भानु कैवर्त, जग्गू बूनो, मना चांडाल और कदम शेख़ को दरबार में हाजिर किया गया। हालांकि, इन चारों में से कोई भी यह नहीं जानता कि आखिर इनका अपराध क्या है। जानना जरूरी भी नहीं।

जबकि दरबार में उपस्थित अन्य सभी भली-भांति जानते हैं कि इनमें से हर एक ने जो अपराध किया है वह बहुत गंभीर है। वे आजकल जूते पहनने लगे हैं।

राजा ने सिंहासन में धंसे अपने भारी भरकम शरीर को खींचते हुए थोड़ा ऊपर उठाया और देखा कि भानु के पांव में काबुली जूते हैं, जग्गू के पांव में चप्पले हैं। मना ने खड़ाऊं पहन रखे हैं और कदम शेख के पांव में नागरा जूती है। यह देखते ही राजा क्रोधित हो उठे। उनकी आंखों में खून उतर आया। उन्होंने हुंकारते हुए चिल्लाया, ‘सेनापति?’

सेनापति तुरंत सलाम ठोकते हुए बोला- ‘आज्ञा कीजिए महाराज।’

राजा ने कहा- ‘आश्चर्य! एक किसान के बेटे के पांव में काबुली जूते! इसे तबियत से दो जूते लगाओ।’

राजा के फैसले से उत्साहित होकर मंत्री ने पूछा- ‘इस बूनो का क्या करना है महाराज?’

राजा ने निदान दिया। बोला- ‘इसे दस जूते और उस चांडाल को पांच जूते मार कर छोड़ दो।’

सेनापति ने आश्चर्य से पूछा- ‘क्या इस नेड़े (विधर्मी) के बच्चे को कोई सजा नहीं मिलेगी?’

राजा ने गुस्से में कहा- ‘तुम्हारा दिमाग खराब है? इसको कम से कम बीस जूते जड़ो। और इन सबके जूतों को जब्त कर लो।’

जूते-ऊते खाकर, दरबार से बाहर आकर मना बोला- ‘अब क्या करोगे भानु भाई?’

भानु ने दांत पीसते हुए जवाब दिया- ‘अपनी चिंता मैं खुद कर लूंगा। तुम लोगों ने तो पांच जूते, दस जूते, बीस जूते तक खाए हैं। तुम लोगों के साथ मेरा क्या मेल?’

जग्गू बोला- ‘तब तो मना भाई…’

मना गुस्से से आग बबूला होकर बोला- ‘तू तो दस जूते वाली पार्टी है। दस और पांच में कोई अंतर है या नहीं?’

यह सब सुन कर कदम शेख़ की आंखें छलछला उठीं। उसने कहा- ‘और मैंने बीस जूते खाए हैं। ऐसे में मेरा तुममें से किसी के साथ कोई मेल नहीं, पर जूते तो…’

भानु मुंह बनाते हुए बोला- ‘जूते तो सभी ने खाए हैं, पांच, दस, बीस से कोई फर्क नहीं पड़ता, क्या बोलते हो?’

यह बात सुनकर सब चुप हो गए।

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