यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो में लेक्चरार के पद पर कार्यरत।उपन्यास, कहानी संग्रह व लोक धरोहर पर पुस्तक प्रकाशित।प्रतिष्ठित पत्र–पत्रिकाओं में रचनाएँ निरंतर प्रकाशित।
बादल गरज कर चले गए थे।बरसते कैसे, उनके आने का उद्देश्य सिर्फ गरजना ही था।अपनी गूंज से लोगों को डराना और बगैर धूप वाले सूरज की ओट में छुप जाना।इन बादलों की यह आवाजाही मौसमी तेवर था।एक तो वैसे ही कड़ाके की सर्दी, तिस पर बारिश की संभावना, और धूप जैसे कई दिनों से छुट्टियों पर थी।ऐसा मौसम अच्छे-खासे काम करने वाले लोगों को भी बोझिल कर देता था।
उम्रदराज लोगों के लिए यह मौसम प्रकृति द्वारा दी गई किसी सजा से कम नहीं था।हड्डियों में घुसने को तत्पर ठंड और उम्र का कहर, दोनों मिलकर बेचारे सीनियर सिटीजन का जीना दूभर कर देते।अठहत्तर साल की पैट्रिशिया के लिए ये दिन चुनौती भरे होते।करे तो क्या करे! घर में न बच्चे, न कोई बात करने वाला।दीवारों के भीतर की जड़ता बाहर निकल कर आ जाती।अकेलापन कुछ इस तरह चुभता कि इंसानों के चेहरे देखने को दिल तरस जाता।टीवी देखो तो कितना! वही घिसे-पिटे कार्यक्रम की श्रृंखलाएं।फोन टनटनाता तो लगता जैसे खामोश जिंदगी बजने लगी हो, किसी से तो बात हो, लेकिन वह प्रमोशन कॉल होता।बच्चों से बात, उनकी सुविधा पर था।अब पैट्रिशिया की डिक्शनरी में सप्ताहांत न था।उसके लिए दिन, सप्ताह, महीने और साल के मतलब समान थे।एक दिन इतना लंबा और रबड़ की तरह खिंचा हुआ होता कि उस दिन के खत्म होते लगता मानो पूरा साल निकला हो।उम्र का यह पड़ाव इस मौसम के मूक सूरज की तरह था, जिसमें न चमक रही, न रोशनी, फिर भी उसे अपना समय चक्र पूरा करके ही जाना था!
ऐसे में आखिर किया क्या जाए? शरीर को थोड़ा चलने-फिरने को न मिले तो थके नहीं और बगैर थके नींद नहीं आती।कई बार कोशिश करती कि बाहर घूम आएं, मगर सर्दियों के फिसलन भरे रास्तों पर अधिक चलना मुश्किल था।कई बार वह थोड़ा चलकर किसी स्टोर में घुस जाती थी, ताकि ठंड के थपेड़ों से बच सके।उसका घूमने का, टहलने का शौक उसे इसका तोड़ दे देता।पास में एक बड़ा ग्रॉसरी स्टोर था, जिसमें रोज टहलकर अपना वक्त बिताती, घंटे भर टहलने में अच्छी भली कसरत भी हो जाती।
यह सुबह की अनिवार्य आवश्यकता बन गई थी।पैट्रिशिया रोज उस स्टोर में जाती, नया क्या आया, क्या नहीं, इसका लेखा-जोखा रखने में उसका समय कट जाता।साथ ही, सेल में आई हुई कुछ चीजें खरीद भी लेती।उसका बिल कभी पांच-सात डॉलर से ज्यादा न होता।अकेली होने के चलते उसकी जरूरतें आटे में नमक जितनी थीं।स्टोर में घूम-घूमकर अपनी कसरत पूरी कर लेती।इस तरह बर्फ और ठंड के खतरों से भी बच जाती।इन दिनों यह एक तरह से उसका शगल बन गया था।नए-नए उत्पादों पर लिखी जानकारियों को पढ़ना और कीमत के साथ उसकी पोषकता की जांच कर लेना।सामान छू-छूकर देखने में उसकी पैकिंग और ब्रांड के साथ नाम भी अच्छी तरह याद हो जाते।एक सप्ताह से दूसरे सप्ताह भावों में क्या कमीबेशी हुई, इसका भी अंदाजा रहता।
सामान के अलग-अलग गलियारों में तीन गलियारे ऐसे थे, जहां ज्यादातर चीजें उसकी पसंद की थीं।वे तीनों गलियारे उसके भ्रमण का मुख्य केंद्र थे।उन तीनों गलियारों का नव-नियुक्त युवा मैनेजर कुछ दिनों से सतर्क हो गया था।उसके लिए एक ही समय पर, एक ही ग्राहक का रोज आना और खास गलियारों में घूमकर वापस चले जाना, चौंकाने वाला था।वह इसपर नजर रख रहा था, हालांकि अब तक ऐसा कुछ मिला नहीं था कि वह उस ग्राहक पर कोई आरोप लगा सके।हर दिन का आना और एक-दो छोटी चीज खरीदकर चले जाना, शंकाओं को जन्म दे रहा था।
उसने लगातार एक सप्ताह तक उसका पीछा किया, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा।उसे लग रहा था कि यह औरत रोज कुछ चीजें चोरी करके ले जाती है।लेबल हटा देती होगी।दिन–सप्ताह गुजरते गए और उसका यह संदेह विश्वास में बदलता रहा।तय था कि यह महिला बहुत शातिर है, इतनी सतर्कता से चोरी करती है कि आज तक कभी पकड़ में नहीं आयी!
उसके मटमैले कपड़े, उलझे बाल, सामानों को उलटने-पलटने की हरकतें, और नियमित रूप से एक घंटा गलियारों में चक्कर लगाना- शक की सारी सुइयां उसकी ओर घूम गई थीं।बस उस क्षण की देर थी, जब उसे पकड़ने में वह कामयाब हो जाए।मन ही मन बड़बड़ाता रहता- ‘बुढ़िया की हिम्मत तो देखो! इतने दिन से रोज कुछ न कुछ चुराकर ले जाती है।चोट्टी कहीं की! उसका बस चले तो उसके उलझे सफेद बालों को पकड़ कर ले जाए मैनेजर के पास और सारी काली करतूतों का भांडा फोड़ दे।’
जब भी वह अपने इक्का-दुक्का सामान के साथ कैशियर के पास पहुंचती, वह पीछे लग जाता कि कहीं कोई सुराग मिल जाए ताकि उसे पकड़वा सके और वह अपनी सतर्कता का रोब झाड़ सके।पर ऐसा नहीं हो सका।वह आती रही, जाती रही।पीटर को कोई मौका दिए बगैर अपना काम करती रही।अब उसके लिए यह असह्य था।घड़ी नौ के टकोरे देती और वह उसे घुसते हुए देखता।इधर दस का टकोरा होने के दो मिनट पहले वह लाइन में खड़ी हो जाती, दस बजते-बजते बाहर निकल जाती।अपने पसंदीदा गलियारों में जब अपने गंदे हाथों से वह किसी चीज को छूती तो लगता न जाने कितने बैक्टिरिया छोड़ गई होगी।वह जाकर उन चीजों को सेनेटाइज़ करने की कोशिश करता।उसे ऐसा लगता मानो उसके साफ-सुथरे बच्चों को किसी ने अपने गंदगी भरे हाथों से छूकर गंदा कर दिया हो!
पीटर के भीतर चिड़चिड़ाहट का पहाड़ खड़ा होता जा रहा था।किसी भी तरह वह इस स्त्री के आने-जाने को बंद करना चाहता था।अपनी कार्यशैली में ऐसी रुकावटों से पार पाना उससे सीखना ही होगा।लंबा रास्ता है, शुरुआत में ऐसे लोगों से निपटने के रास्ते खुल जाएंगे तो हमेशा के लिए आराम हो जाएगा।आत्मविश्वास बढ़ जाएगा।
पीटर ने कई दिनों तक सहा था उसे पर अब और नहीं।छुट-पुट विचारों की भीड़ में एक ठोस विचार ने जगह बनाई।इसी की मदद से इस चोर औरत को पकड़ने के लिए अब वह कमर कसकर तैयार था।
अपनी धुन में खोयी पैट्रिशिया आज भी अपनी नियमित कसरत पूरी करती चीजों को टटोल रही थी।पीटर आज कुछ ज्यादा ही सावधान था, मानो अपने सब्र और धैर्य का परिणाम खोज रहा हो- इस औरत को देखने की मजबूरी खत्म करना है।आज इसकी हर चालाकी को सामने लाना है।
अपना पूरा समय उन गलियारों में बिताकर, चीजों को खंगालने के बाद पैट्रिशिया कैशियर के पास गई।पीटर बाहर निकलने वाले दरवाजे पर खड़ा था।जैसे ही वह बिल पेमेंट करके बाहर निकलने लगी, वह विनम्रता से बोला- ‘मैम, मुझे आपकी रसीद और आपका सामान चेक करना होगा।ये हमारे हर सप्ताह के रूटीन का एक भाग है।’
पैट्रिशिया सकपकायी।ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ, फिर आज क्यों! लेकिन उसने खामोशी से अपनी रसीद उसकी ओर बढ़ा दी।पीटर ने रसीद से सामान मिलान करते हुए पाया तीन छोटे बीन्स (राजमा, छोले, चंवले) के टीन के डिब्बे (कैन) थे जिनका पेमेंट नहीं किया गया था, जिनकी लागत बहुत ज्यादा नहीं, परंतु टैक्स सहित लगभग दस डॉलर की होगी।
‘मैम, आप इनका पेमेंट किए बगैर लेकर जा रही थीं, आप इधर, इस तरफ आ जाइए।’
उसने तत्काल मैनेजर को बुलाया और उसकी इस चोरी को बताने लगा।आसपास से गुजरते कई ग्राहक पैट्रिशिया को नफरत से देखते हुए निकल गए।इतनी बूढ़ा होकर भी कोई चोरी कर सकती है भला! कई लोग तमाशा देखने के लिए रुक गए।
वह अपना बचाव करने की हर संभव कोशिश कर रही थी।कहती रही– ‘ये मेरा सामान नहीं है।मैं कैन की बीन्स कभी नहीं खरीदती।’ सब जानते थे, समझते थे कि अपने आपको बचाने के लिए यह उसकी सफाई थी।हर चोर यही कहता है, जब उसकी चोरी पकड़ी जाती है।
‘अगर यह सामान इसका नहीं है तो इसकी कार्ट (सामान भरने की गाड़ी) में आया कैसे!’ मैनेजर को बुलाकर पीटर गरज रहा था।चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा था- ‘ये रोज आती हैं, इसी समय, रोज चोरी करती होंगी, आज पकड़ी गईं।’
हल्ला हो चुका था।पीटर की आंखें आग बरसा रही थीं।पैट्रिशिया खामोश थी।स्टोर का पूरा तंत्र उसकी चोरी सिद्ध कर चुका था।वह कुछ नहीं बोली, सिर झुकाकर वहां से चल दी।मौन रहना स्वीकृति की मुहर होती है।उसके चोर होने पर स्वयं उसने ही मुहर लगा दी थी।पैट्रिशिया का यूं चुपचाप सिर झुकाकर चले जाना उसके गुनाह को साबित कर रहा था।
उसे तुरंत सजा सुना दी गई, उसके स्टोर में आने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।पीटर संतुष्ट नहीं था- ‘इससे भी ज्यादा बड़ी सजा होनी चाहिए थी उसके लिए।शहर में स्टोर्स की कोई कमी है क्या! वह किसी दूसरे स्टोर में जाएगी।तू नहीं, कोई और सही।’
शायद यही सोचते हुए वह कोई प्रतिवाद किए बगैर चली गई थी।ऐसा लगा जैसे अपने किए की सजा भुगतने का कोई गिला नहीं हो उसे।पीटर को एक भरपूर नजर देखा जरूर था।शायद यह पूछते हुए कि- ‘तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया, दस डॉलर की राशि इस बड़े स्टोर के लिए ज्यादा नहीं थी!’
पीटर अपनी मुस्तैदी से एक चोर को पकड़वाकर, अपने आक्रोश को सार्वजनिक करके, सफल मैनेजर की पोस्ट को हासिल करने की तरफ कदम बढ़ा चुका था।अब वह स्टोर के अन्य कर्मियों के लिए एक आदर्श था।इस घटना के बाद सभी अपने-अपने गलियारों में चुस्त-दुरुस्त रहने लगे थे।स्टोर का काम पूर्ववत चल रहा था।पीटर के लिए पैट्रिशिया की अनुपस्थिति सुकून भरी थी।इससे भी अधिक संतोष था- अपनी ऐतिहासिक जीत का, अपने सुनहरे भविष्य का।
दूसरे दिन सुबह स्टोर खुलने के दस मिनट पहले पुलिस की दो गाड़ियां आकर स्टोर के सामने रुकीं।ऐसा लगा जैसे वे कुछ खरीदने आए हों और चूंकि अभी आम जनता के लिए स्टोर नहीं खुला था, इसलिए विशेष अनुमति के लिए मैनेजर से पूछ रहे हों।
पुलिस वाले ने आगे आकर कहा- ‘हमें एक चोर की तलाश है जो आए दिन अलग-अलग स्टोर में घुसकर चोरी करता है।हमें पूरा विश्वास है कि वह यहां भी आया होगा।इसी सिलसिले में हमें आपके स्टोर के सारे सीसीटीवी फुटेज देखना है ताकि उसे पहचाना जा सके।’
मैनेजर ने कहा- ‘जी ऑफिसर, जरूर, हमारे स्टोर के एक सजग कर्मचारी ने कल ही एक चोर पकड़ा।हमें खुशी होगी अगर हम आपकी मदद कर सकें।’
वह अपने साथ उन्हें कंट्रोल रूम में ले गया।सारे कंप्यूटर और कैमरों की हर लोकेशन को चेक करने में पुलिस को एक घंटा लगा।कुछ फुटेज के शॉट्स लिए और वे दोनों मैनेजर का धन्यवाद करके चले गए।
किसी कर्मी ने इसका कोई खास नोटिस नहीं लिया और स्टोर का काम स्मूथ चलता रहा।पीटर बहुत खुश था कि उसे चोर से मुक्ति मिल गई।मैनेजर ने उसे बेहद प्रशंसा की नजरों से देखा था।साथ ही, पुलिस को भी इस बात की जानकारी दे दी गई थी।
मौसम के तेवर अभी भी बहुत तीखे थे।जमी हुई स्नो अब आइस बन गई थी।जरा सा कदम बहके नहीं कि आदमी ऐसा फिसल जाए कि उस समय अगर उठ भी जाए तो बाद में कई दिनों तक बिस्तर पर पड़ा रहे।उसी कहर ढाते मौसम में, ठीक एक सप्ताह बाद फिर से पुलिस की दो गाड़ियां आईं।मैनेजर के साथ बातचीत की गई।लग रहा था कि एक और चोर पकड़ा गया।कुछ गंभीर बातें हुईं, उसके बाद पीटर को बुलाया गया।पीटर ने ऑफिस में शान से कदम रखा, यह सोचकर कि इतने सारे कर्मचारियों में से सिर्फ मुझे बुलाया गया है, जरूर मेरी कर्तव्यपरायणता के लिए शाबासी की शासकीय औपचारिकता पूरी की जा रही है।उसकी चाल में अकड़ थी और चेहरे पर गर्व की दृश्य लकीरें अनायास ही खिंच गई थीं।
जैसे ही वह मैनेजर के ऑफिस में घुसा, न जाने क्यों उसे अपने मैनेजर की नजरें तीखी लगीं, जबकि दोनों पुलिसवालों के चेहरों पर मुस्कान थी।
‘आपको इसी समय बरखास्त किया जाता है।’ उसे काटो तो खून नहीं।पीटर को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ।क्या यह सब उसी से कहा जा रहा है या फिर अदृश्य रूप में कोई और है जो दोषी है!
पुलिस ने उसे सामने बैठाकर वह सीसीटीवी फुटेज दिखाया जिसमें वह पैट्रिशिया के कैशियर पेमेंट के बाद उसकी कार्ट में सामान का एक बैग खिसका कर चला गया था।
पीटर के पैरों तले जमीन खिसक गई।यह कैसे हुआ! उस समय वह स्वयं सीसीटीवी का स्विच ऑफ करके आया था।पुलिस ने उसकी कशमकश समझ ली और कहा- ‘आपने स्विच ऑफ कर दिया था मिस्टर पीटर, लेकिन कंटोल रूम के अलावा एक और सीसीटीवी कैमरा है जो मैनेजर के ऑफिस में है।इसे सिर्फ मैनजर ही ऑन-ऑफ कर सकते हैं और जब हमने इस कैमरे के फुटेज को इनलार्ज किया तो हमें असलियत पता चली।’
‘मुझे तुम पर विश्वास था इसलिए मैंने सीसीटीवी को चेक किए बगैर पैट्रिशिया को चोर करार देने की गलती की।’ मैनेजर की आंखें आग बरसा रही थीं।
‘मिस्टर पीटर, आपने जिस महिला पर चोरी का आरोप लगाया, वह और कोई नहीं, हमारे इन जाबांज़ पुलिस ऑफिसर की दादी हैं।’
उनका पोता बोला- ‘सबसे खास बात यह है कि हमारे परिवार में टीन के बंद डिब्बों की बीन्स कोई भी नहीं खाता, और इस बात को घर का छोटा बच्चा तक जानता है।बस यही वह बिंदु था जिससे किसी साजिश को हवा दिए जाने का अंदाज़ा लगा, क्योंकि गलती से भी मेरी दादी इन्हें कार्ट में नहीं रख सकतीं।’
पीटर चेतना शून्य था।बोलने लायक कुछ था ही नहीं अब, वह चुपचाप चला गया।हवा की तरह स्टोर के सभी कर्मचारियों में खबर फैल गई।जितने मुंह उतनी बातें! पीटर के इस दुस्साहस को बहुत ही टुच्ची हरकत कहा जा रहा था- ‘एक सीनियर सिटीज़न को इस तरह अपमानित करके क्या मिला होगा उसे।’
‘पैट्रिशिया चाहती तो उसी समय बहस कर सकती थी, लेकिन वह सत्ता के सामने प्रूफ के साथ आना चाहती होगी।’
‘उम्र और कपड़े नहीं, इंसान को देखा जाता है।’
‘अगर उसका पोता पुलिस में न होता तो क्या कोई उसकी बात पर यकीन करता! न जाने कितने लोग इस तरह तंत्र के शिकार बनते हैं।’
बातें तब भी हुई थीं जब वह पकड़ी गयी थी, बातें अब भी हो रही थीं, जब पीटर पकड़ा गया।जितनी तेजी से अपना सामान समेटकर जा सकता था, पीटर चला गया।
पैट्रिशिया को फोन पर उसके पोते ने इस बात की जानकारी दी।न जाने क्यों उसे इस बात की रत्ती भर खुशी नहीं हुई कि उसे चोर करार दिए जाने वाले शख्स को नौकरी से निकाल दिया गया।उसे इस उम्र में जिस तरह से अपमानित होना पड़ा था, वह ऐसा घाव था जिसका मवाद अंदर तक रिस गया था।उस दिन उसके आसपास एकत्र हुए लोग जान भी नहीं पाएंगे कि पैट्रिशिया की कोई गलती नहीं थी।उसके पास उसका अपना ही इतना है कि ताउम्र उसके खाने के बाद भी बच्चों के हिस्से में बहुत कुछ जाएगा।वह चोरी शब्द के कहीं आसपास भी नहीं थी।उस दिन का हर पल, हर पहर उसे अजनबी जैसा लगा था।हारकर उसने अपने पोते को फोन करके यह बात बताई और थोड़ा हल्का महसूस किया था।यह बात सोचे बगैर कि वह उसे इस तरह निर्दोष साबित करने का प्रयास करेगा।
इस एक सप्ताह में बहुत कुछ हुआ था।स्टोर, पीटर, मैनेजर, पुलिस और अपने पोते, सबकी शकलें उन टीन के डिब्बों के साथ गड्डमड्ड हो रही थीं।धूप के एक टुकड़े ने उसकी खिड़की से झांका तो एक मुस्कान चेहरे पर आ गई।कुछ देर पहले, बिना गरजे ही बादल झमाझम बरस कर चले गए थे।भीतर और बाहर का मौसम तेजी से बदला था।धूप चारों ओर इस तरह बिखर गई थी, मानो मूक हो चुका सूरज अब चहकने को तैयार हो।
संपर्क : २२, फेरेल एवेन्यू, नॉर्थ यॉर्क, टोरेंटो, ओएन-एम२आर१सी८, कनाडा ००१ ६४७ २१३ १८१७ ईमेल – hansadeep8@gmail.com
बहुत अच्छी कहानी। पढ़ कर बहुत तसल्ली हुई। धन्यवाद
जी आपका हार्दिक आभार।
कहानी एक बार में पढ गया। कहानी का संदेश पाठक तक और खुलासे से संप्रेषित हो सकता था।मुझे नहीं मालूम इस कहानी का क्या मैसेज है जबकि कहानी अंत तक रोचक और पैट्रीशिया के प्रति सहानुभूति से सराबोर है।हंसा मेरी प्रिय कहानी कार हैं। वो ही बताये।बधाई।
धन्यवाद विजय जी। कहानी का संदेश स्पष्ट है, घर के बाहर भी बुजुर्गों के प्रति तिरस्कृत और प्रताड़ित करता व्यवहार आम होता जा रहा है। इसके प्रति जागरुकता आवश्यक है।
आदरणीय स
सादर प्रणाम
मैंने आपकी यह पहली कहानी पढ़ी और मैं आपके लेखन से बेहद प्रभावित हुआ। मैंने हाल ही में रचनाओं का मालवी भाषा में अनुवाद आरंभ किया है। फिलहाल यह कार्य मेरी पत्नी यशोधरा भटनागर की लघुकथाओं तक सीमित है। यदि आप अनुमति दें तो मैं आपकी इस कथा का मालवी भाषा में अनुवाद करना चाहता हूँ।
सादर
संदेश के लिए धन्यवाद संदीप जी। जी जरूर अनुवाद करें, यह मेरा सौभाग्य होगा।