युवा गजलकार। संग्रह ‘हाशिये पर आदमी’। पेशे से व्याख्याता (स्कूल शिक्षा)।

जो चिंतनशील थे इस देश के हालात को लेकर
झगड़ बैठे वही आपस में अपनी ज़ात को लेकर
वो सारे लोग भी दो गज ज़मीं में ही दफन होंगे
वहम पाले हुए हैं जो मेरी औकात को लेकर
ज़रा सा भी तो खारापन नहीं देता है बादल को
समंदर खुश है नदियों से मिली सौगात को लेकर
वे अपनी जीत पर उतने जियादा खुश नहीं दिखते
बड़े खुश दिख रहे हैं जो हमारी मात को लेकर
मेरी बरसात पर लिक्खी ग़ज़ल को दाद क्या देता
डरा सहमा हुआ था जो कृषक बरसात को लेकर
अदब की इल्तिजा है देश के सब हुक्मरानों से
भजन की गूँज को मिलने दो मस्जिद की अजानों से
भला कैसे मनाएँ चैन से हम ईद दीवाली
शिकारी ताकतों की है नज़र हम पर मचानों से
हमें वो एकता के सूत्र में बँधने नहीं देंगे
जिन्हें परहेज़ है अशफाक बिस्मिल के तरानों से
पहुँचना है हमें सद्भावना के शीर्ष तक लेकिन
डगर जाती है काई से सने दुर्गम ढलानों से
तिरंगा भी दुखी है रंग बँटते देखकर अपने
मगर उम्मीद है उसको वतन के नौजवानों से।
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