युवा कवि।विभिन्न पत्रिकाओं में कविताएं प्रकाशित।
स्त्री की मृत्यु
इतनी बड़ी नहीं होगी
उसकी मृत्यु की वजह
कि कोस सकें उसके परिजन किस्मत तक को
आत्मा की शांति की खातिर
मारी जा सकती है
सब्जी में नमक के कम होने पर
किसी गैर-मर्द से बात करने के जुर्म में
हां की जगह न में अपना सर हिला देने पर
मर्दों की माफिक नहीं मरेगी वह
किसी जमीनी विवाद में
शराब में डूबकर कोई बेकाबू वाहन चलाते हुए
मृत्यु भी नहीं देगी उसे
बिना छीने
समानता का अधिकार।
पृथ्वी
पहले तुमने कहा-
इस पृथ्वी को अपनी मां
फिर इसे तुमने बांट दिया
सैकड़ों भागों में देश कहकर!
फिर प्रांत शहर
कस्बा और गांव बताकर
पृथ्वी के कर दिए लाखों टुकड़े
तैनात कर दिया सरहदों पर
बंदूकधारियों और टैंकों को
और काटकर अलग कर दिया
पृथ्वी का एक-एक अंग
नोंच कर ले गया
एक पांव ऑस्ट्रेलिया
दूसरा ले गया
ब्राजील के जंगलों में
हाथों को अलग करके फेंक दिया गया
अफ्रीका और एशिया में!
अपनी धरती और मिट्टी को
मां कहने वाले प्रेमियो
क्या मुझे बता सकते हो
अनगिनत टुकड़ों में बांट दी गई
तुम्हारी पृथ्वी माता
उसके शरीर का कौन-सा अंग है
जिसपर तुम्हारा ध्वज है!
संपर्क : एफ–316 लाडो सराय, केबल वाली गली के पास दूसरी मंजिल, नई दिल्ली–110030मो. 8130730527