शोधार्थी। राजनांद गांव निवासी।

छत्तीसगढ़ के जनकवि कोदूराम ‘दलित’ (1910-1967) के लेखन पर अधिकांशत: गांधीवादी विचारधारा का प्रभाव है। उनका लेखन 1926 से प्रारंभ हुआ, जिस समय देश आजादी की लड़ाई लड़ रहा था। ‘दलित’ जी गांधी जी से प्रेरित होकर गांव के लोगों को जगाया करते थे। वे कवि सम्मेलनों में जागरण गीत के माध्यम से युवाओं में जोश भरते थे, ताकि गांव के युवा आजादी के लिए घर से निकलें और देश को आजाद कराने में सहयोग करें। उन्होंने मजदूर और किसानों को भी आजादी के लिए साथ देने का आग्रह किया।
कोदूराम ‘दलित’ का छत्तीसगढ़ी और हिंदी भाषा पर समान अधिकार था। उन्होंने छत्तीसगढ़ी में ज्यादा लिखा है। उनके काव्य में राष्ट्रीय चेेतना, देशप्रेम, त्याग, लोक जागरण, खादी ग्रामोद्योग, सहकारिता के साथ प्रकृति का भी चित्रण है। उन्होंने मनुष्य की पीड़ा, सामाजिक कुरीतियों का विरोध, मद्यपान विरोध, सहकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार का प्रशंसनीय कार्य किया है। उन्होंने व्यंग्य रचनाएं बड़ी संख्या में लिखीं। वे समाज के हर वर्ग के लोगों को साथ लेकर नए भारत का निर्माण करना चाहते थे।
कोदूराम ‘दलित’ के प्रमुख काव्य संग्रह हैं- ‘छन्नर-छन्नर पैरी बजाय’, ‘हमर देस’, ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय’ आदि। उनके काव्य संग्रहों का संपादन लक्ष्मण मस्तुरिया और अरुण कुमार निगम ने किया है। भारत जब गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था, कोदूराम ‘दलित’ क्रांतिकारी स्वर में कहते हैं :
अब रो झन भारत माता कभू,
हम बंधन-मुक्त कराबोन तोला।
अँगरेज के संग, करे बर जंग,
करे हन राजी इहाँ के सबो ला।
जेल-मां डारय, कोड़ा-मां मारय,
छोड़य बैरी हर तोप के गोला,
जइसे मन आय; करय; सहिबो,
पर जल्दी इहाँ ले भगाबोन वोला।
देश के युवाओं में नए जोश भरते हुए गांधी जी के नेतृत्व में देश की आजादी के लिए आह्वान करते हैं- देस आजाद कराबो/गांधी के गुन गाबो, लाल/परदेशी गोरा आइन हें/भूरी चाँटी-जस छाइन हें/उन्हला मार भगाबो, लाल…/गांधी के गुन गाबो, लाल। दलित जी आजादी के लिए मजदूरों और किसानों को जगाकर गोरों को मार भगाने को ललकारते हैं। गांव के हर भाई-बहन को स्वतंत्रता संग्राम में अपना सहयोग करने के लिए अपनी कविता ‘जागो मजूर-जागो किसान’ में वे कहते हैंः
‘आजादी खातिर लड़ना हे,
जागो मजूर जागो किसान।
गोरा ला खूब कुचरना हे,
जागो मजूर जागो किसान।’
कवि युवाओं को भीम, भगीरथ और महावीर की संज्ञा से सुशोभित करता है। उन्हें श्रमदान करने को प्रेरित कर आलस्य को छोड़ने को कहता है :
मांगे स्वदेश श्रम दान तोर,
संपदा, ग्यान-विग्यान तोर।
जब तोर पसीना पा जाही,
ये पुरुस भूमि हरिया जाही।…
तज दे आलस, कर श्रम कठोर,
पिछवा जाबे अब झन अगोर।
स्वतंत्रता आंदोलन के समय अंग्रेजों के भारतीय सिपाही ही नि:सहाय जनता पर लाठियों से प्रहार कर रहे थे। उनको संबोधित करके दलित कहते हैंः
झन मार सिपाही, हमला झन मार सिपाही।
एक्के महतारी के हम-तैं, पूत आन रे भाई।
कोदूराम ‘दलित’ कहना चाहते थे कि अंग्रेजों के भारतीय सिपाही और भारत के आमलोग एक ही मां की संतानें हैं, अतः सिपाही स्वाधीनता सेनानियों पर हथियार न उठाएं। वे अंग्रेजी राज के इतिहास पर भी रोशनी डालते हैं कि किस तरह वे व्यापारी बनकर आए और भारत की जनता के बीच फूट डालकर राज किया। वे ‘फूट’ के तत्व को विशेष रूप से रेखांकित करते हैं और एकजुटता की अपील करते हैंः
बड़ सिधवा बेपारी बन के, हमर देश-मा आइस।
हमर-तुम्हर-मा फूट डार के, राज-पाट हथियाइस।
अब सब झन मन जानिन कि ये, आय लुटेरा भारी।
अपन देश आजाद करे बर, चलो जेल संगवारी॥
जनमानस को जगाते हुए दलित जी की कविता आम लोगों को जोड़ने का राष्ट्रीय काम करती है। वे छत्तीसगढ़ी भाषा में राष्ट्रीय मुद्दा उठाते हैं। उनकी कविताएं आंदोलन में आने के लिए प्रेरित करती हैं। जो व्यक्ति कामचोर, आलसी प्रवृत्ति के हैं, ऐसे लोगों को जमीन का भार कहते हुए वे व्यंग्य की शैली में कहते हैं-
साँड बरोबर किंजर-किंजर के, बैठे-बैठे खायँ।
ओ भैया मन धरती खातिर, जुच्छा बोझा आयँ॥
देश के वीर लोगों और वीरांगनाओं के लगातार कई वर्षों की कठिन लड़ाई के पश्चात आखिर देश को आजादी मिली। इस कार्य में सभी तबकों के लोगों ने अपना योगदान दिया। देश के सभी वर्गो में खुशी का वातावरण छा गया।
दलित जी की कविता आजादी के बाद भी लोगों को प्रेरित करती है। आजादी मिलने पर लोगों ने अपने घरों में अनेक दीये जलाकर खुशियां मनाई थीं। गांव में आजादी मिलने पर लोग नाच-गा रहे थे, साथ ही देश के विकास की कामना भी कर रहे थे। आजादी की खुशी को व्यक्त करती उनकी कविता ‘हमर लोकतन्तर’ में वे कहते हैंः
आइस हमर लोकतन्तर के आज तिहार देवारी।
बुगुर-बुगुर तैं दिया बार दे नोनी के महतारी॥
सुत-उठ के फहराइस बड़की भउजी आज तिरंगा।
अस नांदिस डोकरी दाई हर कहिके हर-हर गंगा॥

फूलय फलय स्वर्ग बन जावय हिन्द देश ये प्यारा।
‘गणतन्तर हो अमर’ सदा हम इहिच लगाई नारा॥
गुलामी के घनघोर अंधकार के बाद आजादी का सुनहरा सूरज चमकने लगा था। अब देश के नवनिर्माण के लिए सभी को जागरूक होने की जरूरत थी। कवि देश के लोगों को फिर से गुलाम नहीं देखना चाहता। वह देश के वीर स्वाधीनता सेनानियों के दिखाए रास्ते पर चलकर देश को उन्नत बनाने के उपाय बताता है। वह देश में सहकारी योजनाओं से जुड़कर अपने परिवार, समाज और देश के विकास के लिए आह्वान करता है। वह बताता है कि गुलामी के अंधेरे से निकल कर एक नया देश सामने आया है। वह कामना करता है कि हिंसा के मुंह में आग लगे, पर देश में क्या ऐसा हो सका। कोदूराम ‘दलित’ कहते हैंः
अब तोर देश के खुलिस भाग,
झन सुत सँगवारी जाग-जाग।
अड़बड़ दिन में होइस बिहान,
सुबरन बिखेर के उइस भान।
कवि आम लोगों के सपनों को अपनी कविता में व्यक्त करता है। वह गांव के विकास के लिए सभी लोगों को मिल-जुलकर काम करने की आवश्यकता पर बल देता है, जिससे गांव स्वर्ग के समान हो जाएं।
दलित जी ने श्रमदान कर स्कूल, अस्पताल, तालाब, कुँआ आदि बनाने पर जोर दिया है, ताकि समाज और देश का नवनिर्माण हो सके।
श्रमदान करिन कोड़िन तरिया, अउ कोड़िन सुंदर कुँआ एक।
सिरजाइन इस्कुल अस्पताल, सहरावँय सब झन देख-देख॥
कोदूराम ‘दलित’ को देश से अनुराग है। वे कहते हैं कि गांधी जी सहित अनेक वीर योद्धाओं के कारण हमें यह कीमती आजादी मिली है। अब हमारी जिम्मेदारी है कि देश का विकास करें। उमंग और जोश के साथ देश के लिए जुट जाएं। गांधी जी के विचारों को लेकर दीन-दुखियों के दुख को हरें और सत्य, अहिंसा के साथ नए भारत का निर्माण करें। कवि के काव्य में नव भारत का चित्र इस प्रकार है :
नव उमंग जन-जन मा भरबो,
दीन-दुखी मन के दुख हरबो।
का जानी हम का-का करबो,
अपन देश बर जीबो-मरबो।
सत्य अहिंसा शांति टिकाबो,
भारत ला बैकुंठ बनाबो।
कोदूराम ‘दलित’ छत्तीसगढ़ में एक जनकवि के रूप में देखे जाते हैं। वे अपने काव्य के माध्यम से देश की आजादी और देश हित के लिए युवाओं, किसान-मजदूरों के साथ आने वाली पीढ़ियों को भी जगाने का सार्थक प्रयास करते हैं। कवि समाज के हर वर्ग के लोगों को साथ लेकर नए भारत का निर्माण करना चाहता है। वे अपने को ‘दलित’ कहते थे। आज 75 साल बाद उनकी कविताएं पढ़कर हम जान सकते हैं कि एक समय भारत के लोगों के क्या स्वप्न थे और वे स्वप्न कितने पूरे हुए।

 

ग्राम-मोहगाँव, पोस्ट- बम्हनी चारभाठा, विकास खण्ड- छुरिया, जिला- राजनांदगाँव, छत्तीसगढ़- 491558 मो.9993304875