पत्र–पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।इलाहाबाद विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक।
मैन ऑफ़ द होल का मरना
(२३ अगस्त २०२२ को ब्राजील के रोंदोनिया राज्य के जंगल में एक आदिवासी समुदाय का अंतिम व्यक्ति मरा पाया गया।जंगल के जीवन पर नजर रखने वालों ने उस व्यक्ति को ‘मैन ऑफ द होल’ कहा था, क्योंकि जब से वह अकेला पड़ा था, तब से धरती को खोदता रहता था।किसी चीज की तलाश थी उसे।यह कविता नहीं शोकगीत है।)
कोई ठीक से देख नहीं पाया था उसे
कोई ठीक से जान नहीं पाया था उसे
आधुनिक सभ्यता के स्पर्श से बहुत दूर था वह
जंगल का वह राजदार
अपना इतिहास
और अपनी संस्कृति कन्धों पर संभाले
आधुनिक सभ्यता से पांच-सात हजार साल के
फासले पर खड़ा था नितांत अकेला
उसके पुरखे आबाद थे
अमेरिका में यूरोपीय बस्तियों के बसने के पहले
उसके पूर्वज अलास्का के लहरों पर नाचते थे
जब नहीं बसी थीं अंग्रेजों की बस्तियां वर्जीनिया में
जब नहीं बनाए गए थे गुलाम अफ्रीका के लोग
वर्जीनिया का कौमार्य लुटने के पहले
उसके पूर्वज अमेजन के सजग प्रहरी थे
लिबर्टी ऑफ स्टेच्यू
और रिओ द जेनेरो के बनने के बहुत पहले
उसकी लोक कथाएं और लोक गीत सुनाती थीं जिप्राना१ की लहरें
लिबर्टी ऑफ़ स्टेच्यू बनने के बाद
बहुत कुछ बदला
एशिया और अफ्रीका में पसरने लगे बाजार
जैसे पसरता है जीभ लपलपाता अजगर
मुंह बाए टैंकर दाखिल होने लगे
अमेज़न के जंगलों में भी
यूं कहें कि
बदल गई पूरी की पूरी दुनिया
लेनी लेनेपे२ के उजड़ने
और
न्यूयार्क सिटी बनने के बाद
आकाश से जंगल-पहाड़ में रहने वाले
आदिवासियों की जांच करने वाले
जान चुके थे नितांत अकेला है ‘मैन ऑफ द होल’
मगर नहीं जान पाए थे कि –
क्यों जिंदगी भर वह खोदता रहा धरती?
वह दफ्न पुरखों को जिलाना चाहता था
उन्हें अपनी व्यथा सुनाना चाहता था
ऐसा भी नहीं है कि वह नहीं जानता था —
जिंदगी और मौत का भेद
मगर उसकी मुश्किल दूसरी थी —
कोई नहीं बचा था-
उसकी भाषा में बोलने, बतियाने, सोचने और
सपना देखने वाला
जिंदगी और भाषा के बीच
समानुपातिक रिश्ता होता है
लोगों ने देखा-
‘मैन ऑफ द होल’ एक मुर्दे पर औंधा पड़ा था
काश मुर्दे बात कर पाते
हँस पाते, नाच-गा पाते
तो
अंतिम आदमी के मरने से
नहीं मर पातीं
अंत की ओर बढ़ती संस्कृतियां और भाषाएं
तो रह पाती एक संस्कृति जिंदा कुछ और दिन
मगर देखना
एक दिन जरूर आएगा जब
मुर्दे उठ आएंगे कब्रों से
और
जिंदा हो जाएंगीं सारी मृत भाषाएँ!
अनाज खरीदता आदिवासी मजूर
ढलती शाम और
रात की संधि रेखा पर खड़ा
दिन भर के परिश्रम से थका
गल्ले की दुकान से आटा-आलू
नमक खरीदता
आदिवासी मजूर जोड़ा दुनिया का
सबसे खूबसूरत परिवार नजर आता है।
साइकिल के पीछे कैरियर पर नमक आटा
आलू लादे
साइकिल के आगे पत्नी को बैठाया
रात के पहले पहर में झोपड़ी की ओर
बढ़ते आदिवासी मजूर
दुनिया के
सबसे स्नेहिल प्रेमी और योद्धा नजर आते हैं
पहर रात गए चांदनी रात में
जंगल में डोलती छायाएं
दुनिया की सबसे सुंदर छवि नजर आती हैं
आधी रात के पहले पहर झोपड़ी
की ओर बढ़ता और गुनगुनाता जोड़ा
दुनिया का सबसे सुंदर गीत
गाता नजर आता है
आधी रात के बखत रोटी सींझती औरत
दुनिया की अन्नदाता नजर आती है
जिसके सामने भूख भी सिर झुकाए
बा-अदब खड़ी नजर आती है।
बूढ़ी आकाशन
(हिमालय के पर्वतीय इलाकों में रहने वाले आदिवासियों की लोककथाओं में आकाश का उल्लेख आकाशन (स्त्री) के रूप में हुआ है।धरती की औरतें उसे अपने पास बुलाना चाहती हैं।आकाशन कहती है कि मुझे कई काम करने होते हैं, फिर भी किसी दिन आऊंगी।फिर वह चेताते हुए कहती है- जिस दिन धरती पर आऊंगी उस दिन से ईश्वर स्त्री हो जाएगा।)
धरती की औरतों ने सवाल किया-
बूढ़ी आकाशन, बूढ़ी आकाशन
ये तो बताओ भटकोगी कब तक?
बूढ़ी आकाशन ने जवाब दिया-
धरती की औरतें, धरती की औरतें
सदियों से भटक रही
सदियों से धरती तक रही
सदियों से धधक रही
आग का कटोरा लिए
सदियों से दिन दे रही
चांदी की थाल लिए
सदियों से रात दे रही
मेरे भटकने से है
दिन और रात
जीवन और मृत्यु
मेरे ही कटोरे में
सोती हैं आगत आत्माएं
मेरे ही कटोरे से
बंटते हैं प्राण
सुनो धरती की औरतें
किसी दिन आऊंगी मैं भी
धरती पर हँसने गाने
तुम्हारी धरती से अपने आकाश तक
उस दिन मैं सिर्फ मैं होऊंगी
फिर थोड़ा राजदार होते आकाशन बोली
उस दिन कुछ बदल जाएगा
उस दिन ईश्वर स्त्री हो जाएगा।
१. जिप्राना- ब्राज़ील की एक नदी.
२. एक विलुप्त आदिवासी समुदाय
संपर्क : सहायक प्राध्यापक, हिन्दी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश/ मो.९०२६२५८६८६