विभिन्न पत्र–पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में छात्र।
घास की प्रार्थना
प्रभु!
अंतहीन सहानुभूति के स्वर में मैं कर रही हूँ
प्रेम के नाम प्रार्थना
क्या सूर्योदय की पहली किरण
धूप की पीठ पर रागात्मिका की रोशनी है
जो जीवन को जोतकर आ रही है मेरी ओर
प्रभु! भक्ति की भूमि मानवीय है
पर वसंत की फुनगियों पर श्रद्धा मुरझा गई है
ऐसा क्यों?
क्या यह नयन में निविड़ निराशा पसरने से पहले
मुट्ठी भर धूप चुराने का समय है?
या फिर अपनी चेतना का चिराग जलाने का?
प्रभु! खेत की कविता में बिंब बिलख रहे हैं
चुप्पी चहक रही है
गिरी हुई पत्तियों को परिस्थिति समझा रही है
ज़मीन पर होने का अर्थ
और विस्थापन की बात कि गिरना
तुम्हारी नियति नहीं
नई कोंपलों को जगह देना है
प्रभु! मरने से पहले पेड़ के गुण
मुझ अकिंचन को दीजिए
यह प्रातःकाल में मेड़ की घास की प्रार्थना है!!
प्रार्थना कब सुनेंगे
प्रभु! फसल कटने पर
खेत की पगडंडियां क्यों मुड़ जाती हैं
मंडी की ओर
और क्यों
पसीने और आंसू की बूंदें
नदियां बन जाती हैं
सागर से मिलने के लिए!
क्या वह उनकी पीड़ा हर लेगा?
प्रभु! पहाड़ की पहचान उसकी ऊंचाई है
पर इनकी तो गम में गहराई है
इनकी प्रार्थना कब सुनेंगे!
संपर्क : ग्राम–खजूरगांव, पोस्ट–साहुपुरी, जिला–चंदौली, उत्तर प्रदेश-221009 मो.8429249326