रेलगाड़ी के जिस डिब्बे में रामबाबू बैठा था, उसी में अचानक टीटी आ गया। रामबाबू ने जैसे ही टिकिट दिखाने के लिए जेब में हाथ डाला वह बुदबुदाया, ‘ये क्या मेरा बटुआ..और पैसे.. टिकिट..सब कहां..।’
रामबाबू की जेब कट चुकी थी। टीटी बाबू को देखकर उसके चेहरे पर घबराहट के मारे पसीने साफ तैर रहे थे।
‘टिकिट…।’ टीटी ने कहा। ‘देखिए साहब मैंने टिकिट तो ली थी, लेकिन किसी जेबकतरे ने मेरी जेब काट ली।’ ‘बिना टिकिट के यात्रा करने वाले टीटी के आ जाने से ऐसा ही कहते हैं.. टिकिट नहीं है तो जुर्माना सहित टिकिट बनवाओ।’ टीटी ने कहा।
‘देखिए साहब, मैं सच कह रहा हूँ… दरअसल मैं इसी ट्रेन से अक्सर अप एंड डाउन करता हूँ..।’ रामबाबू ने निवेदन किया। ‘करते होंगे… जल्दी से रुपये निकालो।’ टीटी ने कड़कते हुए कहा। ‘साहब कहा न मैंने… मेरी जेब कट गई है। तो जुर्माना के रुपये कहां से लाऊं।’ रामबाबू ने हाथ जोड़कर कहा।
‘अगले स्टेशन पर उतर जाना… वहां पुलिस के हवाले कर दूंगा। फिर कोर्ट में देते रहना अपनी सफाई।’ टीटी ने दूसरे का टिकिट चेक करते हुए कहा।
स्टेशन पर गाड़ी रुकी। कुछ पुलिस वाले उसे पकड़ने के लिए आए, तभी एक आवाज पीछे से आई, ‘कितना हुआ जुर्माना टीटी बाबू इनपर।’ ‘तुम कौन?’ टीटी ने पूछा। ‘हाय-हाय… हमें नहीं पहचाना’, वह बोली।
‘अच्छा… अच्छा… पहचान गया… तीन सौ रुपये।’ टीटी ने कहा। उसने तीन सौ रुपये निकाले और बोली, ‘ये लो तीन सौ रुपये और छोड़ दो इनको।’ टीटी ने रामबाबू को छोड़ दिया।
‘आपका बहुत-बहुत शुक्रिया… आप मुझे अपना पता दे दीजिए, मैं आपके तीन सौ रुपये लौटा दूंगा।’ रामबाबू ने कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा।
‘रुपये लौटाने के लिए परेशान मत हों। इंसान ही इंसान के काम आता है।’ उसने जवाब दिया। वह एक किन्नर थी।
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