‘सर कार्यक्रम की अध्यक्षता के लिए आज आप आ रहे हैं न?’
‘बिलकुल आ रहा हूँ… पहले ये बताओ कि भीड़ कितनी आ जाएगी।’
‘भीड़-भाड़ का कोई कार्यक्रम नहीं है सर… नेत्रहीनों के लिए कुछ गिफ्ट भेंट करने हैं… उनको प्रोत्साहित करने की कुछ योजनाओं की शुरुआत करनी है।’
‘नेत्रहीनों का कार्यक्रम है क्या?’
‘जी सर…।’
‘अरे हां भई… मुझे अभी याद आया, पार्टी की एक अर्जेंट मीटिंग है। मुझे वहां निकलना है।’
‘ठीक है जैसी आपकी मर्जी।’
उसी समय उसके पीए ने आकर कहा, ‘आपको कार्यक्रम में जाने के लिए मना नहीं करना चाहिए था।’
‘नेत्रहीनों के कार्यक्रम में जाकर कोई क्यों समय की बर्बादी करे। कौन से वे हमें देख सकते हैं।’
‘वे नहीं देख सकते, लेकिन… पार्टी अध्यक्ष तो देखेंगे न।’
‘क्या मतलब तुम्हारा?’
‘जिस कार्यक्रम में आज आपको अध्यक्ष बनाया गया है, उस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि तो पार्टी अध्यक्ष जी ही हैं।’
‘क्या कह रहे हो?’
‘सच कह रहा हूँ, देखिए इस आमंत्रण पत्र को।’
खुद पर नाराजगी जताते हुए बोले, ‘नेत्रहीन तो मैं हूँ, जो इतना भी नहीं पढ़ सका!’
पितृकृपा 4/254, बी–ब्लॉक, हाऊसिंग बोर्ड कॉलोनी पंचशील नगर, अजमेर-305004 राजस्थान/ मो.9461020491
यथार्थ को बयां करती बहुत सुंदर यथार्थ लघुकथा।