पिछले पांच दशकों से उर्दू–हिंदी में लेखन।चार कथा संग्रह, नौ उपन्यास और एक शायरी संकलन ‘रास्ता मिल जाएगा’।
लड़की यों महसूस करने लगी थी जैसे वह किसी गहरी अंधेरी गुफा में फिसलने की तरह उतरती चली जा रही है।अपनी हालत से वह आतंकित थी।वह चाहने लगी थी कि कोई सहारा मिले तो ठहर जाए।ऐसी ही स्थिति में मद्धम-सी याद से पता चला कि उसके जैसी लड़की और हमउम्र लड़का नर्म प्लास्टिक के थैलों समेत कहीं दूर छूट चले हैं और अफरा-तफरी की स्थिति में वह सख्त भूख और शिद्दत की प्यास लिए हुए इधर अंधेरी गुफा की तरफ चली आई है।
गुफा का अंधेरा रफ्ता-रफ्ता बढ़ता चला जा रहा था और उसकी रफ्तार में कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।इससे उसका खौफ भी बढ़ता जा रहा था।ऐसे में अचानक ही उसके रुकने का सबब बन गया।राह में एक चट्टान आई तो उसने इसे दोनों हाथों से थाम लिया।उसने अपने गिर्द अंधेरे पर गौर किया तो पाया कि कहीं से रोशनी की किरण फूट पड़ी है और अंधेरा हल्का पड़ता जा रहा है।हल्की रोशनी में उसके जेहन ने धीरे-धीरे काम करना शुरू किया।
लड़की को याद आने लगा- सड़कों पर आम ट्रैफिक का कहीं नामो निशान तक नहीं था।पुलिस की गाड़ियां अलबत्त तरह-तरह के एलान करती हुई नजर आ जाती थीं।
यह छोटा-सा बाजार था।दुकानों की कतारें यहां आमने-सामने थीं।तमाम दुकानें बंद थीं।यह कोई छुट्टी का दिन नहीं था।दुकानों के बंद होने का सबब शहर में मार-काट और लूट-पाट था।लोगों को अपनी जान की पड़ी थी।उन्हें अपने घर वालों और दीगर करीबी रिश्तेदारों की चिंता भी हो चली थी।ऐसे हालात को पैदा हुए ज्यादा देर भी नहीं हुई थी।जिसके जहां सींग समा रहे थे वह वहीं पनाह ले रहा था।अजनबी जगह पर अपरिचित लोगों से होशियार रहना जरूरी हो चला था।अंदेशा इस बात का था कि कोई भी शख्स किसी भी वक्त किसी के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है।
लड़की बड़ी मुश्किल से यहां तक पहुंची थी।अब और आगे चलने की शक्ति उसमें नहीं बची थी।पीठ पर लादा हुआ नर्म प्लास्टिक का कट्टा लगभग खाली था।इसे उसने खुद से अलग करके नंगे और मैले–कुचैले पांवों के पास रख लिया।तेज भूख के कारण वह अपना संतुलन बनाए रखने के काबिल नहीं थी।प्यास भी उसे शिद्दत की लगी थी।लेकिन भूख इस वक्त उस पर हावी थी।
पलकें उठाकर लड़की ने देखने की कोशिश की।पहले पहल धुंधलके के सिवा उसे कुछ नजर नहीं आया।फिर भी उसने देखने की कोशिश जारी रखी।रफ्ता-रफ्ता वह इसमें कामयाब होने लगी।फौरन ही चेहरे पर पड़े ठंडे पानी के छींटों ने उसे जैसे जगा डाला था।तर हो चले होंठों पर उसने जबान फेरी और आंखें फैला दीं।उसके सामने एक आदमी खड़ा था।उसके हाथ में सील खुली पानी की बोतल थी।लड़की ने छीन लेने के अंदाज में बोतल उसके हाथ से ले ली और बड़ी बेसब्री के साथ गट-गट करके पानी पीने लगी।कुछ क्षणों में उसके मुंह और गले की खुश्की दूर हो गई।
खड़ी हो चली लड़की ने पानी की बोतल हाथ में लिए-लिए अपने सामने खड़े शख्स को देखा।हल्की दाढ़ी-मूंछ और खुले रंग वाला यह आदमी पचास पार का लग रहा था।लड़की के हाथ से पानी की बोतल लेकर उसने उसे देखा।उसे यह देखकर तसल्ली हुई कि बोतल में अभी काफी पानी है।
दिन का यह तीसरा पहर था।धूप में तेजी नहीं थी।सायों की लंबाई बढ़ने लगी थी।जगह सुनसान थी।दूर सड़क पर एलान करती हुई पुलिस की गाड़ियां इस वक्त भी दौड़ रही थीं।
आदमी ने एक दफा फिर लड़की को देखा।उसकी हालत को देखकर वह समझ गया था कि कचरे में काम का सामान ढूंढ़ने वाली यह लड़की निश्चित रूप से अपनों से बिछड़ कर भटकी हुई है।प्यास और भूख के अलावा यह डर के मारे भी अपना होश गंवा चुकी थी।इस वक्त भी यह पूरी तरह अपने में नहीं है।इसे खाने को दिया जाना चाहिए।
लड़की की तरफ उसने नमकीन मूंगफली और बेसन की सेव के दो पाउच बढ़ाए तो उसने इन्हें फौरन ही लपक लिया।दांतों से पाउच खोल कर वह ताबड़तोड़ खाने लगी।
बिलकुल ही खाली पेट में सेव और मूंगफली गई तो लड़की को ऐसा महसूस होने लगा कि अंधेरा धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है और प्रकाश फैलने लगा है।
खाते-खाते लड़की ने पानी की बोतल की तरफ देखा तो उस शख्स ने उसे उसकी तरफ बढ़ा दिया।एक बार फिर थोड़ा-सा पानी गटकने के बाद बोतल उसने उसे लौटा दी।
थोड़ी देर में लड़की की भूख और प्यास लगभग खत्म हो गई तो उसे अपनी हालत और हालात का ठीक-ठीक पता चलने लगा।उसके जेहन के पर्दे पर अब बिलकुल साफ मंजर था।कहां रह गए वे दोनों? दौड़ तो हम तीनों ने लगाई थी।पूरी ताकत के साथ।लोग तरह-तरह के हथियार लिए हुए जो घूम रहे थे।घूम क्या रहे थे, बल्कि इधर-उधर दौड़ रहे थे।सुबह से कुछ मिला ही नहीं था खाने को।कट्टे भी तीनों के खाली रहे।उम्मीद थी कि इन्हें भर कर पेट भर लेंगे।लेकिन अफरा-तफरी ने सबकुछ उलट-पुलट करके रख दिया।खीसे में कुछ था ही नहीं।होता भी कुछ अगर तो क्या काम का रहता? दुकानें तो तमाम बंद पड़ी हैं।खाना तो क्या, पानी तक का नामोनिशान नहीं रहा।ऐसे में हालत का बिगड़ना ही था…
और वह अंधेरी गुफा क्या रही? फिसलन और वे होश गुम होने की बातें क्या रहीं? …गहरा अंधेरा? फिर भी शुक्र है कि ज्यादा देर तक वहां रहना नहीं हुआ, वरना तो दम घुट गया होता और जान ही निकल गई होती।कहीं सुना था कि फरिश्ते होते हैं।देखा न था।आज एक को देख लिया।ऐसा ही होता है! हमदर्द और मददगार।भूख और प्यास मिटा देने वाला।गुदगुदाने वाला…।
गुदगुदी पर लड़की ने फौरन ही गौर किया तो देखा- आदमी के चेहरे पर अजीब किस्म की हल्की-सी हँसी थी।पस्त कर देने वाली अग्नि भी आंखों में रही।अंदाज से डर लग रहा था।यों लगने लगा जैसे वह पूरे वुजूद पर ही हावी हो जाने के लिए तैयार है।फरिश्ते ऐसे नहीं होते, लड़की ने सोचा।वह अभी पूरी तरह से कुछ समझ पाती इससे पहले ही उस आदमी ने हाथ बढ़ा डाला।उसके सख्त और गर्म हाथों ने उसी के मुताबिक काम करना शुरू कर दिया था।उसकी जागी हुई भूख बड़ी तेजी के साथ बढ़ती जा रही थी।शराब का भभका उसकी सांसों से महसूस हो रहा था।उसके हाथ अब अत्यंत ही संवेदनशील अंग को टटोल रहे थे।वह बड़ी तेजी के साथ आगे ही आगे बढ़ता चला जा रहा था।उसका एक हाथ नीचे की तरफ बढ़ा और उसमें हरकत होने लगी तो लड़की पूरी तरह अपने में आ गई।
दूर तरह-तरह के एलान हो रहे थे।बहुत दूर हुजूम का शोर सुनाई दे रहा था।सायों की लंबाई लगातार बढ़ती जा रही थी।धूप मद्धम पड़ चली थी।यहां किसी की आवाज तो क्या, हल्की-सी आहट भी नहीं थी।गुफा, अंधेरा और फिसलन इस वक्त आपस में गडमड हो चले थे।
इस बीच अचानक अनपेक्षित रूप से एक जबर्दस्त धमाका हुआ।वह अभी संभल कर कुछ समझ पाता कि इससे पहले ही लड़की खुद को उसके चंगुल से छुड़ा कर बिजली की -सी गति के साथ आड़े-तिरछे और परिचित रास्तों की तरफ ये जा वो जा हो गई।
कुछ लम्हों बाद उस आदमी को संभलने का मौका मिला।उसकी आंखों में चुभन और जलन हो रही थी।नशा उसमें बहुत कम रह गया था।देखने की उसने भरपूर कोशिश की।बड़ी मुश्किल से उसने देखा- पानी की खाली बोतल और शराब की लगभग खाली पव्वी उसके पैरों के पास पड़ी थी।नमकीन के खाली पाउच भी वहां थे।लड़की का प्लास्टिक वाला कट्टा भी।
उसने अपने गिर्द और फिर दूर तक नजरें दौड़ाने की कोशिश की।लेकिन जोर का झटका देने के साथ ही पूरी ताकत के साथ हाथ का नमकीन आंखों में झोंक डालने वाली लड़की का कहीं अता-पता नहीं था।
संपर्क : ७२, लाला लाजपतराय कॉलोनी, पांचवीं चौपासनी रोड, ईदगाह, जोधपुर–३४२००३, मो.८०००२४५६७३
(Paintings by : sharmi dey)