ही जरूरत है चिड़ियों को
जो बता सकें उन्हें, उड़ने की तरकीबें

ख़ुद ही तैरो
और
उड़ो-ख़ुद से ही

प्रेम किसी पाठ्यक्रम का विषय नहीं
और
इतिहास में दर्ज सभी महान प्रेमी रहे हैं
अनपढ़ औऱ अंगूठा छाप।

रानीगंज मुहल्ला, चकिया, पूर्वी चंपारण, बिहार 845412 मो.8826763532