कोरोना से संक्रमित एक 70 वर्षीय वृद्ध ठीक होकर अस्पताल से घर जाने की खुशी में फूले नहीं समा रहा था| अस्पताल के बिल का भुगतान करने के बाद बेटा सामान ले जाने के लिए कमरे में आया, तब वृद्ध की नजर बिल पर पड़ी| बिल के संबंध में जानने के लिए वे उत्सुक थे, पर बेटे की मौजूदगी में वृद्ध हिचक रहे थे| थोड़ी ही देर बाद जब बेटा सामान लेकर गाड़ी में रखने गया, तब वृद्ध ने झटके से बिल लेकर देखा- ‘बाप रे! महज कुछ ही दिनों के वेंटिलेटर के उपयोग करने का बिल दो लाख रुपये…!’
वृद्ध व्यक्ति की आंखें भर आईं, गला रुंध गया| अभी जो इतना खुश था, दुख से भर गया| पास खड़ी पत्नी ने उन्हें संभालने की कोशिश की, ‘अचानक क्या हुआ जी?’
‘कुछ नहीं, बस उस प्रकृति को याद कर मेरी आंखें भर आई हैं| सचमुच, वह कितनी दयालु है! हमें जीवन भर कितना-कुछ देती रहती है- हवा, पानी, भोजन, प्रकाश… और न जानें क्या-क्या… और बदले में वह कभी कुछ नहीं मांगती, जबकि अस्पताल में लोग यदि थोड़ा-सा भी कुछ दे दें, तो उसका मूल्य जमकर वसूलते हैं|’
द्वारा एम के द्विवेदी, शिव-हनुमान मंदिर के पास, रोड नं. 03, विद्यानगर (पश्चिम), हरमू, रांची- 834002, झारखंड मो.9431565285
प्रकृति और स्वास्थ के महत्व को रेखांकित करती लघुकथा जो अन्तिम वाक्य में मानवता के पेशे मेडिकल पर करारा तंज भी कसती है !