युवा कवयित्री। एक साझा कविता संग्रह प्रकाशित। संप्रति : शहडोल में अध्यापन।
मां की टिकुली
मां लगाती
हर रोज
एक नए रंग की
बड़ी सी गोल बिंदी
जब लगाती लाल बिंदी
जैसे उठा लेती माथे पर
सवेरे का सूरज
जब वह लगाती हरी बिंदी
काट लाती धरती की
चादर के किसी छोर से
एक गोल टुकड़ा
नीली बिंदी में समा लेती
आसमान, झरने, नदियां
और अथाह समुद्र
लगाते ही पीली बिंदी
लहलहाने लगते
फूले सरसों के खेत
गूंजने लगती शगुन की
शहनाइयां
मां के लिए बिंदी
प्रेम की एक वृत्ताकार
संरचना थी जिसे वह
टिकुली कहती और
उसके भीतर भरी रहती
अनेकों खुशियां लाखों सपने
जिनमें हर रोज भरती रहती वह
नए-नए रंग
अब पिता के बाद उसका माथा उसकी आंखें
सूरज, चांद, धरती, आसमान
लहलहाते खेत गूंजती शहनाइयां
सब शून्य हैं
मां नहीं लगाती अपने माथे
पर अब कोई टिकुली
उसके माथे की रिक्तता में
उपज आई हैं
अनगिनत चिंताओं की लकीरें
नहीं लगती अब पहले-सी
खिली खिली बात-बात पर
अब नहीं चहकती है पहले जैसी
जैसे उसे मालूम हो
पिता की तरह ही
उसकी खुशियां भी
अब दोबारा लौटकर
नही आएंगी कभी
पिता के बाद मां अब नहीं
लगाती माथे पर
कभी कोई टिकुली।
संपर्क :नवीन कुमार शुक्ला, वार्ड नंबर 24, फिरंगी सिंह के बगल में, कुदरी रोड शहडोल जिला-शहडोल, मध्य प्रदेश-484001 मो.9340314098