युवा कवि।नया संग्रह ‘मौन भी अपराध है’ (नवगीत संग्रह)।संप्रति उपनिदेशक कविता कोश।
एक
घुप अंधेरा है मगर तू रोशनी को ढूंढ ले
दुख भरी इस जिंदगी से चल खुशी को ढूंढ ले
दूर है मंजिल तुम्हारी और रस्ता है कठिन
जिंदगी के इस सफर में तू किसी को ढूंढ ले
मौत के दर पर खड़ी है लाख तेरी जिंदगी
जिंदगी अनमोल है, तू जिंदगी को ढूंढ ले
क्यों भला प्यासे खड़े हो इस समंदर के करीब
प्यास पल में मिट सके, ऐसी नदी को ढूंढ ले
जिसने ईमां को ही दौलत आज तक समझा यहां
भीड़ में खोए हुए उस आदमी को ढूंढ ले।
दो
चल पड़े हैं आज वे मौका भुनाने के लिए
आंधियों के जोर पर सूरज बुझाने के लिए
तीरगी का ख़ौफ़ मुझको अब नहीं है साथियो
चंद दीपक जल रहे हैं तम मिटाने के लिए
पीली सरसों देखकर ऐसा लगा मधुमास है
क्या पता था हम मरेंगे दाने-दाने के लिए
छा गया खेतों में मातम सुन के यह उड़ती खबर
गांव तक दिल्ली चली फसलें उगाने के लिए
सुब्ह खेतों की तरफ दहकान है ऐसे चला
जिस तरह सूरज निकलता है जमाने के लिए
सिर्फ पाने की तमन्ना, हाथ खाली कर न दे
इसलिए कुछ खोना भी अच्छा है पाने के लिए
भेड़िये दरवेश बनकर मंदिरों में जा रहे
क्या नहीं होगा अभी सत्ता बचाने के लिए
ख़ुशनुमा इक वाक़या बनकर मैं उनके साथ हूँ
बात कम यह भी नहीं है गुदगुदाने के लिए
ये परिंदे शौक से आए नहीं हैं शहर में
हम भी तो जाते हैं दिल्ली आबो-दाने के लिए।
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