मुख्यतः पेशे से चित्रकार और कत्थक नर्तकी।कविताओं में गहरी रुचि।

नाव और सीता

नाव नदी को अपना
घर कहती है
या घाट को
या समझती है खुद को
अब भी
एक विस्थापित पेड़…

केवट के लिए यह सवाल
बेमानी था
उसकी चिंता केवल
नाव के स्त्री में बदल जाने पर
टिकी हुई थी

राम
केवट की दुविधा पर
मुस्काते थे

सीता
नाव की दुविधा पर
मौन थीं।

जब भी लिखना प्रेम

‘एक होना’ प्रेम की
सबसे बड़ी हिंसा है
इसलिए प्रेम कविता में हमेशा
दो होने की बात लिखना
लिखना –
जांत के दो पाट
दरते, पीसते, बराबर करते
प्रेम की बनावटी अतिशयोक्तियां

या बायनॉक्युलर की दो नलियां
जो दो आंखों को
ले जाकर जोड़ दें
किसी क्षितिज पर

कभी-कभी लिखना
कैंची की दो धार
चलतीं एक दूसरे की देह पर
काटतीं
बीच में आनेवाली
हर चीज
ताकि रहें एकसाथ – दो।

भाषा

हम दोनों की भाषा
अलग थी बिलकुल
बात होने लगी, फिर भी

उसने अपनी भाषा में कहा –
‘सुख’
और हँस पड़ी
समंदर की लहर सी फेनिल हँसी

मैंने अपनी भाषा में सुना –
रुपहली बर्फ ढंकी चोटियों के पीछे से
किरण फूटना
या
नदी में तिरती नाव की पतवार का
फूल जाना
बौराई हवा की संगत पाकर

फिर उसने अपनी भाषा में कहा –
‘दुख’
और बेधती आंखों से देखने लगी
क्षितिज के पार

मैंने अपनी भाषा में सुना
क़र्ज़ में डूबे किसान का
बादलों से छला जाना
एक बार फिर
सूख जाना
या
गांव के सबसे छतनार पेड़ का

मैं उसकी भाषा नहीं जानती
न वह मेरी
फिर भी बार बार
मैं उसके सुख में
उसके दुख में
उलझती रही
उसने जो कहा
मेरे मन के गुंबद में
भरती गईं उसकी प्रतिध्वनियां
लगा, जैसे उसकी और मेरी भाषा
सुदूर प्रांतों में ब्याही
सगी बहनें थीं बिलकुल।

पूर्वज

बीज में बसते हैं
पेड़ के पत्तों-फूलों के रंग
टहनियों, जड़ों, फलों की कथा
हवा, पानी, धूप की रीत से भिड़ती
हरियाली की ज़िद
और पंछियों के कोमल गीत

कुछ वैसे ही
पूर्वज रहते हैं
मुझमें

उनके श्रम से
उभरी हैं मेरी मांसपेशियां
और आवेग से
फड़कती हैं धमनियां
उनके गीत
फूटते हैं मेरे कंठ से
उनके स्वप्न
गढ़ते हैं मेरी नींद

मुझमें बारबार
खुद को भरकर
सौंपते हैं वो
काल को
फिर ठठाकर हँसते हैं
उसकी बेहिसाब भूख को हराकर।

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