युवा कवि।विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।सरकारी सेवा में।
चलो उधर से ज़रा गुजर के देखते हैं
पानी गहरा है कितना उतर के देखते हैं
सुना है ख्वाब दिखाने का हुनर रखता है
एक बार उसे नज़र में भर के देखते हैं
तमाम उम्र चलते रहे मंज़िल की चाह में
सफ़र में अब थोड़ा-सा ठहर के देखते हैं
जिन्हें पता है हुनर दरिया पार करने का
वो नाव कहां मिजाज़ लहर के देखते हैं
उसे आजमाना हो तो ये नज़ारे रहने दो
इरादे गौर से उसकी नज़र के देखते हैं।
संपर्क : एम एस ए 201 टाइप 3, महानगर बहुखंडी सचिवालय कॉलोनी, लखनऊ-226006/ मो. 9544411582
गहराई में उतरना बहुत अच्छा है। बहुत सुंदर ग़ज़ल
Shukriya bhai
Excellent poem sir ji
शानदार, और सधी ग़ज़ल