युवा कवयित्री।पुस्तकें : सहारों का बंधन’ (नाटक), नाटक, फिल्म पटकथा लेखन एवं अभिनय में विशेष रुचि।संप्रति : विवेकानंद इंस्टिट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज, दिल्ली में सहायक प्राध्यापक।

तुम्हारे मौन में

उसके मौन को
अधिक सुनती हूँ
जिससे कहने के लिए
कितना कुछ
हमेशा रह जाता है

अपनी अपूर्णताओं को
जिसके साथ पूरा करती हूँ
जिसकी परिधि
मेरे अहम और समर्पण की
शरणस्थली है
जो मेरे सारे राग-विराग का
मौन पर समर्पित श्रोता होता है
उससे कहने को
कितना कुछ
हमेशा रह जाता है

खोखली क्षुद्रताओं के साथ
अंधेरे में भटकती
कितनी ही कुंठा, हताशा
अज्ञानता और स्वार्थ
सबकुछ कैसे
उसकी उपस्थिति की
भीनी सी खुशबू के साथ
छुप जाया करती हैं
जाने किस खोह में
हे ईश्वर
तुम अपने मौन से भी
कितना संबल देते हो
तुम कभी भी
खाली हाथ लौटने नहीं देते मुझे

जीवन का सारा शोर
जब बोझिल करने लगता है
तब तुम्हारे मौन में
तुमसे एकाकार होती हूँ
इस तरह
तुमसे प्रेम करती हूँ
मौन प्रार्थनाओं और शिकायतों के साथ
और तुम्हारे मौन में ही
कितना कुछ पा जाती हूँ हमेशा

हे ईश्वर
तुम्हारे सामने चुप हूँ
मां, कहते हुए गई
कभी कभी पूजा पाठ
आरती-ध्यान भी कर लिया कर
उसकी बात पर मुस्करा रही हूँ
क्योंकि मैं ईश्वर की पूजा नहीं
उससे प्रेम कर रही हूँ
वह भी चुपचाप।

संपर्क :विवेकानंद इंस्टिट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीजटीसी, दिल्ली११००३४ मो.८००५८६२४७९