कबाड़ीवाले भैया, जरा रुकना!’ एक बच्चे ने आवाज दी तो कबाड़ीवाले ने पीछे मुड़कर देखा।एक उदास बच्चा बुला रहा था।कबाड़ी वाला ठेला डगराते हुए बच्चे के पास वापस आया।उसने बच्चे से पूछा, ‘तुम्हें कौन-सा पुराना सामान बेचना है?’

मगर बच्चे ने एक दूसरा सवाल रख दिया, ‘तुम कबाड़ी के सामान का क्या करते हो?’

कबाड़ी वाले ने कहा, ‘इन्हें ऐसे आदमी को बेच देता हूँ, जहां ये बेकार सामान उपयोगी हो जाते हैं।’

बच्चे ने फिर एक सवाल रखा, ‘क्या वे लोग इसे पूरी इज्जत से रखते हैं?’

कबाड़ीवाले ने कहा, ‘हां, चीज ठीक-ठाक रही तो वे इसे अच्छे से रखते हैं।वैसे, तुम्हारे पास कौन-सा बेकार सामान है?’

बच्चा थोड़ी देर चुप रहा।फिर उसने कहा, ‘सामान तो मुझे बहुत प्यारा है।मगर घर के लोग उसे बेहद बेकार समझते हैं।मुझसे यह देखा नहीं जाता।मुझे बहुत दुख होता है।इसीलिए तुम्हें देना चाहता हूँ।तुम इसे अच्छे घर में दोगे, तभी मैं तुम्हें दूंगा।’

कबाड़ी वाले ने उत्सुकता से पूछा, ‘क्या सामान है?’

बच्चे ने नजर नीची रखते हुए कहा, ‘वह सामान नहीं, एक इंसान है।’

कबाड़ीवाला चौंक पड़ा, ‘इंसान?’

बच्चे ने कहा, ‘मेरे दादा जी…!’ उसकी आंखों में आंसू थे।

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