त्रिभुवनदास परसोत्तमदास लुहार सुंदरम(१९०८१९९१)

साहित्य अकादमी व पद्म भूषण से सम्मानित।प्रसिद्ध पुस्तक अर्वाचीन कविता

प्रवीण पांड्या

संस्कृत कवि एवं आलोचक। संस्कृत में चार काव्य संग्रह प्रकाशित।

(१)
हुआ है पृथ्वी के, तल पर युगारंभ बल का
लिया विद्युत् वायु, स्थल जल मुठी में मनुज ने
सशक्तों ने आखेट किए अबलों के मदभरे
रचे हैं ये ऊंचे, जन-रुधिर-रंगे भवन भी।
(२)
धरा कांपी, छाई, मलिन दुख-छाया जगत में
भये गांधी रूपे, प्रकट, धरणी के रुदन वे
बहे चट्टानों के, प्रपथ पर धारा धड़धड़ाक्
प्रगल्भा पर्यंते, सरल बनके वाच उपजी।
(३)
न मारो पापी को, दुगुना बनता पाप जगत का
लड़ो पापों से ही, दृढ़-हृदय के गुप्त बल से
प्रभो की हो साक्षी, गहन-तल में, शांति मन में
लड़ो द्वेषी का सोच हित, धधके पाप-गठरी।
(४)
धरा माता की कोख, रसभर वे बीज तुमने
प्रभो, जो थे बोएं, अब लहलहाते, सुखद-से
बने हैं सारे पेड़ भुवन भरे, तो अब कहो
अहो, कैसा भी पाप, मरण-पथे क्यों कर पले।

१. शिखरिणी छंद की गुजराती कविता का उसी छंद में अनुवाद

संपर्क : प्रवीण पांड्या, १७३, शास्त्रीनगर, साँचैर, जिलाजालौर, राज३४३०४१ मो. ९६०२०८१२८०