सुपरिचित वरिष्ठ कवि। गजल, उपन्यास, कहानी, आलोचना आदि की तीस पुस्तकें। अद्यतन गजल संग्रह घाट हजारों इस दरिया के

चुनिंदा शेर

ख़ुशी का चांद यहां कम जवान होता है
हमेशा फ़िक्रज़दा आसमान होता है
लपेटिए इसे रखिए या काटते रहिए
ग़रीब आदमी कपड़े का थान होता है

पतंग उसने उड़ाई है इस उठान के साथ
ज़रूर बात करेगा वा आसमान के साथ

बिटिया ने एक जुगनू पकड़कर कहा मुझे
पापा, हमारे हाथ में एक माहताब है

ये ज़िंदगी भी किसी दर्द के हवन-सी है
श्लोक बोलती रहती कोई अगन-सी है

राजधानी में कई बार मैं ऐसे टूटा
जैसे आंगन में पड़ा चाय का प्याला टूटे

यही है सबसे बड़ी फ़िक्र हम सभी के लिए
ज़मीर ग़ैर ज़रूरी है इस सदी के लिए
मुझे तू देख कि तेरी गणित की नगरी में
समय निकाल लिया मैंने शायरी के लिए

बड़ा हो जाएगा तो देखना, आकाश छू लेगा
अभी छोटा-सा बालक है, इसे तितली पकड़ने दो

बुझे चिराग़ जलाने की बात करते हैं
चलो कि जश्न मनाने की बात करते हैं

हवा ने इस तरह दरवाज़ा खटखटाया है
मुझे लगा कोई मेहमान घर में आया है
जो मेरे पांव के ज़ख़्मों का कुछ न कर पाया
मेरे लिए जो जुराबें खरीद लाया है

मैं एक काग़ज़ी कश्ती बनानेवाला हूँ
तू दे रहा है समंदर का इख़्तियार मुझे

प्रेम नगर के जोगी को
क्या खोना क्या पाना था
बुल्ला, वारिस, मीर, कबीर
सबका एक ज़माना था

यारो, मैं इक मकान था ऐसे गिरा कि बस
पलभर में ईंट-ईंट बिखरता गया कि बस
मैं भूख का मारा हुआ जोकर था दोस्तो
मैं रोटियों के वास्ते इतना हँसा कि बस

कोई परदे को गिरा देगा अचानक इकदिन
ख़त्म हो जाएगा जीवन का तमाशा यारो

मैं जानता हूँ ये अचकन बहुत पुरानी है
मेरे पिता की यही आख़री निशानी है

घर में किसी को छोड़ के जाऊं तो फिर चलूं
दहलीज़ पे चिराग़ जलाऊं तो फिर चलूं
वो जो खड़ी हुई है मेरे इंतज़ार में
इक बार उससे मिल के मैं आऊं तो फिर चलूं

ऐसे कालीन को मैं किसलिए रक्खूं घर में
वो जो आवाज़ को पैदा नहीं होने देता।

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