समकालीन हिंदी गजल एवं दोहे की आठ किताबें प्रकाशित।
गजल
सीने में अपने थोड़ी-सी आग बचाकर रख
जीवन में हर पल जीवन का राग बचाकर रख
अपने को बेशक रख दे थोड़ा-थोड़ा सबमें
लेकिन अपने में अपना कुछ भाग बचाकर रख
पास न आने दे हरगिज़ उम्मीदों को ज़्यादा
उम्मीदों की दहलीज़ों पर त्याग बचाकर रख
ऋतुएं, मौसम, उत्सव सबको घर तक आने दे
चैता, कजली, विरहा, रसिया, फाग बचाकर रख
बेहतर दुनिया की खातिर आखिर इतना तो कर
आंखों में पानी, दिल में अनुराग बचाकर रख।
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खुद में खुद को बचाने और लोक को सचमुच बचाने की ऐसी चाहत दरअसल दुनिया को अनुराग से भरे रखने की चाहत है। अच्छी ग़ज़ल है l