समकालिक संस्कृत कविता के सर्वाधिक प्रयोगशील कवि।३० काव्य संग्रह सहित कुल ४५ साहित्यिक कृतियाँ प्रकाशित।इनकी कई रचनाएँ हिंदी, अंग्रेजी, मलयालम, कन्नड़, तेलुगु, इटैलियन सहित अनेक भाषाओं में अनूदित।

पत्नी फेंकती है शयन कक्ष में
वध्य प्राणी की तरह अपना शरीर
पत्नी स्नेह करती है
इसलिए
दासी होकर खट गई है वह कामकाज में
उसका स्नेह बन गया है पर्याय
परतंत्रता का, गुलामी का
उसकी आंखों के नीचे दिखाई देते हैं
काले धब्बे
हैं वे जले हुए ख्वाब
उलाहनों से भरा वचन सुनकर भी
नहीं कांपता उसका रोंगटा भी
पत्नी को दियासलाई की तरह जलती देखकर
मैं हो जाता हूँ पाषाण
देवत्व से हीन
शयन कक्ष में पत्नी फेंकती है अपना शरीर
तब-
नपुंसक हो जाता है मेरा शिकारीपन
(वध्य जीव पलायन न करता हो,
तब शिकार का आनंद भी क्या!)

 अनुवाद -स्वयं कवि द्वारा

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