दिल्ली के राजधानी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर। काव्यसंग्रह अभी भी दुनिया में

नमन

एक स्त्री भोर में जगती है
सबसे पहले
हाथों में पकड़ती है झाड़ू
और गुनगुनाते हुए
बुहारने लगती है
सदियों से
स्त्री की दिनचर्या का हिस्सा रही है झाड़ू

स्त्री गुनगुना रही है
बुहार रही है
दुनिया को रहने जीने लायक बना रही है

मैं शीश झुकाकर
नमन करता हूँ
उन सारे इंसानों को

जो इस दुनिया को
रहने जीने लायक बनाते हैं।

इंतजार

पुस्तकें लंबे समय से इंतजार में हैं
हाथों से मोबाइल हटे
तो हाथ पुस्तकों की ओर भी बढ़े

मोबाइल जादूगर है
हाथों को हसरतों की
हथकड़ियों में रखता है।