ग़ज़ल संग्रह, ‘आशियाने की बातें’, ‘उड़ना बेआवाज़ परिंदे’ ग़ज़ल संग्रह।
गजल
जब तक कोई, रो-रो के दुहाई नहीं देता
अफ़सोस, कि दुनिया को दिखाई नहीं देता
कोहराम तो कोहराम है, दिल का कि गली का
उठता है तो, फ़िर कुछ भी सुनाई नहीं देता
बंधुआ हूँ मैं, तो खेत का मुखिया मेरा नसीब
रख लेता है सब धान, कटाई नहीं देता
मुज़रिम हूँ अगर मैं, तो कसम आप खाएं क्यूं
यूं तो कोई क़ातिल भी, सफ़ाई नहीं देता
तोहफे़ तो ऐन वक़्त पे, देता है मेरा दोस्त
पर हँस के कभी, दिल से बधाई नहीं देता
दिल है मेरा, कि है कोई मासूम शिकारी
दाने तो चुगाता है, रिहाई नहीं देता
इक दूसरे को ओढ़ के, सोए हैं झोपड़े
इतना तो प्यार, भाई को भाई नहीं देता
ठिठुरी हुई सी बस्तियों में, साब का अमला
वादों की सिली, गर्म रजाई नहीं देता।
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