वरिष्ठ कवि।2001 में भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार।कविता संग्रहचलने से पहले’, ‘नया बस्ता’, ‘चाँद पर नाव’, ‘कभी जल, कभी जाल’, ‘धूप के बीज’, ‘ईख चूसता ईश्वर।आलोचना की कई पुस्तकें।

मिट्टी है केवल

उनके शरीर में नमक ज्यादा है
या मिट्टी है केवल
कोई नहीं बताता
वह भी नहीं कहते कुछ
पूछते भी नहीं कि वह कहां से आई है

हम क्यों जन्म लेते हैं क्यों मर जाते हैं
ये आसान सवाल
बन जाते हैं इतने मुश्किल कि
खुद से पूछते हुए भी डर लगता है
सड़क के दोनों तरफ पेड़ कटे हुए हैं
ऐसा नहीं कि रोशनी नहीं है
इतना ज्यादा उजाला है कि
कुछ दिख ही नहीं रहा है

असंभव नाम वाले पेड़ पर
अनाम परिंदे
टटोल रहे हैं अपनी इच्छाएं

बनानी दास ढूंढते हुए थक गई है
अपने बचपन के कपड़े
अपनी ही बोली के कोमल शब्द अब डराते हैं

वह रोज अपनी खाल उधेड़ती है
रोज उसे लगता है
जमीन पर बिखर जाएगा देह का सारा रक्त
रोज थोड़ा सा मर जाती है वह
सौदागर बताते हैं कि
एक दिन सूख जाएगा दुनिया का सारा पानी
एक दिन नमक नहीं मिलेगा

बनानी की गोल आंखें फैल जाती हैं
इतना कि उनमें डूब जाएगी दुनिया

वह उठती है
और आईने पर जमी अदृश्य धूल को
साफ करने लगती है अपनी उंगलियों से।

इतिहास में जाने की होड़

पच्चीस साल पहले मर चुका था वह
बड़े लोग मर जाने पर आते हैं ज्यादा काम
अर्थी पर सजे होने पर भी देते हैं वे
ताकतवरों के जीतने की गारंटी
कमजोरों पर ऐसे करते हैं दया कि
जिंदगी सजा बन जाती है उनके लिए

उस भव्य लाश के साथ
होड़ मची थी फोटो खिंचवाने की
कुछ मानते थे इस चोर रास्ते से
चले जाएंगे वे इतिहास में
उनके होने वाले बच्चे और बच्चों के बच्चे
दौड़े चले आ रहे थे
सुनहरा मौका चूक न जाए कहीं
कई तो अभी अधूरे भ्रूण थे
कुछ थे जो दुनिया में आना ही चाहते थे
बेचारी लाश क्या करती?

असरदार होना भी शाप है
मिट्टी होने पर भी छोड़ते नहीं हैं लोग
एक आदमी था वहां सिरफिरा
लड़ता रहता था जानते हुए कि हारना है
टकराता रहता था समय के अंधकार से

केवल उसे ही आ रही थी लाश पर दया
नहीं जाना था उसे इतिहास में
जानता था कि जाकर भी क्या करेगा
जहां हत्यारों के लिए सुरक्षित थे सिंहासन
रसूखदार के लिए आरक्षित थी सबसे ऊंची जगहें
उसके लिए पैरवी कौन करता?
जानता था तो इत्मिनान था उसे
जो रह जाते हैं ऐसे इतिहास से बाहर
वही तय करते हैं इतिहास का अनुक्रम
काली पड़ चुकी थी लाश
वह छटपटा रही थी इतिहास से बाहर आने के लिए
लोग धंसे चले जा रहे थे अपने मरण में

सारी जगहें घेरी हुई थी लाश ने
जो लगते थे जिंदा
आ ही नहीं रहे थे तस्वीर में
वे रोने लगे
एक दूसरे पर शक करते चिल्ला रहे थे
धकेल रहे थे बाहर
सबको लगता था दूसरा उन्हें हटाकर बैठ गया है
उनकी जगह इतिहास में

अब इसे किसकी माया कहेंगे कि
फोटो में दमक रही थी लाश
जो जाना चाहते थे इतिहास में
जाने क्यों दिख नहीं रहे थे
लाश देखे जा रही थी उन्हें
उस आदमी ने देखा शव भी डरते हैं
कुछ कह नहीं सकतीं लेकिन लाशें।

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