(12 जनवरी 1962 – 13 जुलाई 2020)
कविता और ग़ज़ल की लगभग बीस किताबें प्रकाशित।मुकरी, कवित्त, हाइकू, दोहा, माहिया, कुंडलियां आदि पर विशेष काम।हिंदी के अलावा लोकभाषा अंगिका में भी लेखन।त्रैमासिक पत्रिका ‘कौशिकी’ का पिछले बीस बरसों से बिना विज्ञापन के नियमित संपादन और प्रकाशन।कोरोना संक्रम्रण के कारण निधन।
1.
वह तो लेकर बबाल आएगा
सागरों में उबाल आएगा
आप इसको दबा नहीं सकते
बारहा यह सवाल आएगा
मोतियों के लिए ज़माना यह
सागरों को खंगाल आएगा
कल रुकेगी तमाम मनमानी
दौर कल बेमिसाल आएगा
बोलने का यही समय किंकर
बाद में तो मलाल आएगा।
2.
ख़ुशी के लिए ग़म बटोरे गए
कई आशियां फिर से तोड़े गए
हुई साजिशें कुर्सियों की बहुत
जिन्हें कैद रखना था, छोड़े गए
गरीबों की बस्ती उजड़ ही गई
बहे अश्क भी, हाथ जोड़े गए
इन्हीं रोटियों के लिए आज तक
यहां खूं के कतरे निचोड़े गए
मुझे ग़म है सच के लिए भी कभी
उठे हाथ भी तो मरोड़े गए।
पूर्व पता : क्रांति भवन, कृष्णा नगर, खगरिया-851204 (बिहार)
शानदार गजलें… नमन गजलकार को