पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती और शिक्षक दिवस के अवसर पर भारतीय भाषा परिषद ने राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालयों के चार, कालेजों के नौ और विद्यालयों के सात शिक्षक-शिक्षिकाओं को ‘हिंदी शिक्षा सम्मान’ दिया।इस अवसर पर लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर और विद्वान डॉ. सूर्यप्रसाद दीक्षित ने कहा कि आज हाशिए पर आ चुके साहित्य को पुनर्जीवित किया जाए।साहित्य का प्रयोजन उदात्तीकरण है।

स्वागत भाषण देते हुए परिषद के उपाध्यक्ष प्रदीप चोपड़ा ने कहा कि हिंदी शिक्षा के क्षेत्र को विकसित तकनीक से जितना जल्दी जोड़ा जाएगा, विद्यालयों का हित होगा।साहित्य अकादेमी के पूर्वी क्षेत्र के कार्यक्रम प्रभारी मिहिर साहू ने कहा कि एक शिक्षक को न सिर्फ पढ़ाना चाहिए, बल्कि नैतिक ज्ञान देना भी आवश्यक है।

डॉ. कुसुम खेमानी ने अपने शुभकामना संदेश में कहा कि हमारे शिक्षक देश के बौद्धिक निर्माता हैं।उनको सम्मानित करते हुए भारतीय भाषा परिषद गौरव का बोध कर रही है।

संचालन करते हुए राजश्री शुक्ल ने कहा कि सितंबर का महीना हिंदी साहित्य के लिए एक विशेष महत्व रखता है।इसी महीने में शिक्षक दिवस और हिंदी दिवस का अयोजन होता है।उन्होंने कहा कि भारतीय भाषा परिषद ने एक शुभ शुरुआत की है।

सम्मान समारोह के अध्यक्ष शिक्षाविद डॉ. शंभुनाथ ने कहा कि शिक्षा का मुख्य साधन गुणी अध्यापक हैं।समाज को सिद्धावस्था के शिक्षकों की जगह साधनावस्था के शिक्षकों की जरूरत है, जो खुद को नए ज्ञान से लगातार समृद्ध करते रहें। ‘सा विद्या या विमुक्तये’ का अर्थ है कि विद्या व्यक्ति को अहंकार, अशालीनता और विद्वेष  से मुक्त करके अंधकार से रोशनी में लाती है।पश्चिम बंगाल में हिंदी शिक्षा को सांस्कृतिक सेतु का काम भी करना है।

सम्मान समारोह का प्रारंभ केरल की नृत्यांगना डॉ. लक्ष्मी मोहन द्वारा भरतनाट्यम की सुंदर प्रस्तुति से  हुआ।धन्यवाद ज्ञापन करते हुए विद्यासागर विश्वविद्यालय के प्रो. संजय जायसवाल ने कहा कि परिषद द्वारा हिंदी शिक्षा सम्मान का सिलसिला जारी रहेगा।सभागार में बड़ी संख्या में उपस्थिति थी।

हिंदी शिक्षा सम्मान समारोह को सफल बनाने में परिषद के वित्त सचिव घनश्याम सुगला जी का विशेष सहयोग रहा।